२७ मई २०२२
थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज २७ मई की सुबह परम पावन दलाई लामा के कर कमलों द्वारा मोनलाम ग्रैंड तिब्बती शब्दकोश का विमोचन किया गया। विमोचन समारोह परम पावन के आवास के निकट ही अवस्थित मुख्य तिब्बती मंदिर त्सुगलगखंग के उद्यान में आयोजित किया गया था। इस अवसर पर उपस्थित लोगों में शाक्य गोंग्मा रिनपोछे, ४२वें और ४३वें शाक्य त्रिजिन, बॉन परंपरा के प्रमुख, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सदस्य, मित्र और समर्थक शामिल थे।
विमोचन के लिए परम पावन आने आवास के दरवाजे से निकलकर मंदिर प्रांगण से होते हुए चले। रास्ते में वे अनुयायियों को आशीर्वाद देते और उनसे बातचीत करते रहे। उन्होंने कुछ दर्शनार्थियों से हाथ मिलाया, कुछ अन्य से थोड़ी- बहुत बातचीत की। उन्होंने लोगों से माला और अन्य पूजा सामग्री स्वीकार की और उन्हें आशीर्वाद दिया। महीनों तक कोविड से जुड़ी पाबंदियों के बाद लोगों से आमने- सामने मिलकर उन्हें असीम आनंद की अनुभूति हो रही थी।
सभा को संबोधित करते हुए परम पावन ने कहा, ‘हम तिब्बतियों की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है। जब हम तिब्बत में थे, हम इस बात से अवगत नहीं थे कि हमारी यह परंपरा अन्य परंपराओं की तुलना में कैसी है। लेकिन जब हम निर्वासन में तिब्बत से बाहर निकले और भारत आए तो हमें पता चला कि हमारी विरासत कितनी मूल्यवान है। तिब्बती बौद्ध धर्म एक व्यावहारिक परंपरा है, जिसके मूल में नकारात्मक भावनाओं से पार पाने और मन को शांत करने के तरीके हैं। अपनी दैनिक साधना में मैं बोधिचित्त के जागरण और शून्यता की समझ विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करता हूं, जो एक साथ मुझे गहरी आंतरिक शांति प्रदान करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘अन्य धार्मिक परंपराओं के साधक प्रार्थना पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन हम अपने मानसिक दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश करते हैं। आचार्य शांतिदेव ’बोधिसत्व के जीवन पथ के लिए मार्गदर्शन (गाइड टू द बोधिसत्वाज वे ऑफ लाइफ)’ में बताते हैं कि जब धैर्य धारण करने की बात आती है तो हमारा दुश्मन ही हमारा सबसे अच्छा शिक्षक होता है। यदि हम इस पर ध्यान से विचार करें तो ऐसी कोई भी प्रतिकूल परिस्थितियाँ नहीं हैं, जिन्हें अनुकूल नहीं बनाया जा सकता है। नालंदा परंपरा के केंद्र में मन और भावनाओं के कामकाज को समझने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘लोग दुनिया में शांति की बात करते हैं, लेकिन अगर आपके दिल में गुस्सा और नफरत भरा है तो शांति के बारे में बात करना सिर्फ पाखंड है। इसके बजाय हमें करुणा के आधार पर दूसरों का किसी तरह का नुकसान नहीं करने यानी अहिंसा करने की प्राचीन भारतीय परंपरा को विकसित करने की आवश्यकता है।‘
‘तिब्बती मनीषियों ने इस बात पर गहन चिंतन किया कि चीनी परंपरा से क्या लिया जाए और भारत से क्या स्वीकार किया जाए। उन्हें जो लाभकारी लगा उसे आत्मसात कर लिया। हम तिब्बतियों ने सभी प्रकार की कठिनाइयों का सामना किया है, लेकिन हमने मन के प्रशिक्षण की साधना के कारण अपनी आंतरिक शांति बनाए रखी है। लोगों के सामने जब चुनौतियां आती हैं तो वे शांति और सुकून पाने के लिए नींद की गोलियां लेने लगते हैं। लेकिन हम तिब्बतियों को ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती है।‘
