तिब्बत मामले के लिए अमरीकी विशेष समन्वयक अजरा जेया की धर्मशाला में मई की यात्रा के बाद से तिब्बती समुदाय एवं तिब्बत समर्थक संगठनों की मांग है कि भारत सरकार विदेश मंत्रालय के अन्तर्गत तिब्बत संबंधी एक अलग विभाग बनाये। भारत सरकार स्पष्ट तिब्बत नीति अपनाये तथा 2010 से बंद तिब्बत.चीन वार्ता पुनःप्रारंभ कराये। भारत सरकार चीन पर दबाव बढ़ाये तभी वह निर्वासित तिब्बत सरकार तथा परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता करेगा। भारत में धर्मशाला ;हिमाचलप्रदेशद्ध से संचालित निर्वासित तिब्बत सरकार वास्तव में लोक तांत्रिक तरीके से श्निवार्चितश्सरकार है। वार्ता का आधार हो मध्यममार्ग नीति। यह तिब्बत एवं चीनए दोनों के लिये कल्याणकारी है।
मध्यममार्ग नीति के अनुसार तिब्बत पूर्ण आजादी की मांग छोड़कर सिर्फ श्वास्तविक स्वायत्तताश्के लिये तैयार है। स्वायत्तता की मांग चीनी संविधान और चीनी राष्ट्रीयता कानून के अनुकूल है। प्रतिरक्षा और अंतरराष्ट्रीय विषय चीन के पास रहें तथा धर्मए सांस्कृतिए शिक्षाए कृषि आदि अन्य विषय तिब्बतियों को सौंपे जायें। चीन की भौगोलिक एकता.अखण्डता तथा संप्रभुता की रक्षा के साथ ही तिब्बतियों की स्वशासन की मांग भी मध्यममार्ग नीति से पूर्ण हो जायेगी। अतः भारत सरकार से इस दिशा में प्रभावी कूटनीतिक प्रयास की उम्मीद तर्क संगत है।
अजरा जेया के दस सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल में नई दिल्ली स्थित कार्यवाहक अमरीकी राजदूत भी शामिल थे। प्रतिनिधि मंडल का धर्मशाला परिसर में आगमन पर तिब्बतियों द्वारा हर जगहों पर हार्दिक स्वागत किया गया था। परम पावन दलाई लामा से प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत की चिन्ताजनक आंतरिक स्थिति के बारे में जाना। दलाई लामा ने तिब्बत मामले में जारी अमरीकी सहयोग एवं समर्थन के लिये आभार व्यक्त किया। उन्होंने आग्रह किया कि तिब्बत समस्या का हल शीघ्र निकाला जाये।
अमरीकी विदेश मंत्रालय के अधीन कार्यरत तिब्बत मामले के लिए विशेष समन्वयक अजरा जेया के ने तृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने तिब्बत सरकार के सिक्योंगए मंत्रियोंए सांसदों तथा अन्य पद अधिकारियों के साथ भेंट की। उसने तिब्बती न्याय व्यवस्था को भी प्रशांसनीय पाया। उसने अन्य तिब्बती संस्थाओं एवं संगठनों के भी विचार जाने। हर जगह प्रतिनिधि मंडल ने अमरीकी तिब्बत नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि अमरीका सदैव तिब्बती संघर्ष एवं लोकतंत्र के साथ रहेगा। वह निर्वासित तिब्बत सरकार का समर्थन और सहयोग जारी रखेगा। भारत सरकार से अमरीका के समान विदेश मंत्रालय के अधीन तिब्बत विभाग तथा तिब्बत नीति बनाने की अपील से चीन भले चिंतित होए लेकिन यह न्यायो चित है। भारत के साथ उसके संबंधों में तिब्बत की अनदेखी असंभव एवं अव्यावहारिक है। चीन को तिब्बत एवं दलाई लामा के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। वह 1949 से स्वतंत्र