प्रो0 श्यामनाथ मिश्र
पत्रकार
गत 10 मार्च, 2019 को तिब्बती जनक्रांति दिवस की 60 वीं वर्षगाँठ मनाई गई। भारत में जोधपुर, भागलपुर, मेरठ, दिल्ली, मनगौड, बंगलुरू, पटना तथा नवादा आदि स्थानों पर विशेष कार्यक्रम हुए। ऐसा विश्व के विभिन्न देशों में हुआ। ज्ञातव्य है कि मार्च 1959 में चीन सरकार ने जबर्दस्त नरसंहार करते हुए स्वतंत्र तिब्बत पर गैरकानूनी कब्जा कर लिया था। उसी मार्च माह में परमपावन दलाई लामा अन्य तिब्बतियों के साथ तिब्बत से भारत आये थे। भारत को वे इसीलिए अपना दूसरा घर कहते हैं। वे भारत को अपनी गुरूभूमि तथा देवभूमि कहते हैं। संकट की घड़ी में अपनी सुरक्षा एवं निवास के लिए उन्होंने भारत को ही चुना, क्योंकि उनके अनुसार भारत तो तिब्बत का गुरू है और तिब्बत है भारत का चेला।
जनक्रांति दिवस के सभी कार्यक्रमों में यही मांग उठी है कि तिब्बत समस्या का शीघ्र समाधान किया जाये। तिब्बत में मानवाधिकारों का क्रूरतापूर्वक हनन लगातार जारी है। धार्मिक अधिकार चीन सरकार की इच्छा के गुलाम हैं। चीन सरकार बौद्ध स्थलों, संस्थानों एवं मंदिरों को ध्वस्त करने में लगी है। वह बौद्ध परंपरा में वर्णित पुनर्जन्म और अवतार की अवधारणा भी विकृत कर रही है। वह स्वयं पंचेन लामा के पुनर्जन्म की व्याख्या करने लगी है जबकि यह धार्मिक मामला है। इसीलिये दलाई लामा ने घोषणा की है कि उनका पुनर्जन्म चीन सरकार द्वारा नियंत्रित देश में नहीं होगा। उनका पुनर्जन्म आजाद भारत में होगा। बौद्ध परंपरानुसार विशिष्ट प्रक्रिया अपनाकर नये दलाई लामा की खोज की जाती है। चीन ने उसी विशिष्ट प्रक्रिया पर पाबन्दी लगा रखी है। उसी का नतीजा है कि उसने पंचेन लामा गेदुन चुकी नीमा का सपरिवार अपहरण कर लिया है तथा उनकी जगह एक नकली पंचेन लामा की नियुक्ति कर दी है। तिब्बत में बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणी आध्यात्मिक शिक्षा से वंचित किये जा रहे हैं।
फिर भी खुशी की बात है कि विश्व के अनेक देशों में तिब्बती आंदोलन के लिए सहयोग-समर्थन लगातार बढ़ रहा है। इसी मार्च 2019 में निर्वासित सरकार के सिक्योंग डॉ. लोबजंग संग्ये ने ‘‘धन्यवाद कार्यक्रम’’ के अन्तर्गत चेक गणराज्य का दौरा किया। वर्ष 2018-19 को तिब्बती समुदाय ने अपने समर्थकों को धन्यवाद देने के लिये धन्यवाद वर्ष के रूप में मनाया है। इसकी शुरूआत भरत में हुई तथा समापन चेक गणराज्य में। अमरीका, आस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड एवं फ्रांस आदि देशों में इसके अन्तर्गत कई सफल आयोजन हुए। यूरोप में तिब्बत समर्थक सर्वदलीय सांसदों का सबसे बड़ा मंच चेक गणराज्य में ही है। इस दृष्टि से जापान का स्थान विश्व में पहला है।
चेक गणराज्य के राष्ट्रपति वाक्लेव हवेल ने 90 के दशक में चीनी सरकार के विरोध के बावजूद दलाई लामा को औपचारिक रूप से निमंत्रित किया था। तभी से चेक में तिब्बत समर्थन बढ़ता जा रहा है। बाद में भी दलाई लामा ने वहाँ की यात्रायें की हैं। चीन अभी भी विभिन्न देशों को धमकाता रहता है कि वे तिब्बती आंदोलन का साथ नहीं दें। इसके बावजूद तिब्बत के पक्ष में जनसमर्थन ज्यादा रचनात्मक होता जा रहा है। इसका प्रमाण तिब्बती जनक्रांति दिवस की 60वीं वर्षगाँठ पर धर्मशाला में आयोजित औपचारिक कार्यक्रम है। निर्वासित तिब्बत सरकार द्वारा 10 मार्च को आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न देशों के तिब्बत समर्थक सर्वदलीय संसदीय मंच के प्रतिनिधि शामिल हुए। विभिन्न देशों के संयुक्त सर्वदलीय संसदीय मंच के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व बोत्सवाना के पूर्व राष्ट्रपति आईएएन खामा कर रहे थे। प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा को तिब्बती संघर्ष में भरपूर सहयोग देते रहने का दृढ़ निश्चय दोहराया तथा आशा व्यक्त की कि समस्या का समाधान शीघ्र ही होगा।
ध्यान देने की बात है कि विश्वभर में जब तिब्बती जनक्रांति दिवस के अनेक कार्यक्रम चल रहे थे उन्हीं दिनों तिब्बत की राजधानी ल्हासा में ऐसे किसी भी आयोजन को रोकने के लिए चीन सरकार ने विशेष सुरक्षा बल तैनात कर दिये। तिब्बतियों तथा अन्य पर्यटकों की जासूसी की जाने लगी। चीन सरकार को भय है कि तिब्बत में उसके द्वारा किए जा रहे तथाकथित विकास कार्यों की पर्यटक कलई खोल देंगे। मीडिया पर विशेष रूप से नज़र रखी जा रही है।
हम भारतीय तिब्बत से सांस्कृतिक-आध्यात्मिक रूप से प्राचीनकाल से जुड़े हैं। हमारा पवित्र कैलाश-मानसरोवर तिब्बत में है। स्वतंत्र तिब्बत देश में हम भारतीय वहाँ बेरोकटोक जाते थे। इसी प्रकार तिब्बती भारत में बौद्ध स्थलों का भ्रमण करते थे। चीन सरकार ने तिब्बत को कब्जे में लेकर कैलाश-मानसरोवर की आध्यात्मिक यात्रा को कमाई का साधान बना दिया है। कुछ भारतीय ही वहाँ जा पाते हैं और इसके लिए भारी राशि चीन सरकार तीर्थ यात्रियों से वसूलती है। पवित्र कैलाश-मानसरोवर यात्रा हम बेरोकटोक फिर से करें इसके लिए तिब्बत समस्या का हल निकालना होगा।
चीन सरकार सदैव भारत को अपमानित और असुरक्षित रखने की नीति पर चल रही है। ठोस प्रमाण होने के बावजूद वह पाकिस्तानी आतंककारियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों का विरोध करती है। भारत में अस्थिरता फैलाने वाले पाकिस्तानी आतंककारी संगठनों का साथ चीन की भारत विरोधी नीति का ठोस सबूत है। चीन के साथ भारत के संबंध मजबूत करने के लिए जरूरी है कि तिब्बत संकट दूर किया जाये।