जागरण, 6 जुलाई, 2012
जागरण प्रतिनिधि, भागलपुर : गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्रीय सभागार में भारत-तिब्बत मैत्री संघ के तत्वावधान में दलाइलामा के 77वें जन्म दिवस पर भारत-तिब्बत संबंध और दलाइ लामा की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता उमाघोष एवं संचालन प्रकाशचंद्र गुप्ता द्वारा किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ. प्रेम प्रभाकर थे।
संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए डॉ. फारूक अली ने कहा कि दलाई लामा सत्य, अहिंसा व सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति के रूप में तिब्बत की पहचान बनाने में संघर्षरत हैं। चीन जिस निर्दयता से तिब्बत का दमन कर रहा है, उसके विरुद्ध विश्व समुदाय को आगे आना होगा। प्रभात दत्त ने कहा कि चीन की निरंकुशता पर आर्थिक नाकेबंदी की आवश्यकता है। डॉ. जयंत जलद ने दलाई लामा को तिब्बत का गांधी बताया।
डॉ. प्रेम प्रभाकर ने भारत-तिब्बत के साझा संस्कृति पर विचार करते हुए कहा कि जब क्षेत्रीय स्तर पर धर्म रहता है तो संकट नहीं के बराबर होती है। वहीं जब केंद्रीय रूप ले लेता है तो संकट और विरोध बढ़ते हैं। प्रेम चंद्र पांडेय ने कहा कि व्यक्तिगत जीवन में जो महत्व पड़ोसी का है वही महत्व देश का पड़ोसी देश के प्रति होता है। प्रकाश चंद्र गुप्ता ने कहा कि ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा व कला में तिब्बत गुरू स्वरूप है। इस मौके पर बासुदेव, संजय कुमार, संतोष ज्ञानार्थी आदि ने भी अपने विचार रखे।