11/08/2011
नई दिल्ली। तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने कहा कि हिंसा किसी समस्या को हल नहीं कर सकती। भारत इस धरती पर न केवल सबसे ब़डा लोकतंत्र वाला देश है, बल्कि धार्मिक सौहार्द का प्रतीक भी है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा गुरूवार को आयोजित चौथे वार्षिक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि संपन्न और विविधता से पूर्ण सदियों पुरानी भारतीय संस्कृति ने एक अनोखा परिवेश प्रस्तुत की है जिसमें लोगों ने शांति और सद्भाव से रहना सीख लिया है।
उन्होंने कहा कि भारत के लोग मूलत: धार्मिक प्रवृत्ति के, ईश्वर में विश्वास करने वाले और दयालु हैं। भारतीय संस्कृति के इन्हीं सद्गुणों के कारण वे देश को अपना गुरू मानते हैं। दुनिया मानवता से भरे व्यक्तियों की और देश उसके लोगों का होता है। दलाई लामा ने कहा कि भारत इस लोकतांत्रिक अनुभव का उचित उदाहरण है।
उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र लोक शासन की सर्वोत्तम व्यवस्था है और वह अपने लोगों के बीच और सारी दुनिया में इसे ही लागू देखना चाहते हैं। प्रेम, करूणा, दया, मानव मन और आत्मा की श्रेष्ठता में अपना पूर्ण विश्वास दोहराते हुए दलाई लामा ने कहा कि दुनिया के सभी धर्म लोगों को एक की रास्ते पर ले जाते हैं और मुख्य रूप से मानव मस्तिष्क को उन्नत करके पूर्णता का अहसास और खुशी प्रदान करते हैं।
उन्होंने कहा कि हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है और इससे हमेशा क्रोध, कुंठा और अन्य समस्या उत्पन्न होती हैं, इसलिए सभी मुद्दे अहिंसात्मक और शांतिपूर्ण तरीके से हल किए जाने चाहिए। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने इस कार्यकम की अध्यक्षता की। राज्यमंत्री विंसेंट एच. पाला भी समारोह में मौजूद थे। बाद में समारोह में उपस्थित लोगों से बातचीत में दलाई लामा ने कहा कि “इस्लामी उग्रवाद” जैसे शब्दों का प्रयोग दुखद और सर्वथा गलत है, क्योंकि इस्लाम का हिंसा से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने कहा कि समस्या उत्पन्न करने वाले लोग हर धर्म में मौजूद हैं, जिन्हें सही राह पर ले जाने की जरूरत है।