१२अक्तूबर, २०२२
थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। परम पावन दलाई लामा के आवास के सभागार में बुधवार १२अक्तूबर की सुबह लगभग १८०लोग पहुंचे। परम पावन उनके बीच आए। इनमें से १०१श्रोता माइंड एंड लाइफ संस्थान के सदस्य या मित्र थे। शेष तिब्बती भिक्षु और भिक्षुणियां थीं, जिन्होंने एमोरी विश्वविद्यालय में विज्ञान कार्यक्रमों में भाग लिया था। इनके अलावा तिब्बती वर्क्स एंड आर्काइव्स पुस्तकालय- मेन-त्सी-खांग- के विज्ञान के छात्रों के साथ-साथ दक्षिण भारत में महान मठों में शिक्षा-केंद्रों के लामा और मठाधीश भी शामिल रहे।
माइंड एंड लाइफ संस्थान की अध्यक्ष सुसान बाउर-वू ने परम पावन का स्वागत किया। उन्होंने कहा, हम माइंड एंड लाइफ में आपके मित्र हैं और यहां आकर खुश हैं। हमें आपको नजदीक से देखे हुए तीनसाल हो गए हैं और आपको इतनी अच्छी तरह देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। यह अवसर माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट और माइंड एंड लाइफ यूरोप के प्रयासों से फलीभूत हो पाया है। माइंड एंड लाइफ के पहले संवाद को हुए ३५साल हो चुके हैं। हम वापस आकर बहुत खुश हैं।
परम पावन ने उत्तर दिया, ‘हमने बहुत सारे माइंड एंड लाइफ संवाद आयोजित किए हैं और मुझे लगता है कि वे बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। दुनिया में बड़े पैमाने पर भौतिक चीजों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, लेकिन मन पर बहुत कम ध्यान जाता है। फिर भी जब हम सुख और दुख की बात करते हैं तो वे आंतरिक, मानसिक अनुभव होते हैं। अगर हमारे मन में शांति नहीं है तो हम खुश नहीं रह पाएंगे।’
‘दुनिया में हम जो अनेक प्रकार के संघर्ष देखते हैं, वे भौतिक चीजों, भौतिक संसाधनों और शक्ति को लेकर ही हो रहे हैं। इसलिए, हमें यह देखने की जरूरत है कि अतीत में क्या हुआ और इससे सीखना चाहिए ताकि हम शांति, खुशी और एकजुटता के आधार पर भविष्य का निर्माण कर सकें।’
‘मन की शांति का मूल करुणा है। जैसे ही हम पैदा होते हैं, वैसे ही माताएं हमारी देखभाल करना शुरू कर देती हैं और हमें करुणा का पहला पाठ पढ़ाती हैं। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। इसी से हमारा जीवन शुरू होता है। एक बच्चे के रूप में हम करुणा के वातावरण में बड़े होते हैं। हम निःसंकोच अपने पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलते हैं। जब मैं छोटा था तब बिना कुछ सोचे- समझे पड़ोस के मुस्लिम और चीनी बच्चों के साथ खेला करता था। हम सब साथ मुस्कुराए और आसानी से एक साथ खेले। ऐसे अच्छे संबंधों का मुख्य कारक सौहार्दता है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि हम अपनी शिक्षा में अपने बारे में कुछ उपेक्षा करते हैं। अनुभव हमें सिखाता है कि हम जितने अधिक करुणाशील होते हैं, उतनी ही अधिक हम आंतरिक शांति और उसके साथ आंतरिक शक्ति प्राप्त करते हैं। यद्यपि पूरे जीवन में हम बहुत सारे दूसरे लोगों पर निर्भर होते हैं। आधुनिक शिक्षा में ऐसे मानवीय मूल्यों के लिए बहुत कम जगह है।’
