09 नवंबर, 2022
धर्मशाला। मनगढ़ंत राजनीतिक अपराध के आरोपों में छह साल जेल में बिताने वाले एक तिब्बती राजनीतिक कैदी का चीनी पुलिस हिरासत में गंभीर प्रताड़ना के कारण इस महीने की शुरुआत में निधन हो गया।
एक विश्वसनीय सूत्र ने कहा कि सिचुआन और कर्ज़े (चीनी: गंजी) तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो ने 02 अप्रैल 2012 को कोई कारण बताए बिना ही ड्रैकगो (लुहुओ) में एक बैठक से गेशे तेनज़िन पलसांग को गिरफ्तार कर लिया था। पलसांग को टेंगा के नाम से भी जाना जाता है। अगले 10 महीनों के दौरानउनके ठिकाने और सेहत के बारे में जानकारी अज्ञात रही।
सूत्र के अनुसार, झूठे राजनीतिक अपराधों के आरोपों में चेंगदू में चीनी अधिकारियों ने गेशे टेंगा सहित चार तिब्बती भिक्षुओं, दो तिब्बती भिक्षु शिक्षकों और ड्रेकगो मठ के एक रिनपोछे को छह-छह साल की जेल की सजा सुनाई। एक अन्य भिक्षु को पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई और 36 तिब्बती लोगों और भिक्षुओं को कथित राजनीतिक अपराधों के लिए एक से दो साल तक की जेल की सजा सुनाई गई।
सूत्र ने कहा कि टेंगा उस समय ड्रैकगो मठ के वरिष्ठ कोषाध्यक्ष थे और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं थी। लेकिन कारावास के दौरान ‘उन्हें चीनी पुलिस द्वारा बार-बार गंभीर रूप से प्रताड़ित किया गया और पीटा गया। इसके परिणामस्वरूप तीन साल जेल में बिताने के बाद वह बहुत बीमार हो गए। बाद के वर्षों में उन्हें समय पर उचित इलाज की सुविधा मुहैया नहीं कराई गई। साथ ही खान-पान और कपड़ों जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की कमी ने उनके खराब स्वास्थ्य को और खराब कर दिया, जिससे दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों की एक शृंखला बनती चली गई।
सूत्र ने आगे बताया कि अप्रैल 2018 में सजा पूरी करने के बाद वह जेल से छूट गए। लेकिन उनकी स्थिति इतनी गंभीर थी कि उन्हें अपना दैनंदिन कार्य करने या घर में घूमने में भी परिवार के सदस्यों की सहायता की आवश्यकता थी।‘इसके अलावा, उन्हें अपने मठ में जाने और प्रमुख व्यक्तियों से मिलने पर रोक लगा दी गई थी। अधिकारियों द्वारा हर दिन उनके घर में घुसपैठ की जाती थी और उन्हें यह आदेश दिया जाता था कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, जिससे उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना होती थीं।
उस समय उनके साथी भिक्षु और परिवार के सदस्य उनके स्वास्थ्य को लेकर गंभीर रूप से चिंतित थे। तदनुसार, ड्रैकगो मठ के डॉक्टरों ने जितना संभव हो सका,उनका इलाज किया। कुछ समय के लिए वह चोटों से कुछ हद तक उबर भी गए। लेकिन इस वर्ष की शुरुआत से बीमारी फिर से उभर आई। हालांकि,राजनीतिक दबाव के कारण उन्हें समुचित उपचार नहीं मिल सका। इस प्रकार, इस महीने की शुरुआत में जेल में लगी चोटों और घावों से उनकी मृत्यु हो गई।
शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर खूनी कार्रवाई
चीनी सरकार की भेदभावपूर्ण और दमनकारी नीतियों के खिलाफ ड्रैकगो काउंटी के भिक्षुओं और आम लोगों सहित तिब्बती निवासियों ने जनवरी 2012में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था। निवासियों ने इन नीतियों का प्रतिवाद किया और इसके बजाय स्वतंत्रता और धार्मिक अधिकारों की मांग की। चीनी अधिकारियों ने अचानक भीड़ पर अंधाधुंध गोलीबारी करके विरोध मार्च को तितर-बितर कर दिया, जिसमें कई तिब्बती प्रदर्शनकारी मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। उस कार्रवाई में मारे गए लोगों में योंटेन शामिल थे। इसमें कम से कम 40अन्य गंभीर रूप से घायल भी हो गए थे।
