03 नवंबर, 2022
राजगीर।भारत के सबसे पुराने तिब्बत समर्थक समूहों में से एक भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) का दो दिवसीय नवमां राष्ट्रीय सम्मेलन 31 अक्टूबर से 01 नवंबर 2022 तक बिहार राज्य के पवित्र शहर राजगीर में आयोजित किया गया।सम्मेलन का विषय, ‘तिब्बत की आजादी, भारत की की सुरक्षा’रखा गया औरभारत-तिब्बत मित्रता और तिब्बत की स्वतंत्रता के बारे में सम्मेलन में चर्चा की गई।
दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन परम पवित्र प्रो. समदोंग रिनपोछे (पूर्व कालोन त्रिपा, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और आईटीएफएस के संरक्षक) ने सीटीए के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग की कालोन नोर्जिन डोल्मा औरबिहार सरकार के प्रतिनिधि डॉ. नरेंद्र पाठक के साथ किया। सम्मेलन में स्वामी बसवा मदारा चेन्नईयाह और डॉ आनंद कुमार समेत देश भर से 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
डॉ. आनंद कुमार ने अपने परिचयात्मक भाषण में सत्य और न्याय के साथ खड़े होने के लिए भारत-तिब्बत मैत्री संघ की सराहना की और कहा कि तिब्बती मुद्दे का समर्थन करना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने सम्मेलन स्थल के लिए चयनित नालंदा परंपरा की भूमि के रूप में राजगीर के महत्व को भी साझा किया,जिससे तिब्बत का आध्यात्मिक संबंध जुड़ा है।
कालोन नोर्जिन डोल्मा ने अपने संबोधन में तिब्बती मुद्दे पर विचार-विमर्श करने वाले सम्मेलन के आयोजन के लिए भारत-तिब्बत मैत्री संघ की सराहना की। उन्होंने पिछले छह दशकों से तिब्बती भाषा, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए उनके योगदान सहित तिब्बतियों को लगातार समर्थन और सहायता देने के लिए भारत की सरकारों और लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने तिब्बत के महान मुद्दे के लिए स्थानीय स्तर पर समर्थन, क्षमता निर्माण और तिब्बत समर्थक समूहों के सशक्तिकरण के महत्व पर जोर देते हुए तिब्बत के संबंध में वर्तमान घटनाक्रम और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा दुनिया भर में तिब्बती मुद्दों के लिए समर्थन और वकालत करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर प्रकाश डाला।
आईटीएफएस को तिब्बती मुद्दे के लिए काम करने वाले सबसे पुराने संगठनों में से एक के रूप में देखते हुए प्रोफेसर समदोंग रिनपोछे ने उनकी नैतिकता और सेवाओं की सराहना की। उन्होंने सार्वभौमिक जिम्मेदारी के तौर पर ‘प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित’ करने की अनिवार्य आवश्यकता पर बल दिया।
रिनपोछे ने कहा,‘तिब्बत का मुद्दा किसी छोटे से देश का मुद्दा नहीं है, बल्कि मानवता का मुद्दा है। गौतम बुद्ध का मित्रता और करुणा का संदेश ही तिब्बत मुद्दे का एकमात्र समाधान है। तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के मार्ग की आवश्यकता है।‘
सभा में ही प्रोफेसर समदोंग रिनपोछे का जन्मदिन अग्रिम रूप से मनाया गया। उन्हें आईटीएफएस के संरक्षक और तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक माना जाता है।
इस मौके पर बिहार सरकार के प्रतिनिधि डॉ नरेंद्र पाठक ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संदेश पढ़ा।
दूसरे दिन के सम्मेलन की अध्यक्षता सिक्योंग पेन्पा छेरिंग और बिहार सरकार में ग्रामीण विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री श्री श्रवण कुमार ने की।
सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने अपने मुख्य भाषण में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण से लेकर मधु लिमये द्वारा तिब्बत के लिए सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच के गठन तक भारत-तिब्बत मित्रता की पृष्ठभूमि को याद किया। इस मंच का आगे नेतृत्व जॉर्ज फर्नांडीस ने किया। सिक्योंग ने सभा से तिब्बत के अंदर की विकट स्थिति की गहरी समझ के लिए 1984में जॉर्ज ऑरवेल द्वारा लिखी गई एक पुस्तक का गहन अध्ययन करने की सिफारिश की। उन्होंने प्रतिनिधियों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत तिब्बत की कानूनी स्थिति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत के लिए अपनी निरंतर एडवोकेसी के बारे में जानकारी दी।
मंत्री श्रवण कुमार ने तिब्बत के लिए अपने समर्थन का आश्वासन दिया और इस मुद्दे को समर्थन देनेवाले डॉ. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीस और अन्य समाजवादी नेताओं के नक्शेकदम पर चलने का आश्वासन दिया।
तिब्बत के विशेषज्ञ और समर्थक डॉ. विजय क्रांति ने तिब्बत पर एक ऑनलाइन प्रस्तुति दी, जिसमें तिब्बत की वर्तमान स्थिति और तिब्बत के संबंध में हाल के घटनाक्रमों की तुलना में कम्युनिस्ट चीन द्वारा तिब्बत पर अवैध कब्जे पर प्रकाश डाला।
सम्मानित सदस्यों और प्रतिनिधियों के बीच भारत की तिब्बत नीति/हिमालयी नीति पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई, जिसमें से प्रत्येक ने अपने पक्ष प्रस्तुत किए।
केंद्रीय समिति, राज्य समिति और छात्र एवं महिला मंच की रिपोर्ट पर एक संगठनात्मक चर्चा हुई, जिसके बाद राज्यवार बैठक हुई।
सम्मेलन ने आईटीएफएस के संगठनात्मक पुनर्गठन और राजगीर घोषणा-पत्र और कार्य योजना को अपनाने का संकल्प लिया।