शुरुआत में कुछ शब्द कहने के लिए आमंत्रित रिची डेविडसन ने कहा, ‘नए मित्रों और पुराने मित्रों के बीच होना कितना अच्छा लगता है। हमारे प्रस्तुतकर्ताओं में एक मानवविज्ञानी, एक मनोवैज्ञानिक, एक मस्तिष्क और संज्ञानात्मक विज्ञान के दार्शनिक और एक मानव व्यवहार, सामाजिक व्यवस्था आदि पर शोध करने वाले संज्ञानात्मक वैज्ञानिक शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘हमने हाल ही में दुनिया में कई बदलाव देखे हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन और अवसाद में वृद्धि शामिल है। कोरोना महामारी के बाद से यह स्पष्ट हो गया है कि अकेलापन स्वास्थ्य के लिए मोटापे से भी बड़ा खतरा है। हमें अपने अंतर्संबंधों को और अधिक स्वीकार करने की आवश्यकता है। हम चाहते हैं कि ये लोग इस बात पर शोध करें कि एक सामाजिक प्राणी होने का क्या अर्थ है। हम लोकतंत्र के लिए इतना बड़ा खतरा बने ध्रुवीकरण को कैसे दूर कर सकते हैं।‘ हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता या एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के संबंध में परस्पर संबद्धता के नुकसान के बारे में आकलन करना चाहते हैं। हम इस दुनिया को एक बेहतर, करुणामयी दुनिया बनाना चाहते हैं।’
डेविडसन ने आगे कहा, ‘परम पावन, पिछले ३५वर्षों से हम वैज्ञानिकों और विद्वानों से मिलने को लेकर आपके समर्पण के लिए मैं आपको धन्यवाद देने के लिए यहां अपने सभी सहयोगियों की ओर से बोल रहा हूं। हमारी बैठकों का बहुत प्रभाव पड़ा है। आप अपने जीवन में दीर्घायु हों और आप स्वस्थ रहें।’
परम पावन ने उत्तर दिया, ‘भले ही अच्छे स्वास्थ्य में योगदान के लिए ही सही, लेकिन मन की शांति बहुत महत्वपूर्ण है। यह आत्मविश्वास और भय से मुक्ति दिलाता है। शायद मस्तिष्क विशेषज्ञ इस पर कुछ प्रकाश डाल सकें। मैं समझता हूं कि अच्छी नींद और सपने मस्तिष्क को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं और मन की शांति इसे सुगम बनाती है।’
परम पावन ने कहा, ‘मैंने अपने जीवन में बहुत अशांति का सामना किया है, पर मैंने नालंदा परंपरा में प्रचलित मनोविज्ञान का भी अध्ययन किया है और इसे बहुत उपयोगी पाया है।’
मॉडरेटर रोशी जोआन हैलिफ़ैक्स ने पहले वक्ता और हार्वर्ड में मानवविज्ञानी जोसेफ हेनरिक का परिचय दिया, जो कई विषयों में अपनी विशेषज्ञता रखते हैं। उन्होंने अपने शोध से इस बात को उद्घाटित किया है कि आनुवंशिकी और संस्कृति हमारे दिमाग को कैसे आकार देते हैं।
हेनरिक ने अपना वक्तव्य शुरू करते हुए कहा, ‘मेरा शोध इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि वह क्या चीज है जो हमें मानव बनाती है। हम मनुष्य १,००,०००वर्षों में दुनिया भर में फैले हैं। हमारी प्रजाति इतनी प्रभावशाली क्यों है? अक्सर अनुसंधान संकेत देते हैं कि भाषा, उपकरणों के उपयोग और सामाजिक सहयोग जैसे कारकों ने मनुष्य को वह बना दिया है जो वह है। हमारी संस्कृति संचयी है। हम सीखते हैं, संशोधित करते हैं, सुधरते हैं और अपने को परिष्कृत करते हैं जो अंततः सफल हो जाता है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘संस्कृति ने हमारे अनुवांशिक स्वभाव और हमारी प्रकृति को आकार दिया है। हमारे सोचने के तरीके ने हमारे शरीर और दिमाग को आकार दिया है। उदाहरण के लिए हम मनुष्यों ने आग का आविष्कार किया और खाना बनाना सीखा, जिसने हमारे शरीर क्रिया और शरीर के विज्ञान को बदल दिया। हम दूसरों से बहुत सी बातें सीखते हैं। इस तरह परिवर्तन सामाजिक मानदंडों और भाषा के पहलुओं से जुड़ी हुई होती हैं।’
