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चीनी सरकार युवा पीढ़ी में तिब्बती पहचान की भावना को मिटा रही है।
चीन सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में जारी नोटिसों और बने नए कानूनों की शृंखला ने ऐसा वातावरण तैयार किया है, जहां तिब्बती बच्चों को तिब्बती भाषा सीखने से रोका जाता है। उदाहरण के लिए ११ मार्च को नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) में पारित चीनी सरकार की १४वीं पंचवर्षीय योजना के अनुच्छेद- XLIII (५३) में कहा गया है-
‘हम समावेशी पूर्वस्कूली शिक्षा, विशेष शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के लिए आश्वासन तंत्र में सुधार करेंगे और पूर्वस्कूली शिक्षा में सकल नामांकन दर को ९०% से अधिक तक ले जाएंगे। हम नस्लीय अल्पसंख्यक क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता और स्तर बढ़ाएंगे और राष्ट्रीय स्तर की एक भाषा और एक लिपि को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों को तेज करेंगे।’
उपरोक्त योजना इंगित करती है कि चीनी सरकार ‘राष्ट्रीय सामान्य भाषा’ के नाम पर मंदारिन और मानक लिपि के नाम पर चीनी लिपि को तेज और लोकप्रिय बनाना चाहती है। इसके माध्यम से पार्टी-सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह गहन मतारोपण और प्रचार के माध्यम से युवा पीढ़ियों के बीच तिब्बती पहचान की भावना को मिटाकर सामाजिक अस्थिरता के स्रोत को खत्म करने का इरादा रखती है।
तिब्बती आंदोलन में तिब्बती भाषा सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है जो युवाओं में तिब्बती पहचान की भावना को बनाए रखती है। इसलिए चीनी सरकार ने तिब्बती भाषा पर हमले को तेज कर दिया है।
रेडियो फ्री एशिया (आरएफए) के अनुसार, पिछले महीने किंघई प्रांत के सभी जिलों और शहरों को एक नोटिस जारी किया गया था। इस क्षेत्र को तिब्बती लोग अपनी ऐतिहासिक भूमि के सोंगोन क्षेत्र के रूप में जानते हैं। नोटिस में व्यक्तियों और संगठनों को सर्दियों की छुट्टियों के दौरान तिब्बती भाषा पढ़ाने के लिए किसी भी अनौपचारिक कक्षाएं आयोजित करने से मना किया गया है।
बात करने वाले आरएफए सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नोटिस मोटे तौर पर कहता है, ‘किसी भी व्यक्ति या संगठन को स्कूलों के बंद होने पर सर्दियों की छुट्टियों के दौरान तिब्बती भाषा सिखाने के लिए अनौपचारिक कक्षाएं या कार्यशाला आयोजित करने की अनुमति नहीं है।’
कुछ महीने पहले, सोंगोन में चीनी अधिकारियों ने कुछ निजी स्कूलों को बंद कर दिया था। गोलोग तिब्बती स्वायत्त प्रान्त में डारलाग काउंटी को ०८ जुलाई को बिना किसी स्पष्टीकरण के बंद कर दिया गया था। चीनी सरकार ने विभिन्न नोटिस और फरमानों में पूरे क्षेत्र में तिब्बती संस्कृति को बढ़ावा देने और तिब्बती भाषा में शिक्षा देने वाले स्कूलों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
इसी तरह अक्तूबर में सिचुआन प्रांत के कर्ज़े में ड्रैगो मठ द्वारा प्रशासित एक स्कूल गाडेन राबटेन नामग्यालिंग को ध्वस्त करने के लिए केवल तीन दिन का नोटिस दिया गया था। नोटिस में कहा गया था कि यदि स्कूल प्रशासन खुद स्कूल ध्वस्त नहीं करता है तो स्थानीय चीनी अधिकारी ऐसा करेंगे और निर्माण सामग्री को भी जब्त कर लेंगे।
संभवत: मोबाइल फोन से शूट करके रेडियो फ्री एशिया के यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए ५२ सेकेंड के वीडियो में दर्जनों दानवाकार क्रेन और ट्रक स्थानीय चीनी नेताओं की मौजूदगी में स्कूल को तोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। अधिकारियों ने मठ पर भूमि उपयोग मामले में राज्य के कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया है।
यों तो पहले से ही अधिकांश आधिकारिक दस्तावेज, नोटिस, पत्राचार और प्रमाणन पत्र चीनी भाषा में लिखे जा रहे हैं। लेकिन युवा अपनी मातृभाषा के बारे में चिंतित रहते हैं और यह आश्वासन देना चाहते हैं कि जो बातें अन्य किसी भी भाषा में कही जा सकती हैं उसे तिब्बती भाषा में भी पूरी सक्षमता के साथ व्यक्त किया जा सकता है।
चीन सरकार की शत्रुतापूर्ण शिक्षा और भाषा नीतियों के कारण २०१० में लगभग ५००० से ७००० तिब्बती छात्रों ने टोग्रेन, सोंगोन में शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया। यदि चीनी सरकार कठोर नीतियों को लागू करना जारी रखती है तो यह तिब्बती भाषा को और अधिक हाशिए पर ले जाएगी और तिब्बती लोगों में आक्रोश पैदा कर सकती है।
पिछले साल आंतरिक मंगोलिया में माता-पिता और छात्रों ने नई द्विभाषी शिक्षा नीति का बहिष्कार किया था, जिसमें सभी प्राथमिक और मध्य विद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में चीनी भाषा का उपयोग अनिवार्य बना दिया गया है। इस नीति से वर्तमान मंगोलियाई पाठ्यपुस्तकों की जगह ये चीनी पाठ्यपुस्तक ले लेंगे।
शी जिनपिंग के चीनी राष्ट्रपति बनने के बाद से तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और आंतरिक मंगोलिया में कार्रवाई तेज हो गई है। अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी संविधान से ही नस्लीय भाषा के अधिकारों को बाहर करने की राह पर है।
जापान में शिज़ुओका विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक नृतत्वशास्त्री और प्रोफेसर यांग हैयिंग के अनुसार, सीपीसी अभी स्थानीय नियमों में संशोधन कर रहा है और अगला कदम संविधान में संशोधन करने का होगा। चीनी सरकार का मकसद नस्लीय समुदायों द्वारा उपयोग की जा रही उनकी अपनी भाषा से छुटकारा पाना है। उन्हें आगे संदेह है कि जल्द ही, ‘सभी स्वायत्त क्षेत्रों को भी प्रांतों में बदल दिया जाएगा।’
पिछले महीने भाषा सीखने वाले ऐप टॉकमेट और ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग साइट बिलिबिली ने सरकारी नीति के परिणामस्वरूप तिब्बती और उग्यूर भाषाओं को अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया।
तिब्बत के अंदर चीनी अधिकारियों द्वारा थोपी गई भेदभावपूर्ण शिक्षा और भाषा नीतियां दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं, जिससे आगे चलकर तिब्बती संस्कृति का चीनीकरण हो रहा है। तिब्बत में हाल के घटनाक्रमों को देखते हुए इस लेखक को अनुमान है कि आने वाले दिनों में जल्द ही सोशल मीडिया पर तिब्बती भाषा के ऑनलाइन शिक्षण पर और कार्रवाई होगी।
*कर्मा तेनज़िन तिब्बत नीति संस्थान में रिसर्च फेलो हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार जरूरी नहीं कि तिब्बत नीति संस्थान के विचारों को प्रतिबिंबित करें। यह लेख मूल रूप से १७ नवंबर २०२१ को एशिया टाइम्स में प्रकाशित हुआ था।