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धर्मशाला। परम पावन दलाई लामा द्वारा छह वर्षीय कुंजिक गेधुन चोएक्यी न्यिमा को 11वें पंचेन लामा के रूप में पहचान किए जाने के अगले ही दिन 17 मई 1995 को चीन सरकार ने मध्य तिब्बत के नागचू क्षेत्र स्थित कुंजिक के घर से उनके परिवार समेत उनका अपहरण कर लिया। तिब्बती बौद्ध धर्म में परम पावन दलाई लामा के बाद दूसरे सर्वोच्च आध्यात्मिक अधिकारी पंचेन लामा ही होते हैं। आज उन्हें दुनिया के सबसे लंबे समय तक कैद में रहनेवाले आध्यात्मिक कैदी के रूप में जाना जाता है।
पंचेन लामा का दो दशकों से अधिक समय से किया गया अपहरण न केवल चीन के अहंकारी शासकों द्वारा तिब्बती बौद्धों की धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का प्रतीक है, बल्कि तिब्बती बौद्ध धर्म को कमजोर और नियंत्रित करने के लिए राजनीतिक रूप से संचालित साजिश भी है।
अब जबकि तिब्बती बौद्ध समुदाय एक बार फिर उनकी अनुपस्थिति में ही उनका 31वां जन्मदिन मना रहा है, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन, ताशी लूनपो मठ, निर्वासन में लापता पंचेन लामा की पीठ, तिब्बत समर्थक समूह, दुनिया के नेताओं और सांसदों, धार्मिक स्वतंत्रता पर अंतरराष्ट्रीय निकाय और अधिकार समूहों की ओर से उनकी तत्काल रिहाई के लिए नए सिरे से आह्वान किया गया।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष डॉ लोबसांग सांगेय, ताशी लूनपो मठ के प्रतिनिधि जीकाब रिनपोछे, मानवाधिकार निगरानी संस्था के चीन के निदेशक सोफी रिचर्डसन, कनाडा के सांसद आरिफ विरानी, संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) के आयुक्त डॉ. तेनजिन दोरजी और तिब्बत के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान के अध्यक्ष माटेयो मेकाकी लापता पंचेन लामा के मामले पर एक लाइव पैनल चर्चा में एक साथ आए और उनकी रिहाई के लिए वैश्विक अभियान को नये सिरे से शुरू करने का आह्वान किया।
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए चर्चा की बाइलाकुप्पे स्थित ताशी लूनपो मठ द्वारा ऑनलाइन मेजबानी की गई। पैनल को नेशनल एनडॉमेंट फॉर डेमोक्रेसी की एशिया अधिकारी पेमा तुलोत्संग ने संचालित किया।
इस अवसर पर सिक्यॉंग डॉ.लोबसांग सांगेय ने इस दिन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ष्हालांकि, यह उत्सव का दिन है, लेकिन दुर्भाग्य से यह दिन पिछले 25 साल से गेधुन चोएक्यी न्यिमा के गायब कर दिए जाने की याद भी दिलाता है। चीनी सरकार गेधुन चोएक्यी न्यिमा का अपहरण कर लिए जाने की बात बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें लगातार 25 वर्षों से उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। न केवल उन पर प्रतिबंध लगाए गए बल्कि उसके परिवार को भी अन्याय सहना पड़ रहा है।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन, तिब्बत समर्थक समूहों और दुनिया भर के तिब्बती संघों द्वारा संयुक्त राष्ट्र में की गई अनेक अपीलों के बावजूद, पंचेन लामा के ठिकाने के बारे में अभी भी खुलासा नहीं किया गया है। सिक्योंग ने कहा कि आज भी पंचेन लामा का मामला दुखद बना हुआ है। असामान्य रूप से, गेधुन चोएक्यी न्यिमा की स्थिति तिब्बत की दुखद वास्तविकता को दर्शाती है।