‘निर्वासन में हमने तिब्बती स्कूलों की स्थापना में भारत सरकार से मदद का अनुरोध किया जहां हमारे बच्चे अपनी भाषा में पढ़ सकें। तिब्बती भाषा के संरक्षण ने हमारे धर्म और संस्कृति को जीवित रखने की हमारी क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं यहां उपस्थित अपने सभी मित्रों और धर्म मित्रों को याद दिलाना चाहता हूं कि हमारी विरासत के बारे में सबसे कीमती बात यह है कि वह हमें मानसिक शांति प्राप्त करने और बनाए रखने में मदद करती है।‘
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के मॉडरेटर तेनज़िन छिमे ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। इनमें शाक्य गोंगमा रिनपोछे, ४२वें और ४३वें शाक्य पीठाधीश, रत्न वज्र रिनपोछे, ज्ञान वज्र रिनपोछे और बॉन परंपरा के प्रमुख मेनरी ट्रिज़िन रिनपोछे शामिल थे। इस समारोह का उद्घाटन दीप प्रज्जवलित कर किया गया। मॉडरेटर छिमे ने इस अवसर पर मोनलम ग्रैंड तिब्बती डिक्शनरी परियोजना के क्यूरेटर आदरणीय लोबसांग मोनलाम से परियोजना के बारे में जानकारी देने का अनुरोध किया।
लोबसांग मोनलाम ने बताया कि दलाई लामा ट्रस्ट के सहयोग से २०० से अधिक लोगों ने लगातार नौ वर्षों तक अथक परिश्रम करके २२३ खंडों में इस शब्दकोश का संकलन किया है। यह शब्दकोश न केवल पुस्तक के रूप में उपलब्ध है, बल्कि यह ३७ विभिन्न ऐप्स और एक पूर्ण वेबसाइट पर भी ऑनलाइन है, जिसे समय-समय पर अपडेट किया जाएगा।
भंते मोनलाम ने गर्व के साथ घोषणा की कि २,००,००० से अधिक प्रविष्टियों वाला यह शब्दकोश दुनिया की किसी भी भाषा के सबसे बड़े शब्दकोशों में से एक है। यह तिब्बती संस्कृति की विशाल गहराई को उद्घाटित करता है। इस परियोजना को पूरा करना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है जो तिब्बती सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देगी।
उन्होंने कहा कि तिब्बत के अंदर चीनी हमारी भाषा और संस्कृति को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यहां निर्वासन में हम उन्हें जीवित रखने के लिए और भी अधिक प्रयास कर रहे हैं। मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने इस परियोजना को साकार करने में योगदान दिया है। हम इस पर काम करना जारी रखेंगे और हम इसे अगले दस वर्षों में फिर से अपडेट करेंगे।
‘मैं इस शब्दकोश के संकलन से प्राप्त पुण्य को परम पावन दलाई लामा के लंबे जीवन और उनके सपनों को साकार होने के लिए समर्पित करता हूं। मैं परम पावन के कार्यालय को २२३ खंडों का एक पूरा सेट भेंट करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि परम पावन और तिब्बती बौद्ध धर्म की सभी परंपराओं के नेता दीर्घायु हों। तिब्बत के लिए अच्छे दिन जल्द आएं।‘
इसके बाद एक बार फिर से सभा को संबोधित करने के लिए परम पावन को आमंत्रित किया गया।
परम पावन ने कहा, ‘हम तिब्बती हमेशा भारत और चीन के बीच रहे हैं, लेकिन सम्राट सोंगत्सेन गम्पो के शासनकाल के दौरान हमने भारतीय मॉडल के आधार पर अपनी खुद की लिपि और भाषा बनाई। भाषा और लिपि में सक्षम हो जाने के बाद आचार्य शांतरक्षित ने तिब्बतियों को बुद्ध के वचनों और अनगिनत भारतीय विद्वानों के ग्रंथों से भरपूर बौद्ध साहित्य का अनुवाद हमारी अपनी भाषा में करने के लिए प्रोत्साहित किया। यही कारण है कि मैं अक्सर अपने भारतीय दोस्तों से कहता हूं कि आप अतीत में हमारे गुरु थे। लेकिन अब हम आपके गुरु हो सकते हैं क्योंकि हमने कारणों और तर्कों पर आधारित नालंदा परंपरा को जड़ से संरक्षित किया है।
