तिब्बत.नेट
ओटावा, कनाडा। हम दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में एक हैं। हमें स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानव अधिकारों के पक्ष में खड़े होना चाहिए। जब हम सीसीपी द्वारा उग्युर, तिब्बतियों, और फालुन गोंग साधकों के उत्पीड़न का मूकदर्शक बन कर रहेंगे तो कनाडा कैसे अपने मूल्यों पर कैसा खड़ा रह सकता है? ष् यह सवाल फ्लेमबोरो- ग्लेनब्रुक (ओंटारियो) से सांसद डेविड स्वीट के हैं जो उन्होंने कनाडा-चीन संबंधों पर विशेष समिति के सत्र के दौरान 25 मई को कनाडा के हाउस ऑफ कॉमंस में पूछा।
कंजर्वेटिव सांसद शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में बोल रहे थे। सदन में दिए अपने बयान में एमपी स्वीट ने चीन के उग्युर, तिब्बतियों, फालुन गोंग साधकों और ईसाइयों के अभूतपूर्व उत्पीड़न के मामलों पर प्रकाश डाला।
सीसीपी द्वारा मानव अधिकारों के कई खतरनाक उल्लंघनों के मामले में चीन की निंदा करते समय मूल चीनियों और अन्य नस्लीय समूहों के चीनी नागरिकों के बीच भेदभाव और नफरत फैलाने का कोई मापदंड नहीं होना चाहिए।
कनाडाई सांसद ने स्पष्ट किया कि चीनी सरकार के प्रति उनके आलोचनात्मक बयान को चीनी लोगों के खिलाफ नहीं ठहराया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने कहा, “चीनी लोग सीसीपी के शासन में खुद उत्पीड़ित हैं। वे सीसीपी शासन द्वारा अत्याचार के शिकार हैं। यह एक ऐसा शासन है जिसके तहत वे पीड़ित हैं।” उन्होंने आगे कहा कि सीसीपी शासन के कार्यों से चिंतित कनाडा ने दिसंबर 2019 में कनाडा-चीन संबंधों पर एक विशेष समिति के गठन का प्रस्ताव पारित किया है।
सांसद स्वीट ने दावा किया कि शी-जिनपिंग के नेतृत्व में सीसीपी एक क्रूर और अधिनायकवादी शासन है जो अपने नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर क्रूर अत्याचार करता है। उन्होंने समझाते हुए कहा कि सीसीपी का मानव अधिकारों के किसी भी स्वीकार्य अंतरराष्ट्रीय मानकों को नकारने का सुसंगत और जाने- समझे तरीके का लंबा इतिहास है है।
इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण चीन का झिंझियांग प्रांत में उग्युरो का उत्पीड़न है। चीन में उग्युर मुस्लिम अल्पसंख्यक को पुनर्शिक्षा शिविरों में हिरासत में रखा गया है, जहां उनका ब्रेनवॉश किया जाता है और सीसीपी द्वारा श्रमसाध्य काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके अलावा, सीसीपी ने उग्युरों को बेहद भीड़भाड़ वाले शिविरों में कैद कर रखा है। यहां उनके बारे में किसी को कोई चिंता नहीं है और यहां बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है। ऐसी बीमारियों के तेजी से फेलने इन शिविरों में कई लोगों की मौत हो गई है।
तिब्बत के मुद्दे पर बात किए बिना चीन के दमनकारी शासन के बारे में बात पूरी नहीं की जा सकती है। तिब्बत में सीसीपी द्वारा नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों का सबसे लंबे समय से उत्पीड़न किया जा रहा है।
सांसद डेविड स्वीट जब से सांसद हैं, उतने लंबे समय से तिब्बत समर्थक रहे हैं। वह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों पर उप-समिति में चीनी शासन के तहत तिब्बत में झेले जा रहे मानवाधिकार के मुद्दों पर मुखर रहे हैं।
उनका मानना है कि सीसीपी तिब्बत के लंबे और गौरवपूर्ण इतिहास को अपने शासन के लिए खतरा मानता है। इस वजह से सीसीपी महत्वाकांक्षा से प्रेरित है कि ऐसा कोई भी व्यवहार तिब्बती संस्कृति को बढ़ावा देता हो, तुरंत क्रूरता से कुचल देने लायक है। उनकी यह व्यवहार इतना क्रूर है कि तिब्बती लोग चीनी शासन के विरोध में आत्मदाह कर रहे हैं। 2009 के बाद से चीनी शासन के विरोध में तिब्बत के 128 पुरुषों और 28 महिलाओं ने खुद को आग के हवाले कर दिया है।
सदन के बाकी सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने पूछा, हम क्या बन गए हैं कि हम ऊंची आवाज में चिल्लाते भी नहीं हैं और इन जघन्य मानव अधिकारों के उल्लंघन के अपराधियों के खिलाफ कार्यवाहियों को मंजूरी भी दे रहे हैं?
