दैनिक जागरण, 4 मार्च 2015
मंडी : तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के 80वें जन्मदिवस पर भारत-तिब्बत मित्र संगठन की ओर से एतिहासिक सेरी मंच पर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। प्रदर्शनी में तिब्बत की निर्वासित सरकार के केंद्रीय प्रशासन एवं तिब्बत म्यूजियम की ओर से तिब्बत के इतिहास व वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित किया गया।
1949 के दौरान तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद दलाई लामा की ओर से भारत में शरण लेने की घटनाओं को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। भारत व तिब्बत के बीच ऐतिहासिक, परंपरागत व धार्मिक संबंधों पर भी प्रदर्शनी में प्रकाश डाला गया है। तिब्बत भारत को धर्मगुरु के रूप में मानता है। क्योंकि बौद्धधर्म नालंदा से होते हुए तिब्बत पहुंचा है। भारत-तिब्बत संबंध सदियों पुराने है। इस बात के महत्व को आज की पीढ़ी को समझाने के उद्देश्य से इस प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। धर्मशाला से आए तेजिंग वागचु ने बताया कि इस प्रदर्शनी को दो भागों में बांटा गया है।
प्रथम भाग में पावन दलाई लामा की ओर से 1949 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा किए जाने के बाद भारत में शरण लेने के बारे में चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। दूसरे चरण में तिब्बत की वर्तमान परिस्थिति को दर्शाया गया है, जिसमें 2009 के बाद अब तक करीब 136 लोगों ने तिब्बत की आजादी को लेकर आत्मदाह कर चुके है। मंडी का बौद्ध धर्म से सातवीं शताब्दी से ही संबंध रहा है। जब नालंदा से आए लामा पदमसंभव ने रिवालसर में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था। इस प्रदर्शनी का आयोजन भारत-तिब्बत मैत्री संगठन मंडी, सुंदरनगर, रिवालसर व पंडोह इकाइयों की ओर से किया गया।