sundayguardianlive.com, २४जुलाई, २०२१
शी की यात्रा ने तिब्बत के ‘चीन का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा’ होने के चीन के दावे के खोखलेपन को उजागर किया या तिब्बती दलाई लामा के ‘सामंती’ शासन से ‘मुक्ति’ दिलाने को लेकर चीन से ‘खुश‘ और उसका ‘आभारी’ हैं।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तिब्बत की अचानक और नाटकीय यात्रा के एक से अधिक निहितार्थ हैं। इसका कोई एक निहितार्थ दूसरे से कम महत्वपूर्ण नहीं है। चीन के सबसे प्रसिद्ध उपनिवेश तिब्बत के सुपर बॉस शी ने चीन के राष्ट्रपति का पद, कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव का पद और चीनी सेना के सर्वोच्च सैन्य कमांडर का पदभार ग्रहण करने के बाद तिब्बत का पहली बार दौरा किया है।
शी के तिब्बत दौरे को जिस असाधारण गोपनीयता में रखा गया और बहुत कम समय के लिए आयोजित किया गया, इसने एक बार फिर चीनी प्रतिष्ठान की अपनी तिब्बती जनता में विश्वास की कमी और अपने सर्वोच्च नेता की व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में चिंता और भय को उजागर कर दिया है। निंगची में नए रेलहेड और महत्वाकांक्षी चेंगदू-ल्हासा रेलवे परियोजनाओं की प्रगति देखने में उनकी गहरी व्यक्तिगत रुचि ने तिब्बत को पूरी तरह से एक उपनिवेश में बदलने के शी के दृढ़ संकल्प और भारत के खिलाफ सैन्य दबाव बढ़ाने के बारे में उनकी योजनाओं को रेखांकित कर दिया है। ब्रह्मपुत्र पर प्रस्तावित मेगा हाइड्रो परियोजना में अपनी रुचि प्रदर्शित करने के लिए किसी सर्वोच्च चीनी नेता की यह पहली यात्रा भी भारत के प्रति उनकी निराशा और अहंकार की अभिव्यक्ति है। बाद में ल्हासा में उनकी नाटकीय उपस्थिति ने जीवन भर के लिए चीन के सर्वोच्च नेता बनने की उनकी महत्वाकांक्षा को भी उजागर कर दिया।
शी के निंगची और फिर ल्हासा में उतरने के दो दिन बाद जिस तरह से चीनी मीडिया द्वारा उनकी यात्रा की सूचना तिब्बती लोगों और विश्व समुदाय को दी गई, उसने तिब्बत के ‘चीन का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा’ होने के चीन के लगातार दावों के खोखलेपन को उजागर कर दिया। तिब्बती दलाई लामा के ‘सामंती’ शासन से ‘मुक्ति’ के लिए चीन के प्रति ‘खुश’ और उसके ‘आभारी’ हैं। तिब्बत से आ रही रिपोर्टों से पता चलता है कि निंगची और ल्हासा दोनों जगहों की उनकी यात्रा के दौरान लगभग कर्फ्यू जैसा लॉकडाउन रखा गया था। कुछ चुनिंदा लोगों की भीड़ को छोड़कर, जो दोनों शहरों में चीन के राष्ट्रीय टीवी कैमरों के सामने अच्छी तरह से सुसज्जित कराकर और हाथ मिलाकर उनका स्वागत करने के लिए लाई गई थी, वहां के लोगों को घर के अंदर रहने का आदेश दिया गया था। जितने समय तक शी तिब्बत में रहे, उतने समय तक तिब्बत की सड़कें सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रहीं और चीन तथा तिब्बत का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के बाद से पहली बार हर तिब्बती शहर, कस्बा और गांव पर, वहां लगाए गए हजारों सुरक्षा कैमरों से बारीक निगरानी रखी गई थी।