इसी तरह, चीन में ईसाई अल्पसंख्यक नास्तिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का एक और पसंदीदा निशाना है। सीसीपी उनकी नागरिकता पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है, बनाए हुए है भी। शी जिनपिंग के शासन में यह पकड़ और भी सख्त हो गई है। गिरजाघरों को बंद किया जा रहा है, बड़ी संख्या में पादरियों को जेल भेजा जा रहा है। इधर पुलिस द्वारा उनकी अचानक और लगातार गिरफ्तारी और पूछताछ की घटनाएं बढ़ ही रही है।
चीन में फालुन गोंग साधकों का उत्पीड़न आधिकारिक उत्पीड़न का एक और उदाहरण है।
अंत में, सांसद स्वीट ने सीसीपी द्वारा अपने ही लोगों के उत्पीड़न पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अधिकांश चीनी लोग अधिनायकवादी शासन के तहत रहते हैं जो हर चीज पर कठोर नियंत्रण रखता है। इंटरनेट, उनकी बातचीत की सामग्री और शिक्षा प्रणाली, आदि। वहां “प्रेस की कोई स्वतंत्रता नहीं है, धर्म की कोई स्वतंत्रता नहीं है, कानून का कोई सुसंगत नियम नहीं है। जिस किसी को भी गिरफ्तार किया जाता है उन पर एक कपोल कल्पित आरोप मढ़ दिए जाते हैं। चीनी पुलिस केवल चीनी कम्युनिस्ट तंत्र के प्रति जवाबदेह है।”
शी जिनपिंग के शासन में वकील, पत्रकार, ब्लॉगर, महिला कार्यकर्ता और अल्पसंख्यकों के लिए काम करनेवालों और शासन से असंतुष्ट लोगों पर नकेल कसना आम बात हैं। सीसीपी को अपने लोगों की कोई परवाह नहीं है।
सीसीपी द्वारा मानवाधिकारों के हनन के इन पांच उदाहरणों के अलावा सांसद डेविड स्वीट ने दो कनाडाई-माइकल कोवरिग और माइकल स्पावर के मामले को उजागर किया, जो चीनी सरकार द्वारा अनुचित रूप से कैद किए गए हैं। उन्होंने कहा कि सीसीपी का कनाडा और अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को लगातार हथियार बनाए जाने की निंदा की जानी चाहिए।
उन्होंने हांगकांग पर चीन की हाल की कार्रवाई पर सदन का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, ष्ऐसे समय में जब कोविड-19 ने दुनिया को अपने मौत के जाल में फांस रखा है, चीन हांगकांग पर शिकंजा कस रहा है। वह उम्मीद करता है कि ऐसे समय में कोई भी इस पर ध्यान नहीं देगा। विरोध करने के लिए हजारों हांगकांग वासी सड़कों पर उतर आए। हम एक देश दो शासन के समझौते के अंत का गवाह बन रहे हैं। हम हांगकांग का अंत देख रहे हैं।”
उन्होंने दुनिया भर के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों से स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए खड़े होने का आग्रह किया। उन्होंने कनाडा सरकार को बातचीत से आगे बढ़कर और अधिक करने के लिए भी प्रेरित किया।