अपने संबोधन में सिक्योंग ने 10वें पंचेन लामा को श्रद्धांजलि भी दी और 10वें पंचेन लामा पर बात करते हुए उन्हें तिब्बती मुक्ति साधना का एक सच्चा साधक बताया।
इस विशेष संदर्भ में सिक्योंग ने कहा कि 10वें पंचेन लामा चीन सरकार की नीतियों के खिलाफ निडर, मुखर और प्रखर आलोचनात्मक थे जिन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ 70,000 शब्दों की याचिका में अपनी निडरता और चीन सरकार की कारगुजारियों को प्रतिबिंबित किया।
सिक्योंग ने कहा कि 10वें पंचेन लामा ने अपनी याचिका में बताया है कि किनने मठों को नष्ट किया गया, कितने भिक्षुओं और भिक्षुणियों को वेशरहित कर दिया गया। इसके साथ ही इस याचिका में तिब्बती संस्कृति, भाषा और पहचान के संहार के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस संदर्भ में उन्होंने कुछ का नाम लिया और कहा कि याचिका में तिब्बत के बारे में चीन के नजरिए को महत्वपूर्ण रूप से दर्शाया गया है। 10वें पंचेन लामा द्वारा प्रस्तुत याचिका स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि तिब्बती सभ्यता और पहचान के अस्तित्व को नष्ट करने के लिए चीनी सरकार की ओर से तिब्बती लोगों का उत्पीड़न एक सुनियोजित प्रयास और रणनीति है। इस रिपोर्ट के कारण ही उन्हें 1977 तक कैद में रखा गया था और जेल में अक्सर एकांत में रहना पड़ा। यह सब वाकया बावा फुंटसोक वांग्याल की आत्मकथा में अच्छी तरह से दर्ज है।
सिक्योंग ने कहा कि ष्तिब्बतियों के लिए पंचेन लामा एक परमादरणीय व्यक्ति हैं और उनके लिए इस तरह की पीड़ा से गुजरना वाकई दिल दहला देने वाला है। इसलिए हम उनका अपने पर बहुत बड़ा एहसान मानते हैं।ष्
इस बीच, उन्होंने तिब्बतियों की युवा पीढ़ी से आग्रह किया कि वे गेधुन चोएक्यी न्यिमा के समर्थन में एकजुट होते हुए 10वें पंचेन लामा के महान योगदान को हमेशा याद रखें।
अंत में सिक्योंग ने अमेरिकी विदेश विभाग और दुनिया भर की सरकारों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया जिन्होंने गेधुन चोएक्यी न्यिमा को रिहा करने के लिए चीन पर दबाव डालने वाले बयान जारी किए। उन्होंने अपील की कि 11वें पंचेन लामा की तत्काल रिहाई की मांग करने वाले अभियान को जारी रखना चाहिए ताकि वे जल्द ही अपने लोगों के साथ दुबारा मिल सकें और तिब्बती बौद्ध दुनिया में अपनी आध्यात्मिक भूमिका निभाने में सक्षम हों।
ताशी लूनपो मठ के मठाधीश जीकाब रिनपोछे ने पंचेन लामा के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की, क्योंकि चीनी सरकार रिन्पोचे के बारे में 25 वर्षों से किसी भी तरह की विश्वसनीय जानकारी से इनकार करती आ रही है।
पंचेन लामा के अनुयायियों, मानवाधिकार संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और मानवता के प्रति संवेदनशील सरकारों द्वारा चीन पर जोरदार और निरंतर दबाव के बाद भी चीन सरकार गूंगी-बहरी बनी हुई है। दुनिया भर के नेताओं, एनजीओ के प्रतिनिधि और ऐसे व्यक्ति जो चीनी नेताओं से जब भी मिले, पंचेन लामा की रिहाई की मांग की है। लेकिन चीनी सरकार हमेशा इस बात को तोता की तरह रटती रही है कि पंचेन लामा प्रसन्न हैं और आराम से रह रहे हैं। लेकिन आज 25 साल बाद भी वे पंचेन लामा की एक भी तस्वीर सामने लाने में असफल रहे हैं। इतने लंबे समय तक सच्चाई पर परदा डाले रखने से आज यह एक कठोर सवाल उत्पन्न हो गया है कि पंचेन लामा अब जीवित भी हैं या नहीं?
