
बायलाकुप्पे। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के गृह विभाग द्वारा आयोजित तिब्बती कृषि सम्मेलन २० फरवरी को कर्नाटक के बायलाकुप्पे में जैविक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ओआरटीसी) में शुरू हुआ, जिसमें गृह विभाग के वर्तमान कलोन (मंत्री) सिक्योंग पेन्पा शेरिंग मुख्य अतिथि थे। २० से २२ फरवरी २०२५ तक चलने वाले इस सम्मेलन का उद्देश्य तिब्बती बस्तियों में कृषि चुनौतियों का समाधान करना और टिकाऊ खेती के तरीके तलाशना रहेगा।
सम्मेलन हॉल में प्रवेश करने से पहले सिक्योंग ने इस परिसर के संचालन के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए आसपास के कार्यालयों और मवेशी शेड का दौरा किया। इस कार्यक्रम में गृह विभाग (डीओएच) के सचिव पाल्डेन धोंडुप, दक्षिण क्षेत्र के मुख्य प्रतिनिधि अधिकारी जिग्मे सुल्त्रिम, अतिरिक्त सचिव शेरिंग यूडन, डीओएच; ओआरटीसी के निदेशक शेरिंग दोरजी और भारत भर में कृषि आधारित विभिन्न तिब्बती बस्तियों के बस्ती अधिकारी और कृषि विस्तार अधिकारी के साथ ही गृह विभाग के कृषि अनुभाग के प्रतिनिधि शामिल हुए।
सम्मेलन की शुरुआत गृह सचिव पाल्डेन धोंडुप की टिप्पणियों से हुई, जिन्होंने निर्वासन में तिब्बती कृषि के विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने शुरुआती वर्षों से की गई महत्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला। शुरुआत में तिब्बती बस्तियों में बसने वालों ने सीमित कृषि ज्ञान के साथ केवल कुछ फसलें उगाईं। आधुनिक कृषि तरीकों पर चर्चा करते हुए उन्होंने रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के संभावित खतरों के बारे में चेतावनी दी और टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों की आवश्यकता पर बल दिया।
सचिव के उद्घाटन भाषण के बाद सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने मुख्य भाषण दिया। इसमें उन्होंने तिब्बती बस्तियों में टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिए सीटीए की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। सिक्योंग ने कहा कि १९६० और ७० के दशक में तिब्बती बाशिंदे मुख्य रूप से निर्वाह खेती में लगे हुए थे, जो मक्का, आलू और बाजरा जैसी प्रमुख फसलों पर निर्भर थे। हालांकि, सीटीए और परम पावन दलाई लामा के आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण के नेतृत्व में पहल के समर्थन से तिब्बती खेती विकसित हुई है। ओरआरटीसी जैसे केंद्रों की स्थापना और आधुनिक तकनीकों को अपनाने से किसानों को फसलों में विविधता लाने, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने और जैविक कृषि पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली है।
सिक्योंग ने रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता के महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी अपनी बात रखकर गृह सचिव की चिंताओं को ही दोहराया। सिक्योंग ने जोर देकर कहा, ‘हमें आधुनिक प्रगति और पारंपरिक ज्ञान के बीच संतुलन बनाना चाहिए।’ सिक्योंग ने आगे जोर दिया कि जैविक खेती, जैसे खाद बनाना और प्राकृतिक कीट नियंत्रण, दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तिब्बती कृषि प्रणाली का केंद्र बनना चाहिए।
सिक्योंग ने खेती में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता को एक महत्वपूर्ण बिंदु के तौर पर इंगित किया। कई युवा तिब्बती शहरी क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं और कृषि से दूर जा रहे हैं, सिक्योंग ने युवा पीढ़ी को खेती को एक व्यवहार्य और सम्मानजनक कैरियर के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि उचित प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता के साथ, युवा तिब्बती कृषि को आधुनिक बनाने और अपने समुदायों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
अपने भाषण के निष्कर्ष के तौर पर सिक्योंग ने किसानों को निरंतर वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए सीटीए की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने तिब्बती बस्तियों और उनकी कृषि पहलों के निरंतर समर्थन के लिए भारत सरकार, विशेष रूप से कर्नाटक के प्रति आभार व्यक्त किया। तीन दिनों तक चलने वाले सम्मेलन में टिकाऊ खेती के तरीकों और तिब्बती कृषि के भविष्य पर आगे की चर्चा होगी।
सम्मेलन ने तिब्बती बस्ती अधिकारियों, कृषि विशेषज्ञों और किसानों को चल रही चुनौतियों पर चर्चा करने, ज्ञान का आदान-प्रदान करने और कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव करने के लिए मूल्यवान मंच प्रदान किया। प्रतिभागियों को प्रमुख कृषि मुद्दों पर चर्चा करने, सर्वोत्तम प्रणालियों को साझा करने और तिब्बती बस्तियों में टिकाऊ खेती के लिए कार्रवाई योग्य योजनाओं पर सहयोग करने के लिए समूहों में विभाजित किया गया था।