‘हमारे पास क्रोध से निपटने की तकनीकें और प्रेम और करुणा पैदा करने के साधन मौजूद हैं। दूसरों के प्रति करुणा रखने की प्रवृत्ति व्यक्ति के भीतर मन की शांति को जन्म देती है, जिसका परिवार और व्यापक समुदाय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वास्तव में आज हम इतने परस्पर जुड़े हुए हैं कि इस तरह के तरीके विश्व में शांति के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। मन की शांति प्राप्त किए बिना विश्व शांति नहीं हो सकती है।‘
‘बुद्ध के उपदेशों में सबसे महत्वपूर्ण उनकी वह सलाह है कि उनके प्रवचनों पर आंख बंद करके विश्वास न करें। उन्होंने जोर देकर कहा कि अनुयायियों को उनके शब्दों की जांच करनी चाहिए। उनके प्रवचनों की जांच इस तरह करनी चाहिए जैसे एक सुनार सोने की शुद्धता की जांच करता है। जब हम दिग्नाग और धर्मकीर्ति जैसे तर्कशास्त्रियों के कार्यों को पढ़ते हैं तो पाते हैं कि वे दूसरों के विचारों का मूल्यांकन और आकलन करने के लिए बहुत अधिक समय खर्च करते थे।‘
उन्होंने कहा कि आज चीनी कम्युनिस्ट कट्टरपंथी तिब्बती संस्कृति को समझे बिना इसकी आलोचना कर रहे हैं। हम वर्तमान में इन २२३ खंडों को चीन भेजने में असमर्थ हो सकते हैं, लेकिन ताइवान में ऐसे लोग होंगे जो इस बात की सराहना कर सकते हैं कि हमने किस तरह की संस्कृति को संरक्षित किया है।
‘हम चीन से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें अपने धर्म और संस्कृति को जीवित रखने का अधिकार होना चाहिए। हम इस ज्ञान को अपने चीनी भाइयों- बहनों के साथ इस उम्मीद में साझा करना चाहेंगे कि ऐसा करने से हमारे बीच शांति को बढ़ावा मिलेगा।‘
‘हमारी संस्कृति का जन्म भारत में हुआ जिसे बेहतर तरीके से साबित करने के लिए आज हमारे पास हर तरह के साधन हैं। मुझे लगता है कि प्राचीन भारतीय ज्ञान के पहलुओं को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने से बहुत लाभ होगा। मैं दिल्ली में शिक्षाविदों और अन्य लोगों के साथ इस बात पर चर्चा करने के लिए उत्सुक हूं कि इसे कैसे किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण तत्व मन और भावनाओं के कामकाज को समझना है, जो मन की शांति की ओर ले जाता है। इससे लंबे समय तक दुनिया में शांति कायम रह सकती है।‘
‘चीनी कट्टरपंथी हमारे धर्म और संस्कृति के मूल्य को गलत समझते हैं। इस शब्दकोश का प्रकाशन, जिसका पहले से ही चीनी में अनुवाद किया जा रहा है, उन्हें सही तरीके से समझाने में मदद करेगा।‘
‘चीन में अध्ययन कर चुके मेरे परिचित एक तिब्बती ने मुझे बताया कि यद्यपि हम वर्तमान में चीनी राजनीतिक नियंत्रण में हैं, लेकिन लंबे समय में चीजें बदल जाएंगी और हम आध्यात्मिक रूप से उनकी मदद करने में सक्षम होंगे। जब चेयरमैन माओ ने मुझसे कहा कि धर्म अफीम है तो इसका कारण यह था कि वे इस बारे में बेहतर नहीं जानते थे। चीन में भारी भावनात्मक संकट है। हम वहां के लोगों को दिखा सकते हैं कि मन की शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है।‘
‘जब हम निर्वासन में भारत आए तो हम अपने ज्ञान और संस्कृति की क्षमता के प्रति जागरूक हुए और हमने उन्हें जीवित रखने के लिए साहस और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया। मैंने एक व्यक्ति के तौर पर जितना संभव था, वह सब किया है। आगे यहां उपस्थित आप सब लोग भी इसमें योगदान दे सकते हैं।‘