उन्होंने बिगड़ती स्थिति और चीन सरकार की अनिच्छा को देखते हुए पंचेन लामा की तत्काल रिहाई के लिए एक स्पष्ट आह्वान करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि सीटीए, ताशी लूनपो मठ और सहानुभूति रखनेवाली सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को सामूहिक रूप से अपनी मांगों को रखना चाहिए और जब तक समस्या हल नहीं हो जाती, हम आराम नहीं करेंगे! उन्होंने पंचेन लामा को तिब्बत में उनकी उचित पीठ तक पहुंचाने और उनके अनुयायियों की सुरक्षित तिब्बत वापसी के लिए प्रार्थना करने और दृढ़ संकल्प व्यक्त करने के साथ अपना संबोधन संपन्न किया।
मानवाधिकार निगरानी संस्था की चीन निदेशक सोफी रिचर्डसन ने गेधुन चोएक्यी न्यिमा के लापता होने के मामले में अपनी संस्था की नीतियों के अनुकूल बातें रखीं। सोफी ने जोर देकर कहा कि 11वें पंचेन लामा के पिछले चैथाई सदी से लापता होने के कारण यह मामला सदी के सबसे लंबे समय तक मानवाधिकारों के उल्लंघन का बन जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके चीनी सरकार ने न केवल धर्म को नियंत्रित किया है, बल्कि अपने राजनीतिक एजेंडे के अनुरूप इसे अपने अनुकूल बनाने का भी कुप्रयास किया है।
सोफी ने कहा कि “यह केवल पंचेन लामा और उनके परिवार को ही दंडित करना नहीं है बल्कि ग्यालत्सेन नोरबू (चीन द्वारा थोपे गए पंचेन लामा) और उनके परिवार के लिए सामूहिक सजा का एक उदाहरण है। उनके जीवन को मौलिक रूप से बदल दिया गया है और अगले दलाई लामा की नियुक्ति को नियंत्रित करने के लिए उनके अधिकारों का गंभीरता से उल्लंघन किया जा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि मानवाधिकार निगरानी संस्था तिब्बत के लिए उसी तरह से निरंतर आवाज उठाते रहने के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, जैसे कि पिछले 25 वर्षों से तिब्बती लोगों के गंभीर मानवाधिकारों का उल्लंघन, खानाबदोशों के बलपूर्वक स्थानांतरण, समुदाय के जीवन पर गंभीर प्रतिबंध और धार्मिक गतिविधि पर प्रतिबंधों को उठाती रही है।
इस बीच वह इस बात को भी महत्वपूर्ण मानती हैं कि सरकारों को उन सभी तिब्बतियों, विशेष रूप से पंचेन लामा को मुक्त करने के लिए चीनी अधिकारियों पर दबाव डालते रहना चाहिए, जिन्हें अन्यायपूर्ण हिरासत में रखा गया है।
कनाडाई संसद के सदस्य और कनाडाई संसदीय तिब्बत फ्रेंड्स के चेयरमैन आरिफ विरानी ने कहा, ष्परम पावन दलाई लामा द्वारा पंचेन लामा के रूप में मान्यता मिलने के तीन दिन बाद ही मई 1995 में उन्हें गायब करके दुनिया के सबसे कम उम्र का राजनीतिक कैदी बना दिया गया। जैसा कि सिक्योंग ने उल्लेख किया है कि इस 17 मई को उनकी हिरासत के 25 साल पूरे हो रहे हैं और इस दिन को याद किया जाएगा। 25 साल का समय बहुत लंबा होता है।”
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सांसद आरिफ विरानी ने सहमति व्यक्त की कि यह एक गंभीर स्थिति है। यह ठीक नेल्सन मंडेला जैसी स्थिति है जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार रिकॉर्ड में एक बदनुमा दाग रही है।
