वाराणसी। सदाचार और मानवीय गुणों का संदेश देने के बाद तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने मंगलवार को भगवान गौतम बुद्ध की तपस्थली सारनाथ से विदा ले लिया। नौ दिनी प्रवास के दौरान उन्होंने विश्व में शांति स्थापना के उपायों से लेकर भारत-तिब्बत संबंधों, सदाचार, दृढ़ता और मोक्ष की परम गति तक पहुंचने का मार्ग बताया। अंतिम दिन उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए सारनाथ भीड़ से पट गया। आसपास की बस्तियों के लोग भी शांति दूत को विदा करने के लिए रास्तों पर खड़े थे। इसी के साथ अनुयायियों के बेड़े में वतन लौटने की फिक्र बढ़ गई है।
परम पावन दलाई लामा ने सुबह सवा नौ बजे केंद्रीय तिब्बती अध्ययन विश्व विद्यालय से प्रस्थान किया। लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बाबतपुर के लिए काफिला निकलने से पहले वीआईपी अतिथि गृह के बाहर सैलाब उमड़ पड़ा। बौद्ध भिक्षुओं, मठाधीशों, छात्रों, महिलाओं और विभिन्न संस्कृति के लोगों की कतार लग गई। हर हाथ में खाता और सुलगती हुई अगरबत्ती थी। सड़क से गेस्ट हाउस तक लगी लाइन में सिंहपुर, बेनीपुर, दनियालपुर, घुरहूपुर, परशुरामपुर, बेनीपुर और आसपास की बस्तियों के लोग भी जहां -तहां लाइन में लगे हुए थे।
रवाना होने से पहले कुछ बौद्ध भिक्षुओं और गेशे ने परम पावन से मुलाकात भी की। खोठ कला संस्कृति के लोग खेतान के बगीचे के अलावा बाहर की लॉन में पारंपरिक वेश में स्वागत की मुद्रा में खड़े थे। बड़ी तादात में दूसरे देशों से आए नागरिकों और बौद्ध धर्म के अनुयायी परम पावन के दीर्घायु होने की कामना कर रहे थे। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु बाबतपुर से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इससे पहले उन्होंने अहिंसा, प्रेम, दया, करुणा, मैत्री, सद्वचन, सदाचार और शांति का पाठ पढ़ाया।
शांति दूत को नमन करने उठे हजारों हाथ
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