परम पावन ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘मैं विश्वास करता हूं कि सभी मनुष्यों के बीच एकता का विचार सबसे महत्वपूर्ण है। सोचने के पुराने तरीकों का अनुसरण करते हुए हम बहुत अधिक हिंसा और युद्ध में लगे हुए हैं, जबकि अब हमें एक साथ रहना सीखना होगा।’
श्री हेनरिक ने आगे कहा, ‘सवाल यह है कि हम कैसे एकता की भावना का निर्माण कर सकते हैं। हम पाते हैं कि हम नियम बनाते हैं, हम एक-दूसरे पर आश्रित मनोविज्ञान विकसित करते हैं जिसे भोजन साझा करने के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। दूसरों का जीवित रहना हमारे अपने अस्तित्व को प्रभावित करता है। जब हम अन्य समाजों का अध्ययन करते हैं तो हम भोजन करने की सामान्य प्रथाओं को देखते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘नस्लीय मनोविज्ञान बताता है कि मनुष्य का सांस्कृतिक विकास हुआ है। हम अपने जैसे अन्य लोगों के साथ संकाय साझा करते हैं। हमें यह जांचने की आवश्यकता है कि वैश्विक मनोविज्ञान का निर्माण कैसे किया जाए। कृषि ने संघर्ष को जन्म दिया। हम सीख सकते हैं कि सांस्कृतिक परिवर्तन का उपयोग कैसे किया जा सकता है और कैसे वैश्विक पहचान का निर्माण किया जा सकता है जो स्थानीय समूहों को भी समायोजित करने वाला हो। मानव प्रकृति की अंतर्दृष्टि हमें हमारे सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकती है।’
रोशी जोन हैलिफ़ैक्स ने हेनरिक को अगली प्रस्तुतकर्ता मौली क्रॉकेट के साथ सीटों की अदला-बदली करने के लिए कहा। रोशी ने क्रॉकेट को अलग तरह की वैज्ञानिक के रूप में परिचय कराया। रोशी ने बताया कि क्रॉकेट ने मानव प्रकृति को समझने में योगदान देने के लिए कई अलग-अलग कारकों को एक साथ समन्वित किया है।
परम पावन ने टिप्पणी की, ‘अब हमें अतीत की नकल किए बिना भविष्य के बारे में सोचना होगा। हमें न केवल अपने देश, अपने समुदाय आदि के संबंध में सोचना है बल्कि एक व्यापक दृष्टिकोण अपना कर हमें सभी मनुष्यों की एकता और पूरी मानवता के बारे में सोचना है।‘
मौली क्रॉकेट ने अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए कहा, ‘अब तक आपने जो कुछ भी कहा है, मैं उससे सहमत हूं। आधुनिक विज्ञान काफी हद तक आपसे सहमत है कि हम अनिवार्य रूप से एक ही हैं। हालांकि, बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि मनुष्य मूल रूप से स्वार्थी हैं और एक-दूसरे से अलग है।
‘मनुष्य के स्वार्थी होने के विचार ने नीति को प्रभावित किया है, जैसा कि हमने महामारी के दौरान देखा। लेकिन ये अवलोकन निश्चित या पूर्ण नहीं हैं, क्योंकि हम यह भी जानते हैं कि दूसरों की मदद करने से हमें खुशी मिलती है। जब हम ऐसा करते हैं तो मस्तिष्क के इसी तरह के हिस्से उत्तेजित होते हैं जैसे कि जब हम अच्छे भोजन का आनंद लेते हैं या सूर्यास्त देख कर आनंदित होते हैं। एक साथ काम करने में स्वार्थ बाधक है।
‘हमें इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि हम कितने जुड़े हुए हैं। हमें सकारात्मक तरह की घटनाओं को बताने की जरूरत है।‘
परम पावन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि, ‘हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और हम सभी को ऐसा करने का अधिकार है। यह सामान्य ज्ञान है और हमें ऐसा करने के लिए हथियारों की ज़रूरत नहीं है।