गेशे टेंगा ने घटना के बाद मृतकों और घायलों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई और उनका सहयोग भी किया था। इसके अलावा, उन्होंने पीड़ितों को मार्गदर्शन और उपचार सहायता प्रदान की। एकजुटता के संकेत के रूप में तावू (चीनी: दाओफू) सहित आस-पास के जिलों के तिब्बतियों ने ड्रैकगो में घायल हुए लोगों को सहायता दी और उनके प्रति संवेदना प्रकट की थी।
सच्चा तिब्बती देशभक्त
इस घटना के बाद ड्रैकगो मठ में बड़ी संख्या में तिब्बती एकत्र हुए,इस दौरान गेशे टेंगा ने उन्हें संबोधित किय। उनके भाषण का एक अंश इस प्रकार है:
‘तिब्बत पर 1959 में चीनी आक्रमण के बाद से तिब्बत के सभी हिस्सों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहा है। चीन की दमनकारी नीतियों और तिब्बती अधिकारों और स्वतंत्रता के उल्लंघन के परिणामस्वरूप ड्रैकगो में तिब्बतियों ने 2007 से लगातार विरोध प्रदर्शन किया है। क्योंकि चीनी दमनकारी नीतियों ने हमें अपनी भावनाओं और पीड़ा को और अधिक नियंत्रित करने में असमर्थ बना दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक अधिकारों के लिए तिब्बतियों के हताश और वास्तविक अनुरोधों को चीनी अधिकारियों द्वारा क्रूर प्रतिशोध से सहारे दबा दिया गया। ऐसा व्यवहार समझ से परे है। चीनी नेताओं को यह सब बताने या सूचित करने का कोई मतलब नहीं है। अपनी स्थिति और ताकत को बनाए रखने के लिए चीनी अधिकारियों ने ‘मातृभूमि की रक्षा’और ‘लोगों के कल्याण को सुरक्षित रखने’के नाम पर तिब्बती लोगों पर क्रूरता से प्रहार किया गया। हम ऐसे लोगों को नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते हैं और न ही उन्हें अपनी सहमति दे सकते हैं।‘
‘तिब्बती लोगों को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता को प्राप्त करने में भले ही खुद का बलिदान देना पड़े, लेकिन चीनी लोगों से कठोर चीनी नीतियों के बारे में बताने,उसका मुकाबला करने और चीनी नेताओं द्वारा चलाई जा रही दमनकारी सरकार को बेनकाब कर उसे गिराने का आग्रह करना महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि चीनी नागरिक स्वतंत्रता और समानता का उपभोग करने के महत्व से पूरी तरह अवगत हों। चीनी लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि अगर पूरा देश चीनी वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ खड़ा हो जाता है तो उन्हें बने रहने का कोई मौका नहीं मिलेगा।
निम्नलिखित चार महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिन पर हमें बोलना चाहिए: सबसे पहले, हम सभी को तिब्बतियों के अधिकारों और उनके कल्याण की रक्षा के लिए अपनी सामूहिक शक्ति जुटानी चाहिए। दूसरे कदम के रूप में हमें तिब्बत में धर्म और अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में बोलना जारी रखनी चाहिए ताकि परम पावन दलाई लामा स्वदेश लौट सकें। दलाई लामा की स्वदेश वापसी की मांग हजारों तिब्बती लोगों की इच्छाओं और अनुरोध के अनुरूप है। तीसरा, हमें करुणा और शांति के साथ-साथ तिब्बती धर्म और संस्कृति को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि सभी भव्य प्राणियों के लिए समग्र शांति और समृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके। अंतिम लेकिन सबसे बाद का नहीं, हमें तिब्बत के मुद्दे पर दुनिया भर में लोगों और बुद्धिजीवियों का समर्थन जुटाने और जीतने के लिए सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रयास करना जारी रखना चाहिए।
उपरोक्त बातें न केवल अंतरराष्ट्रीय कानूनों और फैसलों के अनुसार हैं, बल्कि वे चीनी कानूनों और संविधान की भावना के भी अनुरूप हैं। इस तरह से, अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए हमारा संघर्ष गैरकानूनी और अनुचित होने के बजाय साहस और गर्व से परिपूर्ण है। इसलिए, हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमेशा आगे बढ़ना चाहिए।
इसी भाषण के कारण चीनी अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था।
गेशे तेनज़िन पेलसांग का जन्म कर्ज़े प्रिफेक्