कैलाश मानसरोवर मुक्ति हमारा परम लक्ष्य – न्यायमूर्ति ज्ञानसुधा मिश्रा, भूतपूर्व न्यायधीश सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया
तिब्बत की स्वतंत्रता के बिना भारत की उत्तरी सीमाएं सुरक्षित नहीं हो सकती है – मेजर जनरल नीलेंद्र कुमार, भूतपूर्व भारतीय थल सेना
तिब्बत में हो रहे मानवाधिकार हनन पर चुप नहीं बैठ सकते है – आनंद वर्धन शुक्ला आईपीएस पूर्व आईजी
तिब्बत की भाषा, संस्कृति और धर्म का उदगम भारत की प्राचीन आध्यात्मिक भूमि से है – आचार्य येशी फुंशुक पूर्व डिप्टी स्पीकर निर्वासित तिब्बत सरकार
इतिहास में हुई भूलो को समझने के लिए इतिहास का पढ़ना बेहद आवश्यक – डा आशुतोष भटनागर डायरेक्टर, जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र, नई दिल्ली
ग्रेटर नोएडा: भारत तिब्बत संघ की दो दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन बैठक का उद्घाटन करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायधीश और भारत तिब्बत संघ की अध्यक्ष न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने कैलाश मानसरोवर की मुक्ति को परम लक्ष्य बताया है। तिब्बत और कैलाश मानसरोवर का अनादि काल से भारत के साथ पौराणिक और आध्यात्मिक संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि जन जन को तिब्बत और कैलाश मानसरोवर की मुक्ति अभियान के साथ जोड़ना होगा। भारतीय थल सेना से सेवानिवृत्त मेजर जनरल नीलेंद्र कुमार ने भारतीय सीमाओं की सुरक्षा के लिए तिब्बत की आजादी परम आवश्यक बताया। नीलेंद्र कुमार ने कहा कि सामरिक रूप से यह बेहद आवश्यक है कि तिब्बत जल्द से जल्द स्वतंत्र हो। भारत तिब्बत संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व आईजी आनंद वर्धन शुक्ल आईपीएस ने कहा कि आज विश्व में सर्वाधिक मानवाधिकार हनन की घटनाएं तिब्बत में हो रही है। कोई भी सभ्य समाज इस को अनदेखा कैसे कर सकता है। अपने आत्मसम्मान और गौरव को त्याग कर जीना कितना कठिन है इसका एहसास भी बहुत कम लोगों को है। तिब्बती संसद के पूर्व डिप्टी स्पीकर आचार्य येशि फुंशुक ने कहा कि तिब्बत की मूल संस्कृति भारत की मूल संस्कृति पर आधारित है। भारत तिब्बत समन्वय केंद्र नई दिल्ली से श्रीमती ताशी ने तिब्बत मुक्ति साधना के साथ जुड़ने का आवाहन किया तथा संगठन द्वारा इस निमित्त किए जा रहे कार्यों हेतु आभार प्रकट किया।
ब्लिस आयुर्वेदिक विलेज, नॉलेज पार्क में आयोजित दो दिवसीय चिंतन बैठक के समापन सत्र के मुख्य अतिथि देश के ख्यातिनाम विचारक और जम्मू कश्मीर अध्यन, केंद्र नई दिल्ली के डायरेक्टर डा आशुतोष भटनागर ने कहा कि चीन की सीमा भारत के साथ कभी भी साझा नहीं हुई है। यह अवरोध प्रकृति के द्वारा भी उत्पन्न हुए है। भारत की प्राचीन काल से स्वाभाविक सीमा हिंदुकुश पर्वत से मानी जाती है। भारत और चीन को हिमालय और तिब्बत एक दूसरे से पृथक करते है। चीन का वास्तविक आकार मौजूदा आकार से एक तिहाई ही है बाकी सब नाजायज कब्जा है। पुरातन इतिहास पर यदि हम नजर डाले तो हमे ज्ञात होगा कि विभिन्न संधियों में उल्लेख है कि कैलाश मानसरोवर क्षेत्र के विकास हेतु राजस्व वसूली और कर का संग्रह भारत द्वारा करते हुए कैलाश मानसरोवर क्षेत्र के विकास पर खर्च किया जाता था।
दो दिवसायीय चिंतन बैठक में देश के विभिन्न प्रांतों से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया। राष्ट्रीय महामंत्री सौरभ सारस्वत ने बताया कि गंगोत्री धाम मंदिर समिति उत्तराखण्ड के अध्यक्ष रावल हरीश सेमवाल, वृंदावन के पूज्य संत आदरणीय सुनील कौशल जी महाराज, देश की लोकप्रिय कवियित्री श्रीमती रुचि चतुर्वेदी, उत्तर क्षेत्र संयोजक श्री दिनेश जिंदल, अंतरराष्ट्रीय प्रभाग के संयोजक सुखमिंदर पाल सिंह ग्रेवाल, असम से श्रीमती अलका पटवारी, हिमाचल से श्री जोगिंदर सिंह वर्मा, पंजाब से हरजीत सिंह भुल्लर, कश्मीर से विवेक सिंघल, मंजरी सिंह, गुजरात से हरी भाई, राजस्थान से श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी श्री ओंकार सिंह राजपुरोहित, सिक्किम से शशि शर्मा, किशोर कुमार राई, जस माया, दोरजी और हरियाणा से अनूप गिरि जी महाराज, दिल्ली से विजय दीप, बलराज धनकड़, संदीप गर्ग, विपिन बिनवाल, सुनील, काशी से नगेंद्र कविदायल सहित देश के अनेक प्रांतों से आए अनेक प्रमुख पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया।