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०१ अप्रैल २०२३/ चास, विजय क्रांति।
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में तिब्बत में चीन की औपनिवेशिक शासन और तिब्बती सभ्यता के लिए उनके खतरे पर चर्चा की।
नई दिल्ली/ मिलान/ लंदन/ धर्मशाला – ३१ मार्च। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के विशेषज्ञों ने जापान के हिरोशिमा शहर में १९-२१ मई तक बैठक करने जा रहे जी-७ के नेताओं से अपील की है कि वे चीनी कब्जे वाले तिब्बत में लगातार बिगड़ती मानवाधिकारों की स्थिति को देखते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से तिब्बत में औपनिवेशिक आवासीय स्कूलों की चल रही परियोजना को तुरंत रोकने के लिए कहें। इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में ‘चीन द्वारा तिब्बत में औपनिवेशिक तरीके से शासन और तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान पर संकट’ विषय पर विचार-विमर्श के दौरान हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार (सीईएससीआर) समिति द्वारा उठाए गए विभिन्न मानवाधिकार मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई।
बेविनार का आयोजन ३१ मार्च की शाम को सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट (चास) और तिब्बती यूथ कांग्रेस (टीवाईसी) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। इस वेबिनार में भाग लेने वाले विशेषज्ञों में ब्रिटेन स्थित ‘फ्री-तिब्बत’ के नीति और अनुसंधान प्रबंधक जॉन जोन्स, वरिष्ठ इतालवी पत्रकार और मिलान से धर्म पर प्रकाशित होनेवाले बहुभाषा-भाषी समाचार पत्र ‘बिटर विंटर’ के प्रभारी निदेशक मार्को रेस्पिंटी और धर्मशाला से ‘स्टूडेंट्स फॉर ए फ्री तिब्बत इंडिया’ की राष्ट्रीय निदेशक सुश्री रिनज़िन चोएडन शामिल हुईं। टीवाईसी के संयुक्त सचिव और वेबिनार के सह-मेजबान छेरिंग चोम्फेल ने धन्यवाद ज्ञापन किया और जेएनयू में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन के विशेष केंद्र की प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सुरक्षा मामलों की विद्वान (सुश्री) आयुषी केतकर ने प्रश्न-उत्तर सत्र का संचालन किया। तिब्बत मामलों के विख्यात विशेषज्ञ और चास के अध्यक्ष विजय क्रांति ने वेबिनार का संचालन किया।
रिनज़िन चोएडन ने विशेष रूप से तिब्बती बच्चों को जबरन आवासीय विद्यालयों में धकेलने के चल रहे चीनी अभियान पर अपने संबोधन को केंद्रित किया। ये आवासीय विद्यालय पूरे तिब्बत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा स्थापित किए गए हैं और चलाए जा रहे हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ये स्कूल व्यवस्थित रूप से तिब्बत की पहचान को मिटाने के उद्देश्य से तिब्बत की पूरी नई पीढ़ी का ब्रेनवॉश करने के लिए चलाए जा रहे हैं। पहले ही दस लाख से अधिक तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से जबरन उठा कर इन स्कूलों में डाल दिया गया है। यह केवल तिब्बत के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए चिंता का विषय है। क्योंकि इसमें एक समृद्ध संस्कृति, जो कि पूरी दुनिया से संबंधित है, का पूरी तरह से सफाया हो जाने की आशंका उठ खड़ी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के कुछ मंचों और कुछ देशों की संसदों में उठाई जा रही अंतरराष्ट्रीय चिंताओं पर ध्यान देते हुए उन्होंने कहा, ‘हम तिब्बती और तिब्बत के समर्थक पिछले कुछ समय से इस मुद्दे को विभिन्न मंचों पर उठाते रहे हैं। यह संतोष की बात है कि संयुक्त राष्ट्र से जुड़े कुछ मानवाधिकार निकायों ने भी अब इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है।’
रिनज़िन ने बताया कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद से तिब्बती पहचान को मिटाने की प्रक्रिया को विशेष गति मिली है। उन्होंने कहा, ‘तिब्बत में दशकों से तिब्बती संस्कृति और पहचान को नष्ट करने की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन दुर्भाग्य से राष्ट्रपति शी के शासन में यह अभियान और अधिक तेज हो गया है।’
