धर्मशाला। इंग्लैंड की अपनी हालिया यात्रा के दौरान सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने ०५ मई २०२३ को २३ मिनट की एक ऑडियो क्लिप में तिब्बत से संबंधित कई मुद्दों पर ‘बीबीसी हार्ड टॉक’ कार्यक्रम में सारा मोंटेग से बातचीत को जारी किया।
यह पूछे जाने पर कि वह तिब्बत के लिए क्या चाहते हैं, सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने उत्तर दिया कि वह ‘चीन-तिब्बत संघर्ष को अहिंसक शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत के माध्यम से हल करने के लिए स्थिति की वास्तविकता के आधार पर ‘न केवल नाम मात्र का बल्कि संपूर्ण रूप में’ वास्तविक स्वायत्तता चाहते हैं। मतलब जो पारस्परिक रूप से लाभप्रद और स्थायी होना चाहिए।‘
चीनी सरकार द्वारा बातचीत शुरू न करने के मुख्य कारण के तौर पर तिब्बती प्रशासन के अलगाववादी होने के दावों को खारिज करते हुए सिक्योंग ने स्पष्ट किया कि ‘चीन परम पावन के सामने पूर्व शर्त रखता है कि वह यह कहें कि तिब्बत प्राचीन काल से या अति प्राचीन काल से चीन का हिस्सा रहा है। जबकि सच यह है कि मामला ऐसा नहीं है। तिब्बत तब तक स्वतंत्र रहा जब तक कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर आक्रमण नहीं किया, इसलिए यह वास्तविकता है। फिर भी हम तिब्बत की स्वतंत्र स्थिति को एक तरफ रख देते हैं लेकिन भविष्य में तिब्बतियों के लाभ के लिए वास्तविक स्वायत्तता की मांग करते हैं।‘
सिक्योंग ने तिब्बती पहचान और संस्कृति के लिए खतरों के बारे में भी बात की, जिसके बीच उन्होंने उदाहरण के तौर पर औपनिवेशिक शैली के आवासीय स्कूलों में तिब्बती बच्चों के नामांकन की हालिया नीति को उठाया। उन्होंने कहा कि इन बोर्डिंग स्कूलों में आपको चीनी भाषा सिखाई जाती है, यहां तक कि शिक्षा का माध्यम भी मंदारिन है। फिर आपको चीनी इतिहास पढ़ाया जाता है, कम्युनिस्ट चीन का ऐतिहासिक संस्करण आपको सिखाया जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति निष्ठा कैसे बनाए रखें।‘
सीसीपी द्वारा गरीबी में कमी और विकास के दावों के बारे में सिक्योंग ने तिब्बतियों की उनके आर्थिक हितों से ऊपर की वास्तविक आकांक्षाओं को समझने में चीनी सरकार की विफलता पर जोर दिया।
तिब्बत के अंदर सांस्कृतिक क्षरण की चुनौतियों के खिलाफ तिब्बत की पहचान को संरक्षित करने के महत्व पर जोर देते हुए सिक्योंग ने पिछले ६३ वर्षों के निर्वासन में तिब्बती बौद्ध धर्म और पारंपरिक शिक्षा के सफल पुनरुद्धार को दोहराया।