dalailama.com
थेकछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज२२ अप्रैल शुक्रवार को पृथ्वी दिवस के अवसर परपरम पावन दलाई लामा ने ‘भविष्य के लिए संवाद’ में भाग लेने वालों के साथ मुलाकात की। इसका आयोजन यहां धर्मशाला में कई संगठनों द्वारा किया गया। परम पावन ने मुस्कुराते हुए कमरे में प्रवेश किया अतिथियों को ‘सुप्रभात’कहकर उनका अभिवादन किया।
सबसे पहले जलवायु न्यूनीकरण अन्वेषक सोनम वांगचुक ने परम पावन को बर्फ का एक टुकड़ा भेंट किया। उन्होंने बताया कि यह बर्फ का टुकड़ा तिब्बती पठार पर जलवायु परिवर्तन की वर्तमान स्थिति को उजागर करने के लिए लद्दाख में करदुंगला दर्रे पर एक हिमनद से लिया गया है। इसे युवाओं की एक टीम द्वारा साइकिल, सार्वजनिक परिवहन और इलेक्ट्रिक वाहनों पर रखकर यह संदेश देने के लिए लाया गया है कि ‘कृपया सरलता से जीवन- यापन करें, ताकि हम पहाड़ों में आसानी से रह सकें।’
अपनी प्रतिक्रिया में परम पावन ने सभा से कहा, ‘मैं इस बात को लेकर वास्तव में सराहना करता हूँ कि अधिक से अधिक लोग पर्यावरण के लिए चिंता दिखा रहे हैं। आखिरकार पानी ही हमारे जीवन का आधार है। आने वाले वर्षों में हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम उन महान नदियों के संरक्षण के लिए कदम उठाएं जो इतने सारे लोगों के लिए पानी का स्रोत हैं। मैंने अपने जीवनकाल में ही तिब्बत के अंदर बर्फबारी को साल दर साल कम होते देखा है. इसके परिणामस्वरूप तिब्बत की नदियों में पानी कम होता चला गया.
उन्होंने आगे कहा कि अतीत में हम पानी के मुद्दे को हल्के में लेते थे। हमने कभी महसूस नहीं किया कि यह कहां से आता है।इस पर ज्यादा विचार किए बिना हम इसका मनचाहा उपयोग कर सकते हैं। लेकिन अब हमें अपने जल स्रोतों के संरक्षण के बारे में अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि हमारे पास खारे पानी,समुद्र के पानी को मीठे पानी में बदलने की तकनीक है जिससे हम कई जगहों पर रेगिस्तानों को हरा-भरा कर सकते हैं और अधिक भोजन पैदा कर सकते हैं।
अब, यह सुनिश्चित करना हमारी ज़िम्मेदारी है कि आने वाली पीढ़ियां स्वच्छ पानी का आनंद लेती रहें। यह उनके प्रति करुणा व्यक्त करने का एक तरीका है। यदि हम प्रयास नहीं करते हैंतो हमारी दुनिया के रेगिस्तान बनने का खतरा है। अगर ऐसा होता है तो यह खूबसूरत नीला ग्रह पानी के बिना सिर्फ एक शुष्क,सफेद चट्टान बन कर रह जाएगा।
‘मुझे यह बात बार-बार ध्यान में आती रहती है कि पानी के बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं। मेरे कुछ भारतीय मित्र कहते हैं कि एक उपाय यह है कि अधिक से अधिक पेड़ लगाएं और इससे मदद मिलेगी। मेरे मित्र सुंदरलाल बहुगुणा ने मुझसे लोगों को पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहित करने का वादा करने के लिए कहाऔर मैं उनकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करता रहता हूं।
चेक गणराज्य के पूर्व पर्यावरण मंत्री मार्टिन बर्सिक ने परम पावन को पर्यावरणविदों के इस समूह को एक साथ लाने के लिए प्रेरित करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने संवाद के फोकस के तौर पर चार विषयों की रूपरेखा तैयार की।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नवीनतम रिपोर्ट में वर्णित ग्रह की स्थिति।
२. जलवायु संकट को दूर करने में पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा जैसी प्रौद्योगिकी की भूमिका।
३. कुछ पर्यावरणविद तिब्बत को तीसरे ध्रुव के तौर पर मानते हैं। लेकिन साथ ही उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि इस तीसरे ध्रुव पर न केवल हिमनद घट रहे हैं,बल्कि इसके पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मीथेन गैस भी उत्सर्जित हो रहे हैं।
४. ऊर्जा लोकतंत्र। ऊर्जा मॉडल को किस तरह से बदला जाए कि अधिक से अधिकआम लोग इससे सीधे तौर पर जुड़ सकें।
बर्सिक ने परम पावन से कहा कि भविष्य की सुरक्षा के लिए इस संवाद में आए विचारों को लेकर मिस्र में होनेवलीकॉप- २७ की बैठक के समय तिब्बती पठार की रक्षा और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कदम उठाने की दृष्टि से एक घोषणा-पत्र तैयार किया जाएगा।
परम पावन ने उत्तर दिया, ‘पहले हम अपनी जलवायु को हल्के में लेते थे, इसे प्रकृति का हिस्सा ही मानते रहे। जलवायु में जो परिवर्तन हुए हैं, उनमें से कुछ हमारे व्यवहार के कारण हुए हैं,इसलिए हमें लोगों को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारकों के बारे में शिक्षित करना होगा। हमें अपने पर्यावरण को संरक्षित करने के तरीकों पर अधिक ध्यान देना होगा। इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को सामान्य शिक्षा के हिस्से के रूप में समझना होगा।
