धर्मशाला। वर्ष २०२३ वैश्विक संघर्षों के मामले में महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इस वर्ष कई नए संघर्षों का जन्म हुआ। इसमें दो प्रमुख युद्ध और कई अन्य लोगों की मौतें शामिल हैं। हालांकि, दुनिया आज के इन संकटों और संघर्षों से निपट रही है, लेकिन तिब्बत तो पिछले छह दशकों से अधिक समय से एक ऐसा स्थान रहा है, जहां पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की सरकार द्वारा कुछ सबसे अधिक दिखाई देने वाले और मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन हुए हैं। यहां मानवाधिकारों की स्थिति २०२३ में अलग नहीं रही है।
फ्रीडम हाउस ने लगातार तीसरे वर्ष १०० में से केवल एक स्कोर देकर तिब्बत को पृथ्वी पर सबसे कम मुक्त क्षेत्र के रूप में स्थान दिया है। २०२३ में चीन लगातार नौवें वर्ष मुक्त अभिव्यक्ति के रूप में इंटरनेट स्वतंत्रता को बाधित करने वाला दुनिया का सबसे संगीन अपराधी बना रहा। देश में नागरिकों की सूचना तक पहुंच, सोशल मीडिया की ऑनलाइन गतिविधियों पर नियंत्रण बढ़ाए जाने और प्रमुख अधिकार कार्यकर्ताओं और ब्लॉगर्स को लंबी कारावास की सजा देने के साथ चीन का तिब्बत में दमन जारी है।
तिब्बत में पीआरसी सरकार का ‘चीनीकरण’ अभियान लगातार तेज़ हो रहा है, जो लगभग १० लाख तिब्बती बच्चों को सरकार द्वारा संचालित औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों में भर्ती करने से स्पष्ट है। यहां तक कि पूरे क्षेत्र में तिब्बती स्कूलों को सुनियोजित तरीके से बंद किया जा रहा है। सरकारी अखबारों में बोर्डिंग स्कूलों का प्रचार बेतहाशा हो रहा है। इससे पता चलता है कि चीन सरकार तिब्बत के सभी क्षेत्रों के बच्चों को इसी तरह की शिक्षा देने का इरादा रखती है। हालांकि, वे पाठ्यक्रम संबंधी गंभीर चिंताओं या भेदभावपूर्ण नीतियों को ठीक करने में विफल रहे जो तिब्बती छात्रों के लिए सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषा शिक्षा की राह में बाधा डालती हैं। केवल पिछले साल ३४ हजार से अधिक तिब्बती निवासियों को विभिन्न कारणों से अपनी पारंपरिक भूमि से सरकार द्वारा निर्मित आवास में स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया गया है, जिसमें जलविद्युत परियोजनाओं के लिए रास्ता बनाना, तथाकथित पारिस्थितिक संरक्षण और तिब्बतियों को एक निश्चित बस्तियों में बसाकर उन पर पीआरसी सरकार के नियंत्रण को सुविधाजनक बनाना शामिल है।
निर्वासित तिब्बतियों के मीडिया की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि कम से कम ४० तिब्बती भिक्षुओं और आम जन को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है। इनमें से आठ को अपनी तिब्बती पहचान को अभिव्यक्त करने के आरोप में तीन साल तक की जेल की सजा मिली है। यातना को मौलिक मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन माने जाने के बावजूद चीनी जेलों पर इसका कोई असर नहीं है और वहां यातना देना आम बात है। कई रिपोर्टें सामने आई हैं कि तिब्बती राजनीतिक कैदियों की चीनी हिरासत में मौत हो गई है, कैदियों को बहुत खराब स्वास्थ्य के कारण या मेडिकल पैरोल पर रिहा कर दिया गया है और तिब्बती कार्यकर्ताओं को चीनी अधिकारियों या चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के गुंडों द्वारा पीटा गया है। तिब्बती अधिकार कार्यकर्ता गोंपो की पर चीनी अधिकारियों द्वारा बार-बार किए गए हमले दर्शाते हैं कि चीनी सरकार किस हद तक तिब्बतियों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही है। हालांकि इस बारे में चीनी कानून में गारंटी है और निष्पक्ष सुनवाई के लिए अपील करने का अधिकार भी शामिल है। तिब्बती भाषा अधिकार कार्यकर्ता ताशी वांगचुक पर भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के गुंडों ने एक होटल के कमरे में घात लगाकर हमला किया और बाद में स्थानीय नगरपालिका ने उन्हें व्यापार लाइसेंस देने से इनकार कर दिया। यह पूर्व राजनीतिक कैदियों पर लगातार हमलों और उनके साथ दुर्व्यवहार का स्पष्ट उदाहरण है।
