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दो अलग-अलग रिपोर्टों में चीन की विस्तारवादी नीति और सीमा पर उसके बढ़ते कारनामे खुलकर सामने आए हैं।
पिछले कुछ वर्षों से एशिया में सुरक्षा का माहौल अविश्वास और संदेह के बादलों से ढका हुआ है। डोकलाम गतिरोध से लेकर गलवान घाटी संघर्ष तक चीन ने अक्सर अपने वादों और भारत के भरोसे को तोड़ा है।
२०२१ की पेंटागन रिपोर्ट भी भारत के प्रति चीन की दोहरी नीति की पुष्टि करती है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सीमा पर तनाव को कम करने के लिए चल रहे राजनयिक और सैन्य संवाद के बावजूद पीआरसी ने एलएसी पर अपने दावों को पुष्ट करने के लिए अतिक्रमणकारी और सामरिक कार्रवाई जारी रखी हुई है।’
भविष्य के दावों और नियंत्रण के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की यह एक लंबी क्षेत्रीय रणनीति रही है। उदाहरण के लिए १९९५ में फिलीपींस के साथ कई राजनयिक जुड़ावों के बावजूद चीन ने मिसचीफ रीफ पर अपनी उपस्थिति को बढ़ाना जारी रखा।
बुनियादी ढांचा और प्रतीकात्मक रूप से लोगों का एकीकरण
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘२०२० में किसी समय पीआरसी ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और एलएसी के पूर्वी क्षेत्र में स्थित भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के बीच विवादित क्षेत्र में १०० घरों का एक गांव बना दिया।’
रॉन ई. हसनर द्वारा लिखे गए एक व्यावहारिक आलेख ‘द पाथ टू इंट्रैक्टेबिलिटी: टाइम एंड द एंट्रेंचमेंट ऑफ टेरिटोरियल डिस्प्यूट्स (अखंडता का मार्ग: क्षेत्रीय विवादों का समय और खाई)’ में लेखक का तर्क है कि भौतिक लिंक (उदाहरण के लिए सड़कों) और प्रतीकात्मक लिंक (जैसे मंदिर और चर्च) का निर्माण) विवादित क्षेत्र में कब्जे वाले राज्य के साथ विवादित क्षेत्र को और बढ़ाएगा।
उपरोक्त सभी गतिविधियों ने विवादित क्षेत्र और कब्जे वाले राज्य के बीच संबंधों को और मजबूत किया। इसलिए भविष्य में समझौता करना और अधिक कठिन हो जाएगा, क्योंकि विवादित क्षेत्र कब्जे वाले राज्य के साथ प्रतीकात्मक रूप से और भौतिक रूप से जुड़ा हुआ है।
दूसरे शब्दों में बुनियादी ढांचे का निर्माण हमेशा राजनीतिक महत्व का होता है। सीमा प्रशासन के संदर्भ में यह संप्रभु स्थान के मार्कर और एक जैव-राजनीतिक हस्तक्षेप- दोनों के संदर्भ में यह राज्य की क्षेत्रीयता को लागू करने का प्रतीक है। संक्षेप में कहें तो विवादित क्षेत्र के अंदर कथित तौर पर १०० घरों वाले एक बड़े गांव के निर्माण से चीन ने पहले ही विवाद की खाई को बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
चीन पर ताइवान की राष्ट्रीय रक्षा रिपोर्ट
हाल ही में ताइवान के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय ने भी अपनी वार्षिक ‘आरओसी राष्ट्रीय रक्षा रिपोर्ट- २०२१’ जारी की। पहली बार चीन से बढ़ते सैन्य खतरों के बीच ताइवान और अन्य देशों के बीच संचार को बढ़ावा देने के लिए चीनी और अंग्रेजी भाषा में एक साथ रिपोर्ट जारी की गई थी।
सुरक्षा वातावरण पर पहला अध्याय कहता है, ‘अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक और सुरक्षा स्थितियों को प्रभावित कर रही है। एक तरफ अमेरिका क्षेत्रीय सहयोगियों और भागीदारों के साथ सहयोग पर जोर दे रहा है। इसके अलावा, बढ़ते गैर-पारंपरिक खतरों के साथ-साथ अधिक व्यापक अंतर-क्षेत्रीय और समग्र प्रभावों के साथ क्षेत्र के सभी देशों को हाथ मिलाने और प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता है।’