पूर्व संवैधानिक मानवाधिकार वकील और कनाडाई संसद के सदस्य ने कहा कि उन्होंने तिब्बती मुद्दे, तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता, परम पावन दलाई लामा, मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के बारे में लगातार बात की है और कनाडाई संसद में पंचेन लामा का मामला उठाया है। उन्होंने 2018 में कनाडाई सांसद की विदेशी मामलों की उपसमिति और अंतर्राष्ट्रीय विकास विदेश मामलों की समिति की सुनवाई में भी भाग लिया, जिसमें तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले चीनी प्रतिनिधिमंडल से पंचेन लामा के ठिकाने के बारे में सवाल पूछा गया था।
उन्होंने याद करते हुए कहा, ष्मुझे जो प्रतिक्रिया मिली थी वह साधारण तरीके की प्रतिक्रिया थी जिसे हमने 2015 से बार-बार सुनी है कि गेधुन चोएक्यी न्यिमा सामान्य जीवन जी रह हैं और वह और उसका परिवार अपने जीवन में किसी तरह का व्यवधान नहीं चाहता है।
1995 में पंचेन लामा के अपहरण के बाद से कनाडा के मानवाधिकार की पैरोकारी के अंतरराष्ट्रीय ट्रैक रिकॉर्ड को रेखांकित करते हुए सांसद विरानी ने कहा कि कनाडा सरकार ने 1995 में ही चीनी अधिकारियों के सामने पंचेन लामा का मामला उठाया और उनके निवास स्थान, शिक्षा के स्तर और परिवार के साथ रिहा होकर सार्वजनिक जीवन में आने की अपेक्षित तिथि पर चीनी सरकार से बार-बार जानकारी मांगी। 2014 में कनाडा ने मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायोग और संयुक्त राष्ट्र में धर्म की स्वतंत्रता पर विशेष रिपोर्टियर से अपील की कि वे पंचेन लामा से मिलने जाएं और साथ ही कनाडा ने यूएनएचआरसी में चीन के धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों, विशेषकर उग्युरों और तिब्बतियों के उत्पीड़न की निंदा करते हुए बयान दिया।
तिब्बती बौद्धों और उग्युर मुसलमानों- दोनों के हो रहे उत्पीड़न पर संक्षेप में बोलते हुए सांसद विरानी ने जोर देकर कहा कि दोनों के एकसमान धार्मिक उत्पीड़न के संदर्भ में कुछ किया जाना चाहिए। ष्मैं कहता हूं कि मुस्लिम कनाडाई के रूप में एक मुस्लिम सांसद के रूप में जिनकी संख्या तिब्बत में भी है और खासकर रमजान के महीने के दौरान जो अब आनेवाला है, हमें यह सब करना चाहिए।ष्
उन्होंने कनाडा में पार्कडेल-हाई पार्क और पार्लियामेंट्री फ्रेंड्स ऑफ तिब्बत ग्रुप के चेयरमैन की हैसियत से और एक सांसद होने के नाते अपनी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता को इस तरह व्यक्त करते हुए अपना संबोधन समाप्त किया कि ष्जहां भी और जब भी संभव हो, तिब्बत के मुद्दे को व्यक्तिगत रूप से उठाता रहूंगा।ष्
“केवल पंचेन लामा के ठिकाने के संबंध में नहीं, बल्कि तिब्बतियों के मूल धार्मिक और भाषाई स्वतंत्रता के साथ-साथ मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के संबंध में भी आवाज उठाता रहूंगा- थुजे चे और कद्रिन चे!