केन्या की एक जलवायु कार्यकर्ता एलिजाबेथ वाथुती ने परम पावन से पूछा कि कैसे हम विश्व नेताओं से प्रेम और करुणा से कार्य करने की अपील कर सकते हैं। इस पर परम पावन ने वाथुती से कहा कि हम उन्हें बता सकते हैं कि दूसरों की देखभाल करके हम अनिवार्य रूप से अपना ख्याल रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि समुदाय का स्वास्थ्य और खुशी व्यक्तियों के स्वास्थ्य और खुशी का स्रोत है।
परम पावन ने कहा, ‘मैं जहाँ भी जाता हूं, मुस्कुराता रहता हूं और मानता हूं कि जिनसे मैं मिल रहा हूं वे मनुष्य होने के नाते मेरे जैसे ही हैं। अन्य लोगों को ‘हम’और ‘उन्हें’ के संदर्भ में देखना और इस बात पर ध्यान देना कि दूसरे लोग मेरे जैसे नहीं हैं, वस्तुत: अविश्वास और अलगाव की ओर ले जाते हैं। यह सोचना कहीं अधिक उपयोगी है कि कैसे सभी सात अरब मनुष्य मूल रूप से एक जैसे हैं। क्योंकि हमें एक साथ रहना है।’
खुद को विज्ञान कथा लेखक के रूप में प्रस्तुत करने वाले किम स्टेनली रॉबिन्सन ने पूछा कि बौद्ध धर्म विज्ञान की मदद कैसे कर सकता है। परम पावन ने उन्हें बताया कि वैज्ञानिक चित्त की शांति प्राप्त करने के तरीकों पर चर्चा करने में रुचि रखते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि यदि मन अशांत है तो लोग खुश नहीं होंगे। उन्होंने मानसिक चेतना के बारे में और अधिक शोध करने और तर्क के आधार पर इसे प्रशिक्षित करने के लिए सीखने के लाभों पर जोर दिया।
कनाडा में रहनेवाली एक तिब्बती व्यवसायी महिला त्सेरिंग यांग्की जानना चाहती थीं कि कैसे व्यापार और अर्थव्यवस्था को जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती के समाधान के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि चूंकि प्रौद्योगि की भौतिक सुविधाओं में सुधार का एक कारक है,इसलिए चित्त को प्रशिक्षित करके हम सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन कर सकते हैं।
एनर्जी सिस्टम्स इनोवेटर अराश आज़मी ने कहा कि ऊर्जा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, फिर भीहम इसके लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने पूछा कि हम प्रकृति,मनुष्य और अर्थव्यवस्था की जरूरतों को कैसे संतुलित कर सकते हैं।
परम पावन ने उत्तर दिया, ‘भौतिक विकास आवश्यक और सहायक दोनों है। लेकिन जो हासिल किया जा सकता है उसकी एक सीमा होती है। इस बीच,अपने दिमाग को विकसित करना हमारी जरूरतों को पूरा करने का अधिक प्रभावी तरीका है। बुद्ध ने दूसरों की सेवा करने के इरादे से छह साल तक उपवास किया। तिब्बती योगी मिलारेपा और हाल में महात्मा गांधी सबसे कम सुविधाओं वाली परिस्थितियों में रहते थे, लेकिन दोनों ने मानसिक संतुष्टि का गहरा स्तर हासिल किया।’
उन्होंने कहा, ‘प्रकृति के अति-शोषण के नकारात्मक परिणाम होते हैं। हमें एक व्यापक, दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना होगा और मन की शांति को अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाना होगा।’
नई दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) की महानिदेशक विभा धवन ने पूछा कि हम कैसे एक प्राकृतिक, स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण में नैतिकता, करुणा और जीवन जीने का कम से कम भौतिकवादी तरीका अपना सकते हैं। परम पावन ने कहा कि मनुष्य के रूप में हम भाई-बहन हैं और हमें साथ रहना है। अगर ऐसा होता है और हम कड़े नियंत्रण में न रहकर स्वतंत्र रूप से रहते हैं और अन्य लोगों के विचारों के प्रति अधिक सहिष्णुता पैदा करते हैं तो यह बहुत प्रभावी रहेगा।
इस बैठक का संचालन कर रहीं अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और संघर्ष समाधान में व्यापक अनुभव रखने वाली अंतरराष्ट्रीय वकील क्रिस्टा मींडर्स्मा ने परम पावन को बताया कि आज सभी प्रतिभागी उनसे मिलकर बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा कि वे अब संवाद शुरू करेंगी और कार्रवाई का आह्वान करेंगी।
उन्होंने कहा, ‘हमारे रहने का एकमात्र स्थान- इस ग्रह का अस्तित्व हमारे हाथ में है। अगर हम वापस आना चाहते हैं तो अगले साल पृथ्वी दिवस पर इसे करें।
परम पावन ने उत्तर दिया कि वे अगले दस से पंद्रह वर्षों तक समय-समय पर मिलने के लिए तैयार हैं।