क्रॉकेट आगे बोलती रहीं, ‘रूस और यूक्रेन के बीच समस्या का एक हिस्सा उन दोनों के बीच घृणित कहानियों का प्रसार है। चीजें इस तरह नहीं होनी चाहिए। जहां तक संभव हो सके, अधिक से अधिक सकारात्मक कहानियां बताने का प्रयास करना चाहिए। यह देखा गया है कि जब लोग एक साथ आते हैं, तब लोगों के स्वयं के देखने के नजरिए में परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए कालचक्र अभिषेक या अन्य प्रकार के उत्सव में भाग लेने के लिए आए लोगों को देखा जा सकता है।‘
परम पावन ने बीच में कहा कि उनका जीवन वास्तविक विश्व शांति प्राप्त करने के लिए समर्पित है।
इस पर क्रॉकेट ने टिप्पणी की, पहले आप धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बारे में बात कर रहे थे। हमारे शोध से पता चलता है कि जब लोग एक साथ आते हैं और सकारात्मक संदर्भ में एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं, तो वे अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
नेतृत्व के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने सुझाव दिया कि लोकतांत्रिक देशों में नेता आम जनता के बीच से निकलते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमें ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो सौहार्दता को बढ़ावा दें।
ऐसे नेता भी हैं जो शक्ति का प्रयोग करने में अधिक रुचि रखते हैं, इस पर परम पावन हंसे और इंगित किया कि जब ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने की बात आई तो उनकी शक्ति प्रभावहीन साबित हो गई।
मौली क्रॉकेट ने कहा कि नेता हम सभी को एक साथ मिलाकर बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। उन्होंने पूछा कि जब एकता और जुड़ाव की भावना स्पष्ट रूप से एक अलग तरह के परिदृश्य का निर्माण करती है तो ऐसा कैसे होता है कि बहुत से लोग स्वार्थ को ही वास्तविक परिदृश्य मानते हैं।
परम पावन ने इसका उत्तर दिया, ‘यह हमारी शिक्षा में कमियों और भौतिकवादी दृष्टि से सोचने की हमारी प्रवृत्ति का परिणाम है। हमें छात्रों को सौहार्दता को सकारात्मक और लाभकारी रूप में देखने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। यही प्रसन्नता और आंतरिक शक्ति की वास्तविक कुंजी है।‘
जोन हेनरिक ने मानवता की एकता को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि हमें स्थानीय संपर्कों की भी आवश्यकता है। उन्होंने पूछा कि स्थानीय और वैश्विक समुदायों के बीच तनाव को कैसे सुलझाया जा सकता है।
परम पावन ने उत्तर दिया, ‘हम विभिन्न राष्ट्रों से संबंधित हैं, विभिन्न भाषाएं बोलते हैं और हमारे सोचने के तरीके अलग-अलग हैं, पर हम हमेशा इस बात पर ध्यान रख सकते हैं कि इन सबके साथ ही जो हमें एक करता है वह यही तथ्य है कि हम मनुष्य हैं। सदियों पूर्व तिब्बतियों ने बौद्ध साहित्य का पाली और संस्कृत से तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। भाषा बदल गई, लेकिन सामग्री वही रही।
