कांगड़ा। धर्मगुरु दलाईलामा ने बुधवार को कांगड़ा के ऐतिहासिक किले के साथ बने महाराजा संसार चंद म्यूजियम का शुभारंभ किया। म्यूजियम में कटोच वंश के इतिहास का विवरण मौजूद है। महाराजा संसार चंद म्यूजियम के प्रबंधक ऐश्वर्य कटोच ने कहा कि यहां पर आने वाले पर्यटकों को कांगड़ा की संस्कृति, किले के इतिहास, लोक गीतों, कांगड़ा पेंटिंग से रूबरू करवाना ही उनका उद्देश्य है।
क्षेत्र में तिब्बती पर्यटकों की संख्या अधिक होने के चलते कांगड़ा किला और रॉयल कटोच फैमिली का इतिहास, हिंदी, अंग्रेजी और तिब्बती भाषा में ऑडियो गाइड के जरिए मुहैया करवाने का प्रयास किया है। कांगड़ा के इतिहास की जानकारी के साथ-साथ पर्यटकों को यहां कैफे, कांगड़ी धाम, कांगड़ा पेंटिंग, लोक गायन और लोकनृत्य भी छटा भी देखने को मिलेगी। म्यूजियम में रखी तलवारें, युद्ध में उपयोग होने वाले अन्य औजार और ऐतिहासिक सिक्कों और ग्रंथों से पर्यटकों को इतिहास की जानकारी हासिल होगी।
महाराजा संसार चंद के वंशज राजा आदित्य देव चंद कटोच ने कहा ‘मैं दलाईलामा को कांगड़ा घाटी का देवता मानता हूं।’ म्यूजियम के शुभारंभ अवसर पर जोधपुर की सांसद एवं कटोच वंश की रानी चंद्रेश कुमारी ने कहा कि कांगड़ा किला का इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है, लेकिन कांगड़ा के इतिहास की लिखित जानकारी एलेग्जेंडर के समय से उपलब्ध है।
मोहम्मद गजनबी ने तीन मर्तबा और इसके बाद भारत आने वाले हर शासक ने इस किले को अपना निशाना बनाया, लेकिन कटोच वंश के राजाओं ने न केवल कांगड़ा किला की हिफाजत की, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग भी लड़ी। वहीं, तिब्बत निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री प्रो. सामदोंग रिंपोछे ने शोधकर्ताओं को कांगड़ा के इतिहास में और अधिक अध्ययन करने का आह्वान किया।
दोस्त से पूछा, संन्यास लेकर ठीक किया या नहीं
समारोह स्थल पर पहुंचने पर दलाईलामा ने अपने पुराने दोस्त सेवानिवृत्त प्रिंसिपल पीएन शर्मा से पूछा कि राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने का उनका निर्णय सही है या नहीं। इस पर पीएन शर्मा ने कहा कि उनके लिए सभी निर्णय सदा सही हैं। इन पर किसी प्रकार का संशय और टिप्पणी करना उचित नहीं।
दलाईलामा ने कहा कि जब वह वर्ष 1960 में धर्मशाला आए थे, उस समय मैक्लोडगंज के नौरोजी परिवार और बूटा राम ने उनका स्वागत किया था। नौरोजी अब नहीं रहे, लेकिन बूटा राम ने आज ही अपना 100वां जन्मदिन मनाया और वह मेरे से आशीर्वाद लेने आए थे। बूटा राम को आशीर्वाद देना मेरे लिए अलग तरह की अनुभूति थी।