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धर्मशाला। चीनी सरकार के दमन के खिलाफ तिब्बत और तिब्बतियों के अधिकारों के लिए दृढ़ता और साहस के साथ खड़े होने वाले पूर्व तिब्बती राजनीतिक कैदी जिग्मे ग्यात्सो का ०२जुलाई २०२२को उनके आवास पर निधन हो गया। यह जानकारी एक विश्वसनीय स्रोत ने दी। उनकी मृत्यु उन तिब्बतियों की लंबी सूची में नवीनतम है जो यातना, चिकित्सा उपचार से इनकार, न्यायेतर हत्या और जबरन गायब कर मारे गए हैं।
लाब्रांग मठ के जिग्मे ग्यात्सो, जिन्हें लोकप्रिय रूप से जिग्मे गोरिल के रूप में जाना जाता है, का पारंपरिक अम्दो प्रांत के कनल्हो (चीनी: गन्नन) तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर में उनके निवास पर निधन हो गया। स्रोत के अनुसार, मौत का कारण अज्ञात है, हालांकि २०१६ में जेल से रिहा होने के बाद से उनका स्वास्थ्य बहुत खराब चल रहा था।
अन्य मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि जिग्मे बच सकते थे, यदि चीनी सरकार ने उन्हें और उनके परिवार को जेल में यातना दिए जाने के कारण होने वाली चोटों से उबरने के लिए सही समय पर आपातकालीन चिकित्सा उपचार से वंचित नहीं किया होता।
मई में उनका स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गयाऔर उन्हें बिना किसी सफलता के लंबी अवधि के लिए किंघई प्रांत के ज़िनिंग में एक चिकित्सा केंद्र में भर्ती करा दिया गया। निर्वासित मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्यात्सो के बारे में जानकारी को दबाने के चीनी सरकार के प्रयासों के कारण उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना कठिन होता जा रहा है, जिस में एक हालिया तस्वीर भी शामिल है।
जिग्मे ग्यात्सो २००९के एक वीडियो में चीनी अधिकारियों द्वारा किए गए क्रूर दमन के खिलाफ गवाही देने के बाद लोगों की निगाह में आए। इस गवाही को इंटरनेट पर व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था। वीडियो में, उन्होंने लगातार अमानवीय पिटाई, बार-बार अस्पताल में भर्ती होने, कई दिनों तक भोजन और पानी से अलग कर दिए जाने, जबरन कबूलनामे और जेल के मरनासन्न कर देनेवाले माहौल में पूछताछ के अपने कष्टों को उजागर किया था।
भारत में परम पावन दलाई लामा द्वारा आयोजित एक धार्मिक समारोह में भाग लेकर लाबरांग मठ लौटने के बाद ग्यात्सो को पहली बार २००६ में हिरासत में लिया गया था। हालांकि, जब २००८ में चीनी अधिकारियों द्वारा आयोजित एक मीडिया टूर के दौरान अभूतपूर्व विरोध- प्रदर्शन हुआतो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें विरोधियों का सरगना मानकर पुलिस हिरासत में बुरी तरह पीटा गया और एक साल बाद बिना किसी औपचारिक मुकदमा चलाए ही रिहा कर दिया गया। हिरासत में उनकी मृत्यु न हो जाए, इसी प्रयास में जिग्मे ग्यात्सो को तुरंत रिहा कर दिया गया। हालांकि यह नजरबंदी उनके लिए घातक साबित हुई।
२०१० में उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया और रिहा होने से पहले ‘राजनीतिक पुन: शिक्षा’ के लिए उन्हें फिर से बिना किसी आरोप के छह महीने के लिए एक होटल में रखा गया। उन्हें आखिरी बार २०११ में हिरासत में लिया गया। इस बार उन्हें गांसु में कनल्हो पीपुल्स इंटरमीडिएट कोर्ट ने ‘राष्ट्र को विभाजित करने’ का दोष सिद्ध होने पर पांच साल जेल की सजा सुनाई थी। २६ अक्तूबर २०१६ को उनकी रिहाई के बाद चीनी अधिकारियों ने उनके परिवार को स्वागत समारोह आयोजित नहीं करने की चेतावनी दी। इसके अलावा, ग्यात्सो को सलाह दी गई थी कि वह कभी भी भिक्षु के चीवर न पहनें और मठ में कभी न लौटें।
वह आमदो पारंपरिक तिब्बती प्रांत में गांसु प्रांत के कन्ल्हो तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के सांगचु काउंटी के लाब्रांग शहर के रहने वाले थे।
चीनी अधिकारियों द्वारा तिब्बती कैदियों को जेल की सजा काटने के दौरान ही नियमित रूप से अमानवीय यातना और दण्ड शर्तों की परवाह किए बिना ही दी जाती है। इस तरह की कार्रवाइयां अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियों द्वारा अवैध घोषित की जा चुकी हैं। उन में से एक कानून है- कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर, जिसे लागू करने के लिए चीन बाध्य है। लेकिन इसके बावजूद यातना के परिणामस्वरूप अक्सर तिब्बती कैदी भयानक चोटों और कभी-कभी मृत्यु को भी प्राप्त होते हैं। २००८में चीनी शासन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विद्रोह के बाद से तिब्बत के अंदर तिब्बतियों की यातना से संबंधित मौतों के कम से कम ५०ज्ञात मामले हैं।