केवल तिब्बती पहचान को अभिव्यक्त करने और तिब्बती भाषा के उन्मूलन के बारे में चिंता व्यक्त करने मात्र से ही ज़ंगकर जामयांग और गोलॉग पाल्डेन की लंबी जेल की सज़ाएं और प्रभावशाली तिब्बती हस्तियों पर हमला पीआरसी सरकार की लापरवाही और चीनी उत्पीड़न को दर्शाती है। चार तिब्बतियों को अपने गांव में धार्मिक कार्यक्रम शुरू करने के लिए दो-दो साल की कैद की सजा दी गई। इस कार्यक्रम में केवल सांग-सोल, आध्यात्मिक प्रदूषण या रुकावटों की शुद्धि या शुद्धीकरण और तिब्बती बौद्ध धार्मिक लोगों की दीर्घायु और भलाई के लिए प्रार्थना किया जाना था। इसके अलावा, छुल्ट्रिम नाम के एक तिब्बती पुरुष और सेमकी डोल्मा नाम की एक तिब्बती महिला को परम पावन दलाई लामा की तस्वीरें रखने और निर्वासित तिब्बतियों के साथ संवाद करने के दोष में क्रमशः ढाई और डेढ़ साल की कैद की सजा सुनाई गई।
कुख्यात ‘धार्मिक गतिविधि स्थलों के प्रशासन के लिए उपाय’ या आदेश-१९ को लागू करके पीआरसी सरकार ने ‘धर्म के चीनीकरण’ करने को अपने राष्ट्रीय कानूनों का अनिवार्य हिस्सा बनाया है। ऐसा करके सरकार ने धार्मिक संस्थानों को अपने अधीन करने और उन पर नियंत्रण हासिल करने के अपने दुर्भावनापूर्ण प्रयासों का प्रदर्शन किया है। अन्य बातों के अलावा यह अनिवार्य है कि धार्मिक संस्थान अपने सदस्यों को राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान करें, जहां सदस्यों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों और दिशा-निर्देशों, कानूनों और विनियमों और चीन की ‘उत्कृष्ट पारंपरिक संस्कृति’ और धर्म के बारे में निर्देश दिया जाएगा। तिब्बती लोगों को अपनी धार्मिक पहचान को अभिव्यक्त करने और धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेने पर कठोर दंड और मनमानी हिरासत का सामना करना पड़ रहा है। चीनी अधिकारियों ने तिब्बतियों को कालचक्र के एक प्रमुख बौद्ध कार्यक्रम में भाग लेने से इस डर से रोक दिया है कि १,००,००० से अधिक लोगों की सभा सरकार के लिए खतरा पैदा कर सकती है। इस सबसे दो बुनियादी तथ्य निकाले जा सकते हैं, पहला तिब्बती लोगों में सम्मान, प्रतिष्ठा और अपने अधिकारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता का अभाव है और दूसरा चीनी सरकार तिब्बत पर शासन को लेकर असुरक्षित महसूस कर रही है।
तिब्बतियों की निगरानी और उनको नियंत्रित करने के लिए उन्नत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) उपकरणों का उपयोग, दुष्प्रचार अभियान और सेंसरशिप जैसी निगरानी रणनीतियों से तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ०१ फरवरी २०२३ से लागू ‘तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) साइबर सुरक्षा प्रबंधन विनियम’ में तिब्बती संस्कृति, भाषा और धर्म से संबंधित गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को सख्त नियमों और कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। कानून यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि किन उल्लंघनों के कारण किसी तिब्बती को अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिया जा सकता है या गिरफ्तार किया जा सकता है। इस प्रकार चीनी पुलिस को तिब्बतियों को सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक बातचीत के लिए