शी का मंच पर किया गया यह प्रायोजित नाटक और उनके स्वागत का स्वांग यह दिखाता है कि तिब्बत और तिब्बत के लोगों पर सात दशकों के लौह- नियंत्रण के बावजूद चीनी शासक तिब्बतियों का दिल जीतने में नाकाम रहे हैं। फिर भी, तिब्बत यात्रा के दौरान अपनी निजी सुरक्षा के बारे में इतने भयभीत रहे शी को हाल की घटनाओं पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। इनमें हाल के वर्षों में १५० से अधिक तिब्बती नागरिकों द्वारा आत्मदाह, चीन के औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सार्वजनिक विरोधों की एक अंतहीन शृंखला प्रमुख है। तिब्बत में समय समय पर हुए विरोध प्रदर्शनों के बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रिपोर्ट प्रकाशित होती रही हैं। इनमें १९५९, १९८७, १९८९ और २००८ के देशव्यापी विद्रोह की रिपोर्टें प्रमुख हैं। इसके साथ ही चीनी राष्ट्रपति को भारत और नेपाल की ओर हजारों तिब्बतियों के साहसिक पलायन के बारे में भी अपनी नीति और मंशा स्पष्ट करनी चाहिए।
निंगची में शी के लिए अति महत्वपूर्ण स्थान १६२९ किलोमीटर लंबी चेंगदू-निंगची-ल्हासा रेल परियोजना थी, जिसकी लागत 49 अरब डॉलर है और जो ३००० किलोमीटर लंबे चेंगदू-शिनिंग-गोर्मो-ल्हासा-निंगची रेल मार्ग के स्थान पर शुरू की गई है। इस नई रेल लाइन के माध्यम से अब चीनी सेना को पहले के ४८ घंटे के मुकाबले केवल १० घंटों में ही भारतीय सीमाओं पर पहुंचाया जा सकता है। इससे तिब्बत पर चीन की सुरक्षा पकड़ और मजबूत हो गई है। यह नया घटनाक्रम भारतीय रक्षा बलों के लिए एक नई चुनौती पेश कर सकता है, जिन्होंने पांच साल पहले ही अपनी सीमा चौकियों को सड़कों से जोड़ना शुरू किया था। असल में, वर्तमान की नरेंद्र मोदी सरकार ने पांच साल पहले सीमाओं को सड़कों से न जोड़ने की पूर्ववर्ती सरकारों की नीति को पलट दिया था। पूर्ववर्ती सरकारों ने इस डर से सीमा तक सड़क बनाने का काम नहीं किया था कि युद्ध के समय चीनी सेना भारतीय मुख्य भूमि पर कब्जा करने के लिए इन सड़कों का इस्तेमाल करेंगे।
शी की ब्रह्मपुत्र यात्रा से भारतीय सीमा पर बांधों और बिजलीघरों का एक परिसर बनाने की उनकी योजना की पुष्टि होती है। यह दुनिया के सबसे बड़े और चीन के गौरव ‘थ्री गोरजेस डैम’ से तीन गुना बड़ा होगा। यदि यह पूरा हो जाता है तो यह भाखड़ा- नंगल बांध से १११ गुना और भारत की शीर्ष पांच समान परियोजनाओं की कुल स्थापित क्षमता से नौ गुणा बड़ा होगा। चीन द्वारा भारत की सीमाओं पर नदियों और बांधों के साथ छेड़छाड़ के कारण भारत को कम से कम तीन बार गंभीर बाढ़ का सामना करना पड़ा है। ब्रह्मपुत्र पर शी की खतरनाक बांध की योजना भारत के लिए एक और बुरा सपना बनने जा रहा है।
अपने हालिया भाषणों में शी ने घोषणा की थी, ‘देश पर शासन करने के लिए सीमा पर शासन करना आवश्यक है और सीमा पर शासन करने के लिए पहले तिब्बत को स्थिर करना आवश्यक है।’ शी का घोषित उद्देश्य आजीवन चीन का सर्वोच्च नेता बनना है जो माओ और देंग शियाओपिंग की शक्ति और लोकप्रियता से लैस होगा। इस सपने को पूरा करने के लिए शी को तिब्बत पर नियंत्रण और भारतीय सीमाओं पर प्रभुत्व कायम करना होगा। तिब्बत की उनकी अचानक यात्रा उनकी चिंता और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के उनके दृढ़ संकल्प- दोनों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है। भारत न तो शी के नवीनतम कदमों और न ही सीमा पार तिब्बत में उनके मंसूबों को नजरअंदाज करने का जोखिम उठा सकता है।
विजय क्रांति तिब्बत-चीन के घटनाक्रमों पर लगातार नजर रखने वाले वरिष्ठ भारतीय पत्रकार हैं। वह ‘सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट’, नई दिल्ली के अध्यक्ष हैं।