धर्मशाला। स्वयं को भारत का दूत और नालंदा परंपरा का शिष्य कहनेवाले परमपावन दलाई लामा ने हिमाचल प्रदेश के माननीय राज्यपाल को गर्मजोशी से बधाई दी और दोनों ने मुख्य रूप से मन की शांति को बढ़ावा देने में प्राचीन भारतीय परंपरा की प्रासंगिकता और परंपरा के पुनरुद्धार में तिब्बती बौद्ध आचार्यों और संस्थानों के संभावित योगदान पर चर्चा की।
परम पावन ने अपनी आध्यात्मिक संस्कृति के स्रोत और अपने दूसरे घर के रूप में भारत के प्रति तिब्बतियों के सम्मान के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया।
परम पावन ने कहा कि यह भारत की निरंतर उदारता और दया की भावना है कि तिब्बती लोग अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को निर्वासन में संरक्षित करने में सक्षम रहे हैं। उन्होंने आगे आठवीं शताब्दी से तिब्बत में लाई गई नालंदा विश्वविद्यालय की परंपराओं पर सकारात्मक सांस्कृतिक और सभ्यतागत प्रभाव का भी जिक्र किया।
परम पावन राज्यपाल से कहा, भारत की सदियों पुरानी अहिंसात्मक आचरण ’अहिंसा’, कारुणिक आचरण ‘करुणा’ के साथ ही मन और भावनाओं के कामकाज की गहन समझ आज की दुनिया में न केवल प्रासंगिक हैं बल्कि आवश्यक भी है।
परम पावन ने कहा कि प्राचीन परंपरा न केवल भारत के लोगों को लाभान्वित करेगी बल्कि समग्र रूप से विश्व के विकास में योगदान करेगी।
उन्होंने कहा कि नालंदा परंपरा से उत्पन्न तिब्बती बौद्ध दर्शन के ये प्रासंगिक विचार आधुनिक शिक्षा के साथ मिलकर मानवता का व्यापक उपकार कर सकते हैं।
इसके अलावा परम पावन ने तिब्बती बौद्ध दर्शन और तर्कशास्त्र के प्रति पश्चिम की, विशेष रूप से वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों की बढ़ती रुचि को सकारात्मक उम्मीदों के संकेत के रूप में व्याख्यायित किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत पूरी मानवता की मन की शांति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।‘
परम पावन ने तिब्बती लोगों को गर्मजोशी और उदारता से आतिथ्य सत्कार करने के लिए भारत सरकार और जनता के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की।