निशाना बनाने की मनमानी शक्ति मिल जाती है। नियमों ने तिब्बतियों के जीवन में व्यवधान और असफलताएं पैदा की हैं। इस तरह वे अपनी संस्कृति के अनुरूप जीवन यापन करने और अपना सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए कई तिब्बती पुरुषों और महिलाओं को परम पावन दलाई लामा की तस्वीरें रखने, तिब्बती बौद्ध धर्म पर ऑडियो सुनने, वीचैट जैसे सोशल मीडिया समूहों पर धार्मिक तत्वों को जमा करने या बात करने के लिए मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा सकता है।
पीआरसी सरकार द्वारा विभिन्न राष्ट्रीयताओं के दमन के कारण निर्वासित तिब्बतियों में स्वघोषित सेंसरशिप पैदा हो गई है और वे निरंतर भय में रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप तिब्बत के अंदर रहने वाले अपने परिवार के सदस्यों को पीआरसी सरकार के आशंकित प्रतिशोध से बचाने के लिए उनके साथ संपर्क तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। पिछले साल, विश्वसनीय रिपोर्टों से पता चला कि जिन तिब्बती युवाओं के परिजन निर्वासित समुदायों में हैं या जो तिब्बत में पीआरसी के दमन को उजागर करने के लिए गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, उन्हें सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने के अवसर से वंचित कर दिया गया था। इसके कारण उन्हें निर्वासन में अपने परिवारों के साथ संबंध तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
चीन का दुष्प्रचार अभियान रणनीतिक रूप से दो लक्ष्यों को साधने के लिए तैयार किया गया है। तिब्बती ऐतिहासिक तथ्यों का मुकाबला करना और अपने मानवाधिकारों के हनन से दुनिया का ध्यान हटाकर उन्हें गुमराह करना। तिब्बत पर ‘नए युग में ज़िज़ांग के शासन पर सीसीपी नीतियां: दृष्टिकोण और उपलब्धियां’ शीर्षक से जारी नवीनतम ‘श्वेत पत्र’ का उद्देश्य मुख्य रूप से उन आंकड़ों का उपयोग करके तिब्बत की एक चमकदार छवि चित्रित करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गलत जानकारी देना है जो कि विकास का संकेत देते हैं। जबकि असल में तिब्बत में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा दिया जा रहा है और तिब्बतियों को किसी भी तरह से लाभ नहीं होने दिया जा रहा है। सभी आधिकारिक दस्तावेज़ों में तिब्बत को बदल कर ज़िज़ांग (तिब्बत के लिए चीनी शब्द) कर दिया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पीआरसी सरकार तिब्बत पर अपने अवैध कब्जे की वैधता साबित करना चाहती है और एक मूल्यवान संस्कृति को खत्म करके अन्यायपूर्ण तरीके से तिब्बत को पुनः वैश्विक स्तर पर लाने का प्रयास कर रही है।
सीसीपी दमन के तहत तिब्बत की सभी अन्यायपूर्ण कथानकों के अलावा पिछले साल कानून और प्रस्तावों के पारित होने के साथ-साथ पीआरसी सरकार की दमनकारी नीतियों की निंदा करने वाले बयानों और रिपोर्टों की भी बाढ़ आ गई है। इस तरह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तिब्बत के लिए समर्थन बढ़ा है। तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह वकालत के लिए एक मंच प्रदान करता है, राजनयिक दबाव बढ़ाता है और सामान्य रूप से अनिवार्य औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों और ‘व्यावसायिक प्रशिक्षण’ कार्यक्रमों सहित अन्य माध्यमों से तिब्बती पहचान को मूल रूप से मिटाने जैसे तिब्बती मुद्दों की समझ को और बढ़ावा देता है।
इसी तरह, पिछले साल बताया गया था कि तिब्बती पहचान में घुसपैठ कर इसे चीनी में बदलने के लिए पीआरसी सरकार के बढ़ते दबाव और दमन के बावजूद तिब्बत के अंदर तिब्बती लोग तिब्बती पहचान को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।