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प्रेस वक्तव्य
तिब्बत के लिए सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच (एपीआईपीएफटी) के पुनरुद्धार के बाद २२ दिसंबर २०२१ को निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा आयोजित रात्रि भोज में शामिल हुए भारतीय संसद के कई निर्वाचित माननीय सदस्यों को भारत में चीनी दूतावास के राजनीतिक काउंसलर ने एक पत्र लिखा है।
ऐतिहासिक रूप से तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं रहा है। तिब्बत पर अवैध और हिंसक कब्जे के बाद से चीन ने अपनी क्रूर और कठोर नीति के तहत तिब्बतियों पर अत्याचार शुरू कर रखा है। तिब्बत में तिब्बती अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हैं और तिब्बत की स्थिति आज भी गंभीर बनी हुई है। इसलिए, तिब्बती मुद्दा केवल ‘आंतरिक मामला’ नहीं है, जैसा कि चीन ने बार-बार दावा किया है। बल्कि यह तिब्बती अस्तित्व पर गंभीर संकट का विषय है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन और चीन द्वारा पड़ोसी देशों पर आधिपत्य जमाने की नीति अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। चीन ने आर्थिक विकास के नाम पर केवल अपने बढ़ते लालच को पूरा किया है और व्यवस्थित रूप से तिब्बत की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय विरासत को नष्ट कर रहा है और तिब्बती पहचान को मिटा रहा है। अब चीन भारत समेत दुनिया भर के स्वतंत्र राष्ट्रों और लोकतांत्रिक देशों पर अपना दबदबा दिखा रहा है। तिब्बत पर अवैध रूप से कब्जा करने और बड़ी संख्या में तिब्बतियों को देश से भागने के लिए मजबूर करने के बावजूद, चीन स्वतंत्र देशों में रहने वाले तिब्बतियों के भी हर कदम की निगरानी कर रहा है।
चीनी काउंसलर द्वारा भारतीय संसद के माननीय सदस्यों को पत्र भेजने से यह स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया भर में तिब्बत आंदोलन के बढ़ते समर्थन से चीन भयभीत है। स्वतंत्र देशों के नेताओं के पास तिब्बत के न्यायसंगत मुद्दे का समर्थन करने के अधिकार और जिम्मेदारियां हैं और हम चीन के इस कदम की कड़ी निंदा करते हैं।
निर्वासित तिब्बती संसद इसे आश्चर्य की बात नहीं मानती, क्योंकि चीनी सरकार अतीत में इसी तरह का व्यवहार करती रही है। चीन ने फिर से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) को एक ‘अलगाववादी राजनीतिक समूह’ कहा है। जबकि दुनिया जानती है कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन दुनिया भर में तिब्बत और तिब्बतियों की एकमात्र वैध प्रतिनिधिक संस्था है। तिब्बत के अंदर तिब्बतियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के हमारे प्रयास में कई देशों द्वारा सीटीए का गर्मजोशी से समर्थन किया गया है। तिब्बत के सक्रिय अहिंसक आंदोलन की अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यापक रूप से सराहना की गई है। सीसीपी की बढ़ती आक्रामकता और दुष्प्रचार को देखते हुए आज तक कोई भी देश चीन के इस तरह के बेतुके दावे पर विश्वास नहीं करेगा।
निर्वासित तिब्बती संसद चीन सरकार के साथ समान और बिना शर्त बातचीत का खुले तौर पर स्वागत करती है
निर्वासित तिब्बती संसद, स्थान: धर्मशाला, (हिमाचल प्रदेश, भारत)