यह अमेरिका और भारत के बीच मजबूत होते संबंधों और एशियाई देशों को चीन की बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ हाथ मिलाने की आवश्यकता का संकेत देता है। बीजिंग का इन क्षेत्रों के देशों के साथ दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और भारत-तिब्बत सीमा जैसे कई गंभीर विवाद हैं।
भारत-चीन संबंधों को लेकर रिपोर्ट बहुत उदासीन है, ‘उनके बीच क्षेत्रीय विवाद जल्द हल होने की संभावना नहीं है।’ पहला अध्याय अपनी व्यापक राष्ट्रीय शक्ति के माध्यम से चीन के जनवादी गणराज्य के भू-राजनीतिक प्रभावों के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने के लिए आर्थिक दबाव और ग्रे-ज़ोन रणनीति का भी उपयोग करता है।
संक्षेप में अमेरिका और ताइवान दोनों एक स्थिर और खुली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए चीन द्वारा पेश की जा रही बढ़ती चुनौतियों को स्वीकार करते हैं।
तिब्बत क्यों मायने रखता है?
तिब्बत में बुनियादी ढांचे का विकास चीन की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है। तिब्बत नीति संस्थान, धर्मशाला द्वारा प्रकाशित ‘तिब्बत २०२०: एक वर्ष की समीक्षा’ में कहा गया है-
‘चीनी की १४वीं पंचवर्षीय योजना तिब्बत और पूर्वी तुर्केस्तान (झिंझियांग) के बीच राजमार्ग लिंक के अलावा रेलवे लाइन संपर्कों का विस्तार करके चीन के हितों को दर्शाती है। चीन की वर्तमान पंचवर्षीय योजना में यह उल्लेख किया गया है कि चीन ‘झिंझियांग से बाहर और तिब्बत में रणनीतिक रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले गलियारों के निर्माण को तेज करेगा’। इसमें जी-२१९ (झिंजियांग-तिब्बत), जी-३१८ सिचुआन-तिब्बत राजमार्ग और जी-३३१ (दादोंग से अल्ताय) राष्ट्रीय राजमार्गों का उन्नयन और विस्तार शामिल है। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी रणनीतिक राजमार्ग भारत के साथ तिब्बत की सीमा पर एक-दूसरे के समानांतर चलते हैं। अतीत में भी, तिब्बत पर आक्रमण और कब्जा करने के बाद सीसीपी ने तिब्बत के सभी सीमावर्ती क्षेत्रों को जोड़ने के लिए भारत से लगती तिब्बत की सीमाओं सहित अपने सड़क नेटवर्क का निर्माण और सुदृढ़ीकरण शुरू किया। इस तरह १९५७ में बनकर तैयार हुआ पूर्वी तुर्केस्तान (चीनी: झिंझियांग)-तिब्बत राजमार्ग अक्साई चिन के भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरता है।
हाल ही में टाइम्स नाउ समिट में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने कहा, ‘चीन भारत के सामने सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा है।’ उन्होंने आगे कहा कि ‘विश्वास की कमी’ और बढ़ता ‘संदेह’ दो परमाणु-संपन्न पड़ोसियों के बीच सीमा विवादों को हल करने के रास्ते में आ रहा है। इसलिए भविष्य में तिब्बत के अंदर जो कुछ भी होता है, वह भारतीय सुरक्षा वातावरण और एशिया के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
*डॉ. तेनज़िन त्सुल्ट्रिम तिब्बत नीति संस्थान में विजिटिंग फेलो हैं। जरूरी नहीं कि यहां व्यक्त किए गए विचार तिब्बत नीति संस्थान के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। यह लेख मूल रूप से क्विंट में ०१ दिसंबर २०२१ को प्रकाशित हुआ था।