यूएससीआईआरएफ के आयुक्त डॉ. तेनजिन दोरजी ने इस लोक विरुद्ध स्थिति पर दुख व्यक्त किया कि तिब्बती और पंचेन लामा दोनों अपनी इच्छा के अनुरूप अपना जन्मदिन नहीं मना पा रहे हैं। फिर उन्होंने यूएससीआईआरएफ सदस्य के रूप में अपने प्रयासों के बारे में बात की। जहां उन्होंने अपने सहयोगियों वीसी नादिन मेन्जेन और कांग्रेसी जेम्स मैकगवर्न के साथ पंचेन लामा को एक आध्यात्मिक कैदी बताया। उन्होंने कहा कि वह 4 साल से पंचेन लामा के लिए पैरोकारी कर रहे हैं ताकि चीन को पंचेन लामा के स्वास्थ्य और ठिकाने की स्थिति बताने के लिए मजबूर किया जा सके। विशेष रूप से अब इस महामारी के दौर में, उन्होंने लामा की कुशलता के सबूत के तौर पर वीडियोग्राफी सबूत की मांग की।
पंचेन लामा के मामले को तिब्बतियों के बड़े धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघनों के रूप में प्रतिबिंबित करते हुए उन्होंने अनुच्छेद 22 का हवाला दिया। इसमें चीन द्वारा हाल ही में संशोधन किया गया है और चीनी सरकार को धार्मिक प्रमुखों की नियुक्ति के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया है।
उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस और राष्ट्रपति से आग्रह किया कि वे धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए विशेष रूप से पंचेन लामा का जिक्र करने के लिए जिम्मेदार चीनी अधिकारियों पर मैग्नेट्स्की कानून को लागू करें।
आयुक्त ने एंबेसेडर एट लार्ज फॉर इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम और यूएससीआईआरएफ के पूर्व अधिकारी सैम ब्राउनबैक को भी धन्यवाद दिया, जिन्होंने परम पावन दलाई लामा के साथ धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व, तिब्बती लोगों के लिए पवित्र पुनर्जन्म के मुद्दे और इसके महत्व पर बात करने के लिए पिछले साल भारत की यात्रा की। उन्होंने सभी तिब्बतियों की ओर से पंचेन लामा की तत्काल रिहाई की कामना भी की थी।
अंत में इंटरनेशनल कंपने फॉर तिब्बत के अध्यक्ष माटेओ मकाकियो ने पंचेन लामा की अवैध हिरासत के संबंध में प्रणालीगत मुद्दों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि चीन ने तिब्बत की सदियों पुरानी पोषित संस्थानों को नष्ट करके तिब्बती समाज को नियंत्रित करने का प्रयास किया है। इन संस्थानों में परम पावन दलाई लामा और पंचेन लामा की संस्था शामिल हैं। इन संस्थाओं से दुनिया भर में लाखों तिब्बती बौद्ध साधकों लाभान्वित होते रहे हैं।
उन्होंने चीन के भू-राजनीतिक अभियान का जिक्र किया जिसमें वह इतिहास को फिर से लिखने और अपने औपनिवेशिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए अफवाह फैलाने और गलत सूचना फैलाने के अभियानों में संलग्न है। हालांकि, चीन के पास आर्थिक ताकत है और अस्थायी रूप से देशों को अपनी आर्थिक शक्ति से दबा सकता है, लेकिन अंततः मानव आत्मा और उसके विवेक पर उसका नियंत्रण नहीं होनेवाला है।
उन्होंने कहा कि आज दुनिया चीन द्वारा कोरोना वायरस महामारी के मामले में दी जा रही जिस गलत जानकारी और पारदर्शिता के अभाव को झेल रही है, तिब्बती लोग चीनी कब्जे के बाद पिछले 60 वर्षों से इसका सामना कर रहे हैं। उन्होंने बुनियादी आजादी के लिए तिब्बत का समर्थन करने का आग्रह विश्व बिरादरी से किया ताकि इससे दुनिया भी लाभान्वित हो सके।
उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक चीन में राजनीतिक सुधारों की शुरुआत नहीं हो जाती, वह अपनी जनता और दुनिया में बड़े पैमाने पर ऐसी तबाही लाता रहेगा।
अमेरिकी कांग्रेस से तिब्बत नीति अधिनियम- 2019 के पारित होने के लिए जोर लगाने वाले आईसीटी के नेतृत्व को इंगित करते हुए माटेओ ने तिब्बत मुद्दे पर इसके प्रावधानों को लागू करने में इसके महत्वपूर्ण प्रभाव का उल्लेख किया। इस अधिनियम में चीन सरकार पर उसके कानूनों के उल्लंघनों के लिए प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसमें दलाई लामा के उत्तराधिकार और तिब्बतियों की धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा भी शामिल है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि यह संयुक्त राष्ट्र को तदनुसार कार्य करने के लिए मजबूर करेगा और पंचेन लामा के लापता होने के मामले पर उसका ध्यान आकृष्ट करेगा।