धर्मशाला, 21 मार्च । धर्म गुरुओं , राजाओं -महाराजाओं के राज की व्यवस्था अब आउट डेटिड हो चुकी है। ऐसे में यह जुरुरी हो गया है कि पछले 400 सालों से तिब्बत में चल रही आर्मिक नेतृत्व की प्रथा का भी अब अंत होना ही चाहिए। निर्वासित तिब्बती सरकार के द्वारा महामहिम दलाई लामा द्वारा राजनीतिक पद से दिए गए इस्तीफे के लौटाने के बाद अब दलाई लामा के अपने फैसले के प्रति तेवर खासे कडें हो गए है। दलाई लामा के निजी ऑफिस ने बाकादा अपनी सरकारी व्यवस्था यानी निर्वासित तिब्बती सरकार के नुमाइंदों को यह बता दिया है कि अब दलाई लामा नहीं, बल्कि अन्य लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी और दलाई लामा किसी भी सूरत में अब यह पद नहीं सभांलेगे । बकौल महाहिम , वक्त बदलने के साथ अब तिब्बती व्यवस्थाओं में भी बदलाव जरुरी है। दलाई लामा ने साफ कर दिया कि अगर सदन से उनके पास पुनर्विचार के लिए प्रस्ताव आता भी है, तो वह अपनी राय नहीं बदलेंगे। दलाई लामा के फैसले के प्रति अडिग सोच का आभास इनके इसी बयान से मिल जाता है कि जिसमें उन्होंने यह कहा कि अभी तिब्बती वी वांट फ्री तिब्बत के नारे लगाते है और नारें से आजादी नहीं मिलेगी । उन्होंने तिब्बत की आजादी के बावत कहा कि यह तभी संभव है, जब इसमें चीन की रजामंदी भी होगी। दलाई लामा के इन्हीं बयानों का नतीजा है कि अब तिब्बती लोग भी कहीं न कहीं अपने श्रद्धेय गुरु के बयान का मर्म समझने शुरु हो गए है। प्रख्यात तिब्बती एक्टिविसट और लेखक तेनजिन सूंडू तिब्बती टोन में हिंदी में कहते है कि लगता नहीं गुरु जी मानेगा , वो बडा जिद्दी है और अब निर्वासित तिब्बती सरकार के नुमाइंदों को भी यह समझना होगा कि उन्हें जिम्मेदारियां उठानी है और इसके लिए तैयार होना ही होगा। इसी तर्ज पर निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री प्रो. सामदोंग रिंपोछे को यह उम्मीद से लवरेज विश्वास है कि महामहिम अपने फैसले से पीछे नहीं हटेंगे । गुरु जी , बडा जिद्दी लगता है नहीं मानेगा कि यह जो धारणा अब बल पकडने लगी है, उससे कहीं न कहीं यह संकेत भी मिलने शुरु हो गए है कि अब सच में गुरु जिद्द पकड चुके है और उनके अनुयायियों ने अपनी जिद्द त्यागने का मन भी बना लिया है । शायद अब जो कवायदें चल रही है, वह सिर्फ इसी खातिर है कि कल को कोई यह न कहे कि अपने धर्म गुरु को बिना मनाए , उनके पद से रुखस्त कर दिया गया।
लगता नहीं गुरु जी मानेगा, वो बडा जिद्दी है।
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