तिब्बत.नेट, 25 जनवरी, 2019
ब्रुसेल्सं। यूरोपीय संसद के सदस्यो- बेस बेल्डर (ईसीआर), क्रिश्चियन डैन प्रेडा (ईपीपी) और जोसेफ वीडेनहोलजर (एसएंडडी) ने 23 जनवरी को यूरोपीय संसद में ‘फ्रीडम ऑफ रिलीजन इन चाइना’ पर दो घंटे लंबे सम्मेलन का आयोजन किया।
इस सत्र में यूरोपीय संसद के सदस्यों, उनके सहायकों, राजनयिकों, गैर सरकारी संगठनों के सदस्यों, प्रेस और आम जनता ने हिस्सा लिया। प्रतिनिधि ताशी फुंटसोक और यूरोपीय संघ के एडवोकेसी अधिकारी तथा तिब्बत कार्यालय, ब्रुसेल्स के प्रतिनिधि रिगज़िन चोयदों गेन्खांग ने भी इसमें भाग लिया। सम्मे्लन में इतने लोग आए कि हॉल खचाखच भर गया था।
श्री प्रेडा ने अपने परिचयात्मक भाषण में चीन में धर्म की स्वतंत्रता की कमी के संबंध में चिंता के दो क्षेत्रों पर प्रकाश डाला- तिब्बत और कैथोलिक धर्म।
उन्होंने पिछले साल लारुंग गार पर यूरोपीय संसद के अति आवश्यक संकल्प और चीनी अधिकारियों द्वारा इसके विनाश और जब्ती को याद करते हुए तिब्बत पर अधिक ध्यान दिया।
श्री बेल्डर ने इस विषय पर सामान्य टिप्पणी की और वक्ताओं को मंच पर आमंत्रित किया। यहां चीन एड के श्री बॉब फू ने चीन में धर्म की स्वतंत्रता की कमी की एक संक्षिप्त प्रस्तुति दी, वहीं अमेरिका में रह रहे श्री उमर बेकलि, उइगुर ने पूर्वी तुर्किस्तान में उइगरों के वर्तमान इंटर्नशिप पर एक भावनात्मक प्रस्तुति दी। उन्होंने आरोप लगाया कि चीन द्वारा इंटर्न के अंगों को काट दिया जाता है। अपने परिवार के सदस्यों को बचाने के लिए बेताब उइघुर महिलाएं हान चीनी से शादी करने के लिए तैयार हो जाती हैं। उन्होंने एक बच्चा नीति के कारण चीन में लैंगिक असमानता को भी उजागर किया।
अन्य वक्ताओं में चीन में कैथोलिकों के फादर बर्नार्डो कनिरीलेरा, बिटर विंटर नामक एक नई ऑनलाइन पत्रिका के श्री रेस्पेंटी और अंत में ह्यूमन राइट बिदाउट फ्रंटियर्स के निदेशक श्री विली फाउटर द्वारा अपनी प्रस्तुति दी गई।
प्रतिनिधि ताशी फुंटसोक ने हस्तक्षेप करते हुए उइगुर लोगों और चीन में अन्य मताबलंबी लोगों के दर्द और पीड़ा को बयान किया। उन्होंने कहा कि चीनीकरण, पुन: शिक्षा और एकाग्रता शिविर, लोगाई- तिब्बतियों के लिए कोई नई बात नहीं है। इनका वक्ताओं ने दर्द और पीड़ा के साथ विस्तृत विवरण दिया। तिब्बतियों ने पिछले 60 वर्षों से चीन के तहत दमन के इन रूपों के बीच ही जन्म लिया है।
उन्होंने कहा, अमेरिका स्थित फ्रीडम हाउस के अनुसार, ‘आज तिब्बत दुनिया में सीरिया के बाद दूसरा सबसे कम आजादी वाला देश है। उत्तर कोरिया की तुलना में तिब्बत की यात्रा करना कठिन है। ग्रिड प्रणाली के तहत हर कोई एक चौकीदार है और सभी गांव किले हैं। स्वर्ग में जाने की तुलना में एक तिब्बती के लिए पासपोर्ट प्राप्त करना कठिन है। 60 वर्षों से चीन एक औपनिवेशिक शक्ति के सभी और हर प्रयोग का उपयोग इस धरती से तिब्बत के नक्शे का सफाया करने के लिए कर रहा है।’
उन्होंने कहा ‘लेकिन तिब्बत जीवित है, मरा नहीं है। यह मुक्त दुनिया के समर्थन से संभव हुआ है। ‘पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों के लिए, यह विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि चीनी पार्टी के सचिव वही हैं जिन्हें तिब्बत से पदोन्नत कर वहां भेजा गया था। दमन के सभी साधन जो पूर्वी तुर्किस्तान के लोग आज झेल रहे हैं, पहले कठोर तरीके से तिब्बत में लागू किए जा चुके हैं।’
उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक स्तर पर चीन को खुले तौर पर पश्चिम के लोकतांत्रिक और खुले समाज व्यवस्था को कमजोर करते हुए देखा जा सकता है। “यूरोपीय यूनियन के मूल्य खतरे में हैं और यूनियन की अखंडता दाव पर लगी हुई है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसलिए, यूरोपीय यूनियन-चीन शिखर सम्मेलन को यूरोपीय यूनियन के विचारों को मजबूत करने के लिए व्यावहारिक परिणाम प्राप्त करना चाहिए। वार्षिक ईयू-चीन मानवाधिकार वार्ता सार्थक और ठोस होनी चाहिए।”
उन्होंने निष्कर्ष के तौर पर कहा कि ‘यूरोपीय यूनियन को अब मुक्त दुनिया के नेतृत्व का मंत्र वहन करने के लिए जल्द ही आगे आना चाहिए। अन्यथा बहुत जल्द ही दुनिया भर में जीवन के हर तत्व, सरकार, बुनियादी मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीनी चरित्र की अचूक छाप लग सकती है। मुक्त दुनिया और यूरोपीय यूनियन के मूल्य खो सकते हैं।’ यूरोपीय यूनियन के सदस्य वेइडेनहोल्जर ने सम्मेलन की समाप्ति पर सम्मेलन के उद्देश्यों की व्याख्या की। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि चीन के लोग जो अपने देश का दौरा करते थे। देश की सुंदरता की सराहना करते हुए, बीथोवेन और स्ट्रॉस के संगीत को सुनकर आह्लादित होते थे, आज कैसे अन्यर विश्वास के लोगों पर दमन के ऐसे ‘भयावह’ रूप के पक्ष में हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्थिति को व्यवस्थित करने के तरीके खोजने चाहिए। इसके साथ ही सम्मेलन का समापन हो गया।