मौली क्रॉकेट ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में हो रहे अन्याय की प्रतिक्रिया में लोगों के गुस्से के बारे में पूछा। उन्होंने स्वीकार किया कि गुस्सा परेशान करने वाला हो सकता है, लेकिन सुझाव दिया कि कभी-कभी गुस्सा बदलाव ला सकता है। परम पावन ने सहमति व्यक्त की कि कभी ऐसा समय भी आता है जब स्पष्ट रूप से कठोर शब्द या कठोर कार्य का क्रियान्वयन न्यायोचित होता है, क्योंकि वे अंततः अच्छी भावना से प्रेरित होते हैं। उन्होंने उदाहरण के रूप में अपने बचपन का एक वाकये का हवाला दिया, जब उनके ट्यूटर के चेहरे पर उनके प्रति गुस्सा और निषेधात्मक का भाव आ गया था।
हेनरिक ने टिप्पणी की कि विश्व पिछले ५०वर्षों में और अधिक अन्योन्याश्रित हो गया है, जिस पर परम पावन सहमत हुए। उन्होंने टिप्पणी की कि अधिक लोकतांत्रिक दृष्टिकोण की ओर रुझान बढ़ रहा है। जनता व्यापक सम्मान चाहती है और इसके विचार अधिक वजन रखते हैं। हालांकि, जनता को भी पूरी मानवता का हिसाब रखने के लिए खुद को याद दिलाते रहने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘संवादके माध्यम से समस्याओं को हल करने के लिए गैर-सैन्य समाधान तलाशने की तत्काल आवश्यकता है। यह आज की नई स्थिति है। हमें ‘हम’ और ‘उन’ में बिना किसी विभाजन के एक साथ रहना है।‘
मॉडरेटर ने सत्र को संक्षेप में प्रस्तुत करने के लिए जॉन डन को आमंत्रित किया। उन्होंने एक प्रश्न रखा कि हम क्या सिखा सकते हैं जो एक बेहतर वैश्विक संस्कृति को बढ़ावा देनेवाला हो। उन्होंने इसका उत्तर शांतिदेव के ‘बोधिसत्व के मार्ग में प्रवेश’ के एक श्लोक से दिया :
संसार में जितने भी लोग दुःख उठाते हैं वे अपने सुख की इच्छा के कारण ऐसा करते हैं। संसार में जितने भी सुखी हैं, वे दूसरों के सुख की कामना के कारण ही सुखी हैं। ८/१२९
परम पावन ने सहमति व्यक्त की और उसी ग्रंथसे निम्न श्लोकजोड़ा:
अधिक क्या कहना? अपने लाभ के लिए तरसने वाले मूर्ख और दूसरों के लाभ के लिए कार्य करने वाले संत के बीच के अंतर को ध्यान से देखना चाहिए। ८/१३०
उन्होंने चंद्रकीर्ति के ‘मध्यम मार्ग में प्रवेश’ ग्रंथके अन्य शक्तिशाली छंदों का उल्लेख किया जो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि करुणा की साधना और शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा एक महान पक्षी के पंखों की तरह कार्य करती है जो चित्त की प्रबुद्ध स्थिति की ओर उड़ता है।
सत्र के समापन उद्बोधन के लिए आमंत्रित रिची डेविडसन ने परम पावन को सुबह का समय देने के लिए धन्यवाद दिया।
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने सुना है कि आप तिब्बतियों के एक बड़े समूह को अपना उपदेश देते हैं। लेकिन इस तरह के कर्मकांड और प्रार्थना पर्याप्त नहीं हैं। हमें अपने दिमाग को प्रशिक्षित करना होगा। हर इंसान के पास खुशी हासिल करने की क्षमता और अधिकार है। औसत व्यक्ति को अपने दिमाग को प्रशिक्षित करने में मदद करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? अतीत में कुछ लोग अपनी दांतों को साफ करते थे, अब लगभग सभी करते हैं। क्या कोई ऐसा ही सरल, सीधा अभ्यास है जिसे हम सब अपना सकते हैं?’
परम पावन का उत्तर संक्षिप्त और सारगर्भित था।
उन्होंने कहा, ‘हमें लोगों को बताना होगा कि सौहार्दता चित्त की शांति, आंतरिक शांति, आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास का स्रोत है। मैं इसे दूसरों के साथ साझा करने के आपके प्रयासों पर भरोसा करता हूं।’