थेकचेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। परम पावन दलाई लामा ने ०८ नवंबर की सुबह शांति प्रचारकों के एक समूह से मुलाकात की। इस समूह में ज्यादातर प्रचारक यूरोप से थे। इस समूह की नेता फ्रांस की सोफिया स्ट्रिल-रेवर ने घोषणा की कि परम पावन से दूसरी बार मिलने के बाद उनका दिल खुशी से भर गया है। सोफिया ने कहा कि उनका समूह मानवता की सेवा में परम पावन द्वारा स्थापित उदाहरण से प्रेरित है। उन्होंने बताया कि समूह ने ०५ अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र समर्थित ‘अंतरात्मा की आवाज दिवस’ कार्यक्रम में भाग लेने का फैसला किया है। यह कार्यक्रम सभी लोगों के लिए बिना किसी भेदभाव के मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार स्थापित करने के लिए समर्पित है।
स्ट्रिल-रेवर ने परम पावन से पूछा कि अंतरात्मा की आवाज और प्रेम विश्व में स्थायी शांति में कैसे योगदान दे सकता है?
इस पर परम पावन ने उत्तर दिया- ‘जन्म लेते ही हम सभी को माँ का प्यार मिलता है। छोटे बच्चे के रूप में हम बेझिझक दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं। इस समय हम इसकी परवाह नहीं करते कि वे कहां से हैं या उनका या उनके परिवार की वैचारिक पृष्ठभूमि क्या है। इस प्रकार का खुलापन हमारे मूल मानव स्वभाव का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि वयस्क होने पर हममें से बहुत से लोग अन्य लोगों को ‘हम’ और ‘वे’ के संदर्भ में देखते हैं। हमारे बीच के राजनीतिक या धार्मिक मतभेदों के आधार पर हमारे बीच भेदभाव होता है। यदि हमें अपने बीच की शांति में योगदान देना है तो हमें मूल रूप से मनुष्य के रूप में हम सभी को एक समान होने के तरीके खोजने होंगे। हम एक समान अनुभव रखते हैं। हम एक ही तरह से पैदा होते हैं और अंततः हम सभी एक तरीके से ही मर जाते हैं।
राष्ट्रीयता की पहचान या आस्था में मतभेद एक-दूसरे को मारने का बहाना बन जाता है। यह अकल्पनीय है। यहां तक कि जानवर भी अधिक शांतिपूर्वक एक साथ रहते हैं। अगर चीज़ें बदलनी हैं तो हम आठ अरब मनुष्यों को इस ग्रह पर एक साथ रहना सीखना होगा। हमें अपनी सामान्य मानवीय चरित्र को पहचानना चाहिए। इसीलिए जब भी मैं किसी नए व्यक्ति से मिलता हूं तो मैं हमेशा उन्हें अपने जैसे इंसान के रूप में देखता हूं। इस तरह मैं मानता हूं कि हम सभी एक मानव परिवार के सदस्य हैं।‘
जलवायु संकट के बारे में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए परम पावन ने टिप्पणी की कि जो परिवर्तन हो रहे हैं वे हमारे नियंत्रण करने की क्षमता से परे प्रतीत होते हैं। उन्होंने दोहराया कि मनुष्य के रूप में हम सभी एक समान हंक और हमें न केवल एक साथ रहना सीखना चाहिए बल्कि अपने सामूहिक हित में एक साथ काम करना भी सीखना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि हमारे पास अभी भी समय है। इसमें भाईचारे और भाईचारे की भावना पैदा करना और एक-दूसरे की मदद करने की भावना से काम करने में ही समझदारी होगी। हमें उस बुनियादी मानवीय प्रेम को बढ़ाने का एक तरीका खोजने की जरूरत है जो हमारी मां हमें जन्म के समय सिखाती है और इसे जीवन भर दूसरों तक पहुंचाती है।‘
यह पूछे जाने पर कि धर्म विश्व के भविष्य को कैसे प्रभावित कर सकता है, परम पावन ने उत्तर दिया- ‘धर्म का सार सौहार्द है। सभी धर्म यही सिखाते हैं, चाहे वे कोई भी दार्शनिक रुख अपनाने वाले हों। सौहार्दता ही सार है, इसे विकसित करने में ही कल्याधण है।‘