दैनिक जागरण, 4 जुलाई 2013
जागरण प्रतिनिधि, शिमला : ‘भारत-तिब्बत ज्ञान संबंध व परंपरा’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ बुधवार को किया गया। इसकी शुरुआत लोक प्रशासन संस्थान की निदेशक पूर्णिमा चौहान ने की। हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी और राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन नई दिल्ली द्वारा लोक प्रशासन संस्थान मशोबरा में पांच जुलाई तक यह सेमिनारआयोजित किया जा रहा है। तीन दिन तक चलने वाले इस राष्ट्रीय सेमिनार के पंच सत्र होंगे। इनमें बौद्ध धर्म, साहित्य, संस्कृति, भाषा, लिपि, वास्तुकला, आयुर्वेद, चित्रकला, मूर्तिकला इत्यादि विषयों पर केंद्रित 21 शोध पत्र पढ़े जाएंगे। इन्हें हिमाचल प्रदेश, वाराणसी, सारनाथ, सिक्किम, लखनऊ, उत्तार प्रदेश, दिल्ली व चंडीगढ़ के विद्वान प्रस्तुत करेंगे।
अकादमी के सचिव डॉ. देवेंद्र गुप्ता ने कहा कि आरंभ में तिब्बत में अपनी भाषा और लिपि नहीं थी। सातवीं शताब्दी में तिब्बत सम्राट सोड-चेन-गंपो ने अपने विद्वान मंत्री थोन्मी संभोट को भारतीय लिपि और भाषा का अध्ययन करने भारत भेजा था, जिन्होंने भारतीय लिपि के आधार पर तिब्बती लिपि तैयार की। इस लिपि में भारतीय बौद्ध साहित्य, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, शिल्प, वास्तुकला इत्यादि के संस्कृत ग्रंथों का व्यापक अनुवाद हुआ। कालांतर में बहुत सारा अमूल्य ज्ञान भारत में नष्ट हो गया, जबकि तिब्बत में बचा रहा। डॉ. गुप्ता ने कहा कि आज भी भारतीय गोंपाओं और बौद्ध मठों में यह ज्ञान चलन में है। भारत और तिब्बत के मध्य इस ज्ञान के आदान-प्रदान की परंपरा के अंतर्गत राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की योजना के तहत यह आयोजन शिमला में करवाया जा रहा है।