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सूत्रों का कहना है कि भारतीय सेना के अधिकारी एक नए पाठ्यक्रम में तिब्बत के बारे में सीख रहे हैं, जिसका उद्देश्य पूर्व में स्वतंत्र हिमालयी देश तिब्बत के बारे में बेहतर समझ को बढ़ावा देना है।तिब्बत अब चीन का हिस्सा है।
भारत के रक्षा मंत्रालय ने इस सप्ताह घोषणा की कि इस पहल की शुरुआत तिब्बत की सीमा से लगे पूर्वोत्तर के भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में केंद्रीय हिमालय और सांस्कृतिक अध्ययन संस्थान में पढ़ाए जाने वाले ४२दिवसीय पाठ्यक्रम में की गई है। इस पाठ्यक्रम में भौगोलिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में तैनात सैन्य अधिकारियों ने भाग लिया था।
मंत्रालय ने कहा कि रविवार को समाप्त होने वाले पाठ्यक्रम में तिब्बती भाषा के पाठ, तिब्बती बौद्ध धर्म और साहित्य पर कक्षाएं और सांस्कृतिक रूप से तिब्बती क्षेत्र में स्थानीय मठों का दौरा शामिल है, जिसे अब चीन अपने क्षेत्र के रूप में दावा करता है। मंत्रालय ने कहा कि भविष्य में भी इसी तरह के पाठ्यक्रम की योजना बनाई जाएंगी।
१७ जुलाई को आरएफए से बात करते हुए फ्रांस में जन्मे पत्रकार और तिब्बत विशेषज्ञ क्लाउड अर्पी ने भारत सरकार के इस पाठ्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि चीन और भारत के बीच सीमा के विवादित हिस्सों पर चल रहे तनाव के कारण इसे अब अन्य सरकारी विभागों में भी लागू किया जाना चाहिए।
महीने भर चलने वाले पाठ्यक्रम में प्रशिक्षक के रूप में अपनी सेवा देने के बाद अर्पी ने कहा,‘भारत सरकार की यह पहल लद्दाख, सिक्किम और उत्तराखंड सीमा क्षेत्र में भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और अन्य शासी भारतीय अधिकारियों के लिए भी अच्छी होगी।‘
आरएफए से बात करते हुएभारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय के पूर्व सदस्य और अब सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी के अध्यक्ष जयदेव रानाडे ने कहा कि शिक्षण कार्यक्रम की योजना जून २०२० में लद्दाख के उत्तर-पूर्वी भारतीय क्षेत्र में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच घातक सीमा संघर्ष के बाद बनाई गई थी। रानाडे ने कहा, ‘इसके अलावा तिब्बत के इतिहास और परंपराओं का व्यापक ज्ञान होना सभी के लिए फायदेमंद होगा।‘