tibet.net
नई दिल्ली। वरिष्ठ भारतीय पत्रकार श्री चंद्रभूषण द्वारा हिन्दी में लिखित तिब्बत पर पहली जानकारीपरक पुस्तक ‘तुम्हारा नाम क्या है- तिब्बत’ का औपचारिक विमोचन नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुआ। ०१ जून २०२२ को आयोजित विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. समदोंग रिनपोछे (पूर्व कालोन ट्रिपा, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन) के अलावा श्री रिनचेन खांडू खिरमे (राष्ट्रीय संयोजक, कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज– इंडिया), श्री राम चंद्र राही (अध्यक्ष, गांधी स्मृति संस्थान), श्री वेद प्रताप वैदिक (वरिष्ठ पत्रकार), प्रो हरीश खन्ना (पूर्व विधायक दिल्ली),श्री अशोक कुमार (सचिव, गांधी शांति प्रतिष्ठान) तथा अन्य गणमान्य लोग शामिल हुए। इस पुस्तक का अंग्रेजी में शाब्दिक अनुवाद ‘तिब्बत- व्हाट इज योर नेम?’ होगा।
श्री चंद्रभूषण ने अपनी पुस्तक का परिचय देते हुए चीनी कम्युनिस्ट सरकार की पांडुलिपियों और ब्लूप्रिंट को उद्धृत करते हुए रेखांकित किया कि चीन सरकार ने किस तरह से१९४९ से तिब्बत के पारिस्थितिकीय संसाधनों, सांस्कृतिक समावेश और तिब्बती पहचान को तबाह कर दिया है। उन्हों ने कहा कि नाते चीनी सरकार द्वारा २०१५ में आयोजित पत्रकारों के तिब्बत दौरे का हिस्सा होने के नाते उन्होंने ल्हासा, चेंगदू और तिब्बत के अन्य हिस्सों का दौरा किया। यह पुस्तक समकालीन चीनी इतिहास का एक रहस्योद्घाटन है। इस में तिब्बत की पहचान की कहानी, कम्युनिस्ट चीन की नई डिजाइन वाली नीतियों की विफलता, चीन के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का विकास और इस मोर्चे पर भारत की मजबूरी के कारण हुई अपूरणीय क्षति का वर्णन किया गया है।
श्री चंद्रभूषण ने तिब्बत के भीतर उन तिब्बतियों की वास्तविकताओं और भावनाओं को कलमबद्ध किया है, जिन्होंने यातनाओं, कारावास और अधीनता के सभी कठोर प्रयासों के बावजूद तिब्बत की स्वतंत्रता की लौ को अटूट और अजेय बना रखा है। साथ ही परम पावन १४वें दलाई लामा और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन में अपनी आस्था को बना रखा हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भंते रिनपोछे ने श्री चंद्रभूषण को तिब्बत पर उनकी पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दीं। प्रो रिनपोछे ने बताया कि जब उन्हें पहली बार पुस्तक के बारे में अवगत कराया गया, तो उन्होंने सोचा था कि पुस्तक लेखक के यात्रा अनुभवों के बारे में है। लेकिन बाद में जब उन्हें पुस्तक पढ़ने का मौका मिलातो उन्हें पता चला कि पुस्तक केवल मात्र पुस्तक नहीं है। इसमें तिब्बत की संस्कृति और इतिहास, प्राचीन और आधुनिक पहलुओं को भी कवर किया गया है। यह शांतिरक्षित, पद्मसंभव, दीपांकरशिरजन, राहुल संस्कृतायन, गेदुन चोफेल और तिब्बत से संबंधित कई अन्य व्यक्तित्वों और विषयों के बारे में बात करती है।
रिनपोछे ने स्वीकार किया कि वह पूरी किताब को पढ़ नहीं पाए हैं, लेकिन उन्होंने कुछ हिस्सों को पढ़ा और महसूस किया कि यह तिब्बत पर एक अच्छी किताब है। शाक्य पंडित के श्लोक का हवाला देते हुए कि ‘जैसे बिना काना सेब खाए भीकोई रंग से उसका स्वाद बता सकता है। उसी तरह जब किसी के पास विश्लेषणात्मक बुद्धि होती हैतो दूसरों के अंतरतम विचारों को जाना जा सकता है’-रिनपोछे ने कहा कि पुस्तक के कुछ हिस्से के अच्छे अवलोकन से ही कोई अच्छी किताब जान सकता है। पुस्तक को महत्वपूर्ण बताते हुएउन्होंने श्रोताओं से तिब्बत के बारे में और जानने और समझने के लिए इस पुस्तक को पढ़ने का अनुरोध किया।