तिब्बत पर अवैध कब्जा किये हुए है तथा वहॉ के धर्म गुरु दलाई लामा को विघटनकारी एवं आतंककारी समझता है। इस से चीन की अन्तरराष्ट्रीय छवि लगातार खराब हो रही है। नोबल पुरस्कार समेत कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सरकारी तथा गैर सरकारी सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कर चुके दलाई लामा ने ही तिब्बत के सवाल को समस्त संसार का सवाल बना दिया है। इसी मई में उनके सुखमय दीर्घ जीवन हेतु साक्य बौद्ध परंपरा के प्रमुख ने धर्मशाला में विशेष पूजा की। इस अवसर पर दलाई लामा ने आश्वस्त किया कि वे अभी और 15.20 साल तक जीवित रहेंगे। उनके इस आश्वासन से तिब्बतियों तथा तिब्बत समर्थकों का खुश होना स्वाभाविक है।
तिब्बत के धार्मिक मामले में चीन का धर्म विरोधी व्यवहार अत्यन्त निंदनीय है। इसी 17 मई को 11वें पंचेन लामा गेदुन छुक्यी निमा के दुर्भाग्यपूर्ण सपरिवार चीनी अपहरण की साल गिरह है। इस अवसर पर विभिन्न राष्ट्रीय. अन्तरराष्ट्रीय संगठनों सहित तिब्बत सरकार के सूचना एवं अन्तरराष्ट्रीय संबंध विभाग ने उनकी शीघ्र रिहाई तथा उनके बारे में जानकारी उपलब्ध कराने की मांग की है। इस जोरदार मांग का महत्वपूर्ण कारण है तिब्बत के राज्याध्यक्ष ;सिक्योंगद्ध पेंपा छेरिंग का तिब्बती बस्तियों का लगातार दौरा तथा तिब्बतन एडवोकेसी कैंपेन की सफल ता। पेंपा छेरिंग उत्तर पूर्व तथा मध्य भारत स्थित तिब्बती बस्तियों का दौरा कर चुके हैं। अभी 29 मई से वे दक्षिण भारत में प्रवास करेंगे। उनके प्रवास के परिणाम स्वरूप तिब्बतियों तथा तिब्बत सर्मथकों को संघर्ष की नई ऊर्जा मिलती है। स्थानीय भारतीय प्रशासन तथा संगठनों एवं व्यक्तियों का सहयोग.समर्थन भी सुनिश्चित हो जाता है।
विश्व के विभिन्न देशों में स्थित तिब्बती कार्यालय सुव्यवस्थित रूप से तिब्बत एडवोकेसी कैंपेन चला रहे हैं। वे उन देशों में तिब्बत में जारी क्रूरता पूर्ण चीनी नीति के दुष्परिणामों की जानकारी देते हैं। वे बता रहे हैं कि विस्तारवादी चीन सरकार पर अंकुश विश्व शांति के लिये बेहद जरूरी है। व्यापक पैमाने पर ग्लेशियर होने के कारण तिब्बत को संसार की छत तथा तीसरा ध्रुव कहा जाता है। भोगवादी चीनी नीति के फलस्वरूप तिब्बत के ग्लेशियर सिकुड़ते जार हे हैं। पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधन संकटग्रस्त हैं। मानवाधिकारों का हनन जारी है। सांस्कृतिक.धार्मिक.ऐतिहासिक स्थल सुनियोजित विध्वंस के शिकार हैं। इस कैं पेनने चीन को बेनकाब कर दिया है।
स्पष्ट है कि सिक्योंग पेंपा छेरिंग की तिब्बती बस्तियों की लगातार यात्रा से इन बस्तियों में कल्याण कारी योजनाओं के सुनियोजित क्रियान्वयन को तथा तिब्बती संघर्ष को नई गतिप्राप्त हुई है। इसी तरह तिब्बतन एडवोकेसी कैंपेन के फल स्वरूप तिब्बतियों के समर्थन में चीनी विरोध के बावजूद विश्व जनमत अधि का धिक मुखर हो रहा है। ऐसे अनुकूल समय में भारत सरकार भी विश्व हित में सुदृढ़ विश्व जनमत के अनुरूप चीन पर दबाव बढ़ाये।