दैनिक जागरण, 24 जनवरी 2013
जयपुर [जासं]। शांति के लिए नोबल सम्मान पा चुके तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत को सेकुलरिज्म का जीवंत उदाहरण मानते हैं। अपने जीवनी लेखक पिको अय्यर से बातचीत के दौरान दलाई लामा ने कहा कि सेकुलरिज्म अर्थात धर्मनिरपेक्षता का प्रचार ही मेरा उद्देश्य है। लेकिन सेकुलरिज्म का मतलब धर्म के प्रति असम्मान का भाव रखना बिल्कुल नहीं होता। इसका मतलब है सभी धर्मो का सम्मान करना। यहां तक कि नास्तिकों का भी सम्मान करना।
दलाई लामा कहते हैं कि भारत के लोग बड़े धार्मिक हैं। यहां के गांवों में रहनेवाले कम पढ़े-लिखे लोग भी देवी-देवताओं की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं और संस्कृत श्लोकों का अर्थ न जानते हुए भी पूरी श्रद्धा से उनका पाठ करते हैं।
भौतिकतावादी संस्कृति से दूर रहने का संदेश देते हुए आध्यात्मिक गुरु ने कहा कि सभी लोग सुखी जीवन चाहते हैं। लेकिन वह इसे बाहर की दुनिया में खोजते नजर आते हैं। यह गलत है। सुख और संतोष तो हमें अपने अंदर खोजना चाहिए।