पुस्तक के शीर्षक ‘तुम्हारा नाम क्या है-तिब्बत’के संबंध में रिनपोछे ने कहा किया कि तिब्बत के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें इस प्रश्न का उत्तर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई उनसे पूछे कि तुम्हारा नाम क्या हैतो वह जवाब देंगे, ‘मेरा नाम बोध है’। फिर इस शब्द के महत्व के बारे में विस्तार से बताते हुए रिनपोछे ने कहा कि यह भारत से उत्पन्न एक संस्कृत शब्द है और प्राचीन काल में भारत के लोगों ने तिब्बत को बोध के रूप में संदर्भित किया था।
तिब्बत के भविष्य पर श्री वेद प्रताप वैदिक के सुझावों का स्वागत करते हुए रिनपोछे ने कहा कि परम पावन दलाई लामा ने पिछले तीन दशकों से तिब्बत मुद्दे के समाधान के लिए मध्यम मार्ग नीति की परिकल्पना की हुई है। इस दृष्टिकोण के तहतसभी तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता के लिए चीन-तिब्बत वार्ता के ग्यारह दौर आयोजित किए गए थे। हालांकि, चीन की सतही मांगों के कारण २०११ में बातचीत बंद हो गई। चीन की पहली मांग यह स्वीकार करने की थी कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा है। उनकी दूसरी मांग यह थी कि वास्तविक स्वायत्तता में केवल तथाकथित तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र शामिल होंगे। इसमें तिब्बत के अन्य पारंपरिक प्रांतों, यानी डोटो और डोमी को शामिल नहीं किया गया था। यह तिब्बत के संदर्भ में पूरी तरह झूठ है और तिब्बत के लिए अस्वीकार्य है।
मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के महत्व पर जोर देते हुएरिनपोछे ने कहा कि अधिकांश लोग स्वायत्तता और स्वतंत्रता के बीच के अंतर को नहीं जानते हैं। उन्होंने इस अंतर पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वायत्तता स्वशासन की भाषा है और स्वतंत्रता राजनीति की भाषा है। रिनपोछे ने श्रोताओं से गांधीजी के ‘स्वराज बनाम स्वतंत्रता’ को पढ़ने के लिए कहा ताकि मध्यम मार्ग के दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
अपने संबोधन के समापन में रिनपोछे ने कहा कि तिब्बत का मुद्दा न केवल एक या दो देशों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह पूरी मानवता के लिए चिंता का विषय है। विश्व इतिहास के २०० वर्षों को युद्धों, विनाशों और प्रतिकूल घटनाओं का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि यह हम सभी के लिए समझने और मानवता और दुनिया की भलाई के लिए काम करने का समय है।
विमोचन समारोह को श्री रामचंद्र राही, श्री वेद प्रताप वैदिक, प्रो हरीश खन्ना, श्री अशोक कुमार और श्री आर के खिरमे ने भी संबोधित किया।
तिब्बतियों, भारतीय समर्थकों और तिब्बत के मित्रों सहित लगभग सौ लोगों ने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में भाग लिया। इनमें तिब्बत कार्यालय के प्रतिनिधि न्गोडुप डोंगचुंग और सचिव धोंडुप ग्यालपो, सम्यलिंग तिब्बती सेटलमेंट अधिकारी दोरजी छेरिंग, फाउंडेशन फॉर नॉन वॉयलेंट अल्टरनेटिव के ट्रस्टी श्री ओ.पी. टंडन,वरिष्ठ भारतीय पत्रकार श्री विजय क्रांति, मजनुं का टिला और बुद्ध विहार से तिब्बती संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे।
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय, दिल्ली द्वारा श्री चंद्रभूषण और गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के सहयोग से किया गया।