ज़ी न्यूज़, 7 मार्च 2013
रायपुर: तिब्बती धर्मगुरू तथा नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा ने कहा है कि भारत अपनी शिक्षा, ज्ञान और आध्यात्म के आधार पर तिब्बत का गुरू रहा है और तिब्बत उसका चेला है।
दलाई लामा ने आज यहां कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षान्त समारोह में कहा कि भारत बुद्धिमता की भूमि है। भारत की भूमि के साथ तिब्बत का अत्यंत घनिष्ठ एवं विशेष संबंध रहा है। भारत अपनी शिक्षा, ज्ञान और अध्यात्म के आधार पर तिब्बत का गुरू रहा है और तिब्बत उसका चेला है।
उन्होंने कहा कि भारत हजारों सालों से समन्वय और उदारता की भूमि है। यह विश्व का ऐसा जीवंत उदाहरण है जहां अनेक धर्मो जैसे हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि जिनका भारत में उदय हुआ और ऐसे अनेक धर्मो जो दूसरे क्षेत्रों से यहां आये जैसे पारसी, इस्लाम, जरस्थ्रु, क्रिश्चयन आदि के नागरिक हजारों वर्षो से एक दूसरे के साथ प्रेम, समन्वय और उदारता के साथ रहते आये हैं। निश्चय ही भारत एक शांतिमय और अद्भूत देश है।
लामा ने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिसमें आधुनिक-पश्चिमी शिक्षा और परम्परागत भारतीय ज्ञान दोनों का समन्वय हो। आधुनिक पश्चिमी शिक्षा के माध्यम से भौतिक विकास तो संभव है, लेकिन यह आंतरिक या मानसिक शांति के लिए पर्याप्त नहीं है। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी अब यह साबित हो गया है कि केवल भौतिक विकास, मानव जीवन को सुखी बनाने की कुंजी नहीं है। आंतरिक शांति के लिए परम्परागत तथा अध्यात्मिक ज्ञान भी जरूरी है।
तिब्बती धर्म गुरू ने कहा कि वे पिछले 54 वर्षो से भारत की भूमि पर निवास कर रहे हैं और भारत और भारतीयता ने उनके शरीर और मन दोनों को गहराई से प्रभावित किया है। जब वे सात-आठ वर्षो के थे, तब से सुप्रसिद्ध बौद्ध चिंतक एवं भिक्षु नागाजरुन ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया है।