स्थिति की तुलना झिंझियांग में उग्यूरों से की जा रही है।
rfa.org / ताशी वांगचुक
संयुक्त राष्ट्र के एक मानवाधिकार विशेषज्ञ ने चिंता जताते हुए कहा है कि चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में अनिवार्य व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और श्रमिकों के स्थानांतरण से तिब्बतियों के मानवाधिकारों पर व्यापक दुष्प्रभाव हो सकता है, जैसा कि झिंझियांग में उग्यूरों के साथ हुआ है।
गुलामी के समकालीन रूपों पर संयुक्त राष्ट्र के स्पेशल रिपोर्टियर टोमोया ओबोकाटा और संयुक्त राष्ट्र के अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि तिब्बत में व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का उपयोग तिब्बती धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने और तिब्बतियों की निगरानी और राजनीतिक रूप से उकसाने के लिए किया जा रहा है।
२७ अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय से जारी एक विज्ञप्ति में ओबोकाटा और अन्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि ऐसे कार्यक्रमों से जबरन श्रम को बढ़ावा दिया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ के अनुसार, २०१५ के बाद से लाखों तिब्बतियों को उनके पारंपरिक ग्रामीण जीवन से हटाकर अकुशल और कम-वेतन वाले रोजगार में ‘स्थानांतरित’ कर दिया गया है।
ओबोकाटा ने कहा कि वह चीनी सरकार की प्रतिक्रिया के अनुवाद की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसने पहले कहा है कि व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भागीदारी स्वैच्छिक है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के प्रोफेसर ओबोकाटा ने २८ अप्रैल को रेडियो फ्री एशिया को बताया कि, ‘लेकिन व्यवहार में और हमें विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अक्सर उनके (तिब्बतियों) के पास कोई विकल्प नहीं होता है। इसलिए उनके पास इसे स्वीकार करने के अलावा कोई और चारा नहीं होता है।‘
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने के सभी मामले जबरन वाले ही हैं, क्योंकि इस बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। लेकिन झिंझियांग की तरह की स्थिति में जबरन श्रम के कुछ संकेतक मौजूद मिले हैं, इसलिए हम सरकार से इस स्तर पर स्पष्टीकरण मांग रहे हैं और जवाब देने के लिए कह रहे हैं।‘
चीनी अधिकारियों द्वारा २०१७ में झिंझियांग में ‘पुनः शिक्षा’ शिविरों में उग्यूरों को मनमाने ढंग से हिरासत में रखने के कुछ मामले आए हैं और कुछ उग्यूरों को जबरन श्रम और अन्य अधिकारों के हनन का शिकार होना पड़ा है। चीनियों का कहना रहा है कि वे शिविर व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र थे जो अशांत क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद को रोकने के लिए लगाए गए थे।
अगस्त २०२२ में जारी २० पन्नों की एक रिपोर्ट में ओबोकाटा ने कहा कि झिंझियांग में उग्यूर, कजाख और अन्य नस्लीय अल्पसंख्यकों को दो सरकारी प्रणालियों के तहत कृषि और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में जबरन श्रमिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां अल्पसंख्यकों को हिरासत में लिया जाता है और उन्हें कहीं जरूरत के अनुसार काम पर लगा दिया जाता है या अधिशेष ग्रामीण मजदूर के तौर पर रखा जाता है।
ग्रामीण श्रमिकों का स्थानांतरण
रिपोर्ट के अनुसार, इसी तरह के उपाय पड़ोसी तिब्बत में मौजूद हैं, जहां व्यापक श्रम स्थानांतरण कार्यक्रम के तहत तिब्बती किसानों, चरवाहों और अन्य ग्रामीण श्रमिकों को अकुशल और कम वेतन वाली नौकरियों में स्थानांतरित किया जा रहा है। चीनी सरकार तिब्बतियों की राजनीतिक गतिविधियों और उनके बौद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करती है। तिब्बती अक्सर चीनी अधिकारियों द्वारा भेदभाव और मानवाधिकारों के हनन की शिकायत करते हैं और उनका आरोप है कि चीनी नीतियों का उद्देश्य उनकी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान को मिटा देना है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने समाचार विज्ञप्ति में कहा, ‘तिब्बतियों को आजीविका के दीर्घकालिक साधनों से दूर किया जा रहा है, जिसमें उनके परंपरागत रूप से ऊन और डेयरी उत्पादन जैसे रोजगार हुआ करते थे। इसकी जगह तुलनात्मक रूप से कम लाभ और कम वेतन वाले विनिर्माण और निर्माण जैसे अकुशल काम में लगाया जा रहा है।‘
उन्होंने आगे कहा कि तिब्बतियों को प्रशिक्षण केंद्रों से सीधे नए कार्यस्थलों पर स्थानांतरित किया जाता है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने ऐसी नौकरियों के लिए सहमति दी है या नहीं। विशेषज्ञों ने कहा कि लेकिन निगरानी न होने की वजह से यह सुनिश्चित करना असंभव हो जाता है कि क्या जो काम करवाया जा रहा है वह जबरन है या नहीं।
ओबोकाटा और अन्य लोगों ने चिंता जताई है कि व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इससे ‘नस्लीय भेदभाव की रोकथाम करनेवाले अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन’ कर एक गैर-विविधता वाला, एक नस्लीय और एक जातीय राष्ट्र को बढ़ावा दिया जा सके।
उन्होंने चीन से तिब्बतियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और श्रम स्थानांतरण कार्यक्रमों से बाहर निकलने के लिए किए गए उपायों के बारे में विवरण प्रदान करने, अपने नए रोजगार के स्थानों में तिब्बतियों की कामकाजी परिस्थितियों की निगरानी करने और तिब्बती धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के लिए सम्मान सुनिश्चित करने का आह्वान किया।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने मुख्य रूप से झिंझियांग में मुस्लिम- उग्यूर अल्पसंख्यकों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए चीनी सरकार को एक पत्र भी सौंपा। ओबोकटा ने कहा, ‘हम इन मामले में समानता देख रहे हैं, इसलिए हम इस समय तिब्बती लोगों के लिए अपनी गहरी चिंता व्यक्त कर रहे हैं।