मार्को रेस्पिंटी ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की समिति (सीईएससीआर) की हालिया रिपोर्ट का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया, जो इसके हालिया ७३वें सत्र के दौरान ०६ मार्च को प्रकाशित हुई थी। उन्होंने सीईएससीआर द्वारा उठाए गए कई गंभीर मुद्दों की ओर इशारा किया। इनमें तिब्बती खानाबदोश घुमंतू जनजातियों का जबरन पुनर्वास, तिब्बती समाज द्वारा स्वेच्छा से चलाए जा रहे तिब्बती भाषा के स्कूलों को बंद करना, तिब्बती संस्कृति और भाषा को मिटाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान, तिब्बती समाज, विशेष रूप से तिब्बती बच्चों को जबरन आवासीय स्कूल प्रणाली में डालकर समाज का चीनीकरण और तिब्बती लोगों के अन्य मानवाधिकारों का दमन। चीनी शासन द्वारा सीईएससीआर के इन आरोपों को ‘झूठ’ बताकर उसका खंडन किए जाने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में सीसीपी का पक्ष लेना और उसकी नीतियों के समर्थन में बोलना वास्तव में पीआरसी के कट्टर समर्थकों के लिए भी काफी दुरूह हो गया है। वास्तव में सीसीपी के कुकर्मों को छिपाना असंभव है। यहां तक कि सीसीपी ने भी कई बार अपने स्वयं के अपराधों पर अपने बयानों को बदला। लेकिन कटु सत्य और तथ्य को छुपाना असंभव है और इस स्थिति ने भी पीआरसी की प्रतिक्रियाओं को बहुत अधिक प्रभावित किया है। अपने विरोधियों के साथ-साथ पीड़ित किए गए लोगों को धमकाते हुए आज पीआरसी आरोपों का जवाब सीधे ‘तो क्या?’ कहकर देती है और यह काफी खतरनाक स्थिति है।
विश्व निकायों द्वारा निकाले गए ऐसे निष्कर्षों के प्रति चीनी शासन के अड़ियल रवैये को रेखांकित करते हुए मार्को ने कहा, ‘सीसीपी तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान पर तब तक तलवार लटकाए रखेगी और उत्पीड़न जारी रखेगी जब तक कि दुनिया के पास इसे रोकने का कोई साधन नहीं आ जाता है। पर्यवेक्षक के तौर पर मैं यह सुझाव देने की स्थिति में नहीं हूं कि पीआरसी को अधिक मानवीय व्यवहार के लिए मजबूर करने के लिए दुनिया को कौन सा उपाय अपनाना चाहिए। मैं केवल यह सुझाव दे सकता हूं कि जब तक दुनिया पीआरसी के साथ सुविधाजनक व्यापार करने के फैसले लेती रहेगा या सीसीपी की गलत नीतियों के साथ हां में हां मिलाती रहेगी, तब तक तिब्बती और अन्य लोग कष्टों को भोगते रहेंगे।
लंबे समय से चीन पर नजर रख रहे और तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहे जॉन जोन्स ने तिब्बत में चीनी पुलिस द्वारा तिब्बती आबादी के चल रहे रक्त परीक्षण और डीएनए नमूनों के संग्रह कार्यक्रम का विशेष संदर्भ दिया। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में उनका समूह ‘फ्री-तिब्बत’ और यूरोप और अमेरिका में कई अन्य तिब्बत समर्थक समूह अमेरिकी कंपनी थर्मो फिशर साइंटिफिक पर चीनी पुलिस विभाग को डीएनए परीक्षण किट की आपूर्ति रोकने का दवाब बना रहे हैं और इस कंपनी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘अब हम सीधे इस कंपनी के कर्मचारियों से संपर्क कर रहे हैं और इस तरह के बड़े पैमाने पर प्रोफाइलिंग किए जाने से तिब्बती आबादी को होनेवाले खतरों के बारे में आगाह कर रहे हैं और उन्हें संवेदनशील बना रहे हैं। हमारे अभियान का उद्देश्य कर्मचारियों की जमीर को जगाना और इस कंपनी को चीनी सरकार के इस अमानवीय कृत्य में उपकरण बनने से बाज आने के लिए राजी करना है।’
जॉन ने डॉ. ग्याल लो के अनुभव का उल्लेख किया जो तिब्बत के प्रमुख हिमायती और इस विषय के विशेषज्ञ हैं। डॉ. ग्याल लो के अनुभव का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, ‘उन्होंने अपने परिवार में देखा कि कैसे इन आवासीय स्कूलों में भेजे जाने के तीन महीने के भीतर बच्चे केवल चीनी भाषा में ही एक-दूसरे से बात करने लगे, भले ही वे तिब्बती भाषा बोलते हुए बड़े हुए हों। जब बच्चे सप्ताहांत में घर जाते थे तो वे घर में चुप रहते थे, लगभग मेहमानों की तरह बर्ताव करते थे।’ तिब्बत में चीन के औपनिवेशिक आवासीय स्कूलों के मुद्दे पर अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा होने पर राहत व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह देखकर खुशी हो रही है कि टाइम और न्यूजवीक जैसी समाचार पत्रिकाओं और संयुक्त राष्ट्र निकायों ने इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है।’ प्रतिभागियों ने आगामी जी-७ शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे विश्व के नेताओं से जॉन की उस अपील का समर्थन किया कि वे नेता चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से तिब्बत में इन औपनिवेशिक आवासीय स्कूलों को बंद करने के लिए कहें।