तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि चीन भाषाओं के संरक्षण और भाषायी विविधता को बढ़ावा देना भारत से सीख सकता है। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की एक वेबसाइट के अनुसार कनाडा में शनिवार को दलाई लामा ने कहा, “चीन चाहे तो भारतीय अनुभव से सीख ले सकता है, जहां अलगाव के खतरे के रूप में देखे बगैर भाषा के संरक्षण और भाषा संबंधी विविधता को बढ़ावा दिया जा रहा है।” भारत का बेटा पुकारे जाने के बारे में दलाई लामा ने कहा कि यह सच्चाई है क्योंकि वह भारत में रह रहे हैं। उन्होंने कहा, “अगर मस्तिष्क को देंखे तो पाएंगे कि मेरे भीतर का समस्त ज्ञान भारत में नालंदा के विद्वानों से मिला है।” उन्होंने कहा कि उनका शरीर पिछले 51 साल से भारतीय दाल और चपाती के सहारे जीवित है। यह पूछे जाने पर कि क्या चीन के साथ तिब्बत की वार्ता प्रक्रिया में भारत की भूमिका है, उन्होंने कहा, “भारत हमें हमेशा से नैतिक समर्थन देता रहा है। हम चीने से सीधे बात करने को प्राथमिकता देते हैं।” दलाई लामा ने 1954-55 की अपनी बीजिंग यात्रा को याद करते हुए कहा कि वह चीनी नेताओं के आदर्शवाद से प्रभावित थे, जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के विचार से मिलते-जुलते थे।
भाषाओं के संरक्षण पर भारत से सीख सकता है चीन’
[रविवार, 24 अक्तूबर, 2010 | स्रोत : खबर NDTV]
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