केन्द्रीय तिब्बती प्रषासन की ओर से प्रेशित नए साल २०२२ की बधाई स्वीकारते हुए हम सुनिष्चित करें कि भारत- चीन संबंधों को विष्वसनीय बनाने के लिये तिब्बत समस्या का समाधान जरूरी है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार भारत एवं चीन के बीच स्वतंत्र देष तिब्बत स्थित था। इसे मध्यस्थ राज्य (बफर स्टेट) कहा जाता था। तब भारत की सीमा तिब्बत से मिलती थी। भारत की सीमा से चीन काफी दूर था। इसीलिये चीन के साथ भारत का कोई सीमा विवाद नहीं था। दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति नहीं थी। चीन के साथ भारत के संबंध विष्वसनीय और मित्रतापूर्ण थे। परिस्थिति तब बदली जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। साम्यवादी चीन ने ऐतिहासिक प्रमाणों से छेड़छाड़ की और बलपूर्वक तिब्बत पर कब्जा कर लिया। उसने १९४९ से ही प्रयास प्रारंभ कर दिये थे। मार्च १९५९ में वह पूर्णतः सफल हो गया। इसमें तत्कालीन भारतीय नेतृत्व का भरपूर मौन सहयोग रहा।
जब चीन ने स्वतंत्र तिब्बत को अपना अभिन्न अंग बताना शुरु किया उसी समय जयप्रकाष नारायण, दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. अम्बेडकर, डॉ. राममनोहर लोहिया एवं अन्य राजनेताओं ने स्पश्ट कहा कि तिब्बत को हथियाने के बाद चीन का अगला निशाना भारत होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सावधान करते हुए सलाह दी कि वे चीन की साम्राज्यवादी नीति का विरोध करें। तिब्बत का पड़ोसी और विष्वसनीय मित्र होने के कारण विष्व समुदाय को भी भारत से ऐसी उम्मीद थी।
जिस समय चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने की साजिश जारी थी उसी समय नेहरू चीन को संयुक्त राश्ट्रसंघ में सुरक्षा परिशद का स्थायी सदस्य बनवा रहे थे। उन्हें विष्वास था कि अन्तरराश्ट्रीय संबंध एवं राजनीति में उनका ज्ञान एवं अनुभव ही भारतीय राश्ट्रीय हितों का संरक्षण करेगा। वे स्वयं साम्यवादी विचारों से प्रभावित होने के कारण चीन पर ज्यादा भरोसा करते थे। वे चीन के साथ पंचशील समझौता करने में लगे थे। हिन्दी- चीनी भाई भाई का उद्घोश कर रहे थे।
ऐतिहासिक सच्चाई है कि चीन ने स्पश्ट कहा था कि उसे भारत-चीन सीमा संबंधी मैकमोहन लाइन नामंजूर है। वह भारत की भौगोलिक सीमा का निरादर करते हुये कई भारतीय भूभागों को चीनी मानचित्र में प्रदर्षित कर रहा था। तिब्बत पर उसके सफल अवैध आधिपत्य और तब भारत की चुप्पी का यह दुश्परिणाम पहले से निष्चित था। चीनी विस्तारवादी साजिष से सुरक्षार्थ भारत को सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी एवं सामरिक सुविधाओं का विस्तार करना था। विष्वस्तर पर चीन की कूटनीतिक घेराबंधी करनी थी। चीन ने भारतीय उदासीनता और सामरिक कमजोरी का लाभ उठाते हुए १९६२ में दिवाली के समय भारत पर आक्रमण कर दिया। चीन ने बहुत बड़े भारतीय भूभाग भी हथिया लिये। तब नेहरू को लगा कि चीन ने उन्हें धोखा दिया है। इस आघात ने १९६४ में उनकी जान ले ली, जबकि भारत की हार के बावजूद वे आजीवन प्रधानमंत्री ओर विदेष मंत्री बने रहे।
इन कटु तथ्यों के बावजूद तिब्बती और तिब्बत समर्थक जवाहरलाल नेहरू के प्रति कृतज्ञ हैं कि चीनी विरोध के बावजूद उन्होंने परमपावन दलाई लामा को उनके हजारों अनुयाइयों सहित भारत में शरण दी थी। भारतीय संसद ने १४ नवंबर १९६२ को अपने सर्वसम्मत प्रस्ताव में भारतीय भूभाग को चीनी आधिपत्य से मुक्त कराने का संकल्प लिया था। नेहरू के जन्मदिन अर्थात् १४ नवंबर को इस संकल्प को पूरा करने का निशचय अवष्य दोहराना चाहिये। यह संकल्प शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में भी प्रमुखता से शामिल हो।
चीन सरकार हांगकांग, ताइवान तथा पूर्वी तुर्किस्तान को भी अपना शिकार बनाने में लगी है। भारत को चारों ओर से घेरने, अपमानित करने तथा नये भारतीय क्षेत्रों को चीन का क्षेत्र बताने का चीनी प्रयास लगातार जारी है। चीन के ही वुहान शहर से फैली कोरोना महामारी के बीच चीन ने २०२० में गलवान में घुसपैठ कर दी। उसने २०१७ में डोकलाम में भी ऐसा किया था। वह अरुणाचल प्रदेश को भी चीन का हिस्सा बता रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की कूटनीतिक-सामरिक तैयारी और सफलता ने चीन को अहसास करा दिया है कि उसके विस्तारवादी प्रयास अब सफल नहीं होंगे।
नरेन्द्र मोदी सरकार से अपेक्षा है कि वह निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि वास्तव में लोकतांत्रिक तरीके से तिब्बतियों द्वारा निर्वाचित सरकार है, के तिब्बत को ”वास्तविक स्वायत्तता“ संबंधी प्रस्ताव को मानने के लिये चीन पर दबाव बढ़ाये। परमपावन दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार तिब्बत की पूर्ण आजादी की मांग को छोड़ चीन के संविधान और कानून के अनुरूप ”वास्तविक स्वायत्तता“ के लिए तैयार हैं। यही मध्यममार्ग है। इससे चीन की एकता-अखण्डता-संप्रभुता सुरक्षित रहेगी और तिब्बतियों को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। प्रतिरक्षा और वैदेषिक मामले चीन सरकार रखे तथा अन्य विभाग तिब्बत सरकार को सौंपे जाये।
तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता मिलने से तिब्बत के साजिषपूर्ण चीनीकरण पर रोक लगेगी। तिब्बती क्षेत्र का भारत के खिलाफ दुरुपयोग रूकेगा। तिब्बत के साथ भारत के संबंध हज़ारो वर्शो से हैं। वे पुनर्जीवित होंगे। भारतीय कैलाष-मानसरोवर की पवित्र यात्रा करेंगे तथा तिब्बती भारत स्थित बौद्ध स्थलों की। वर्तमान समय में चीन ने कैलाष-मानसरोवर यात्रा को भी भारी कमाई तथा जासूसी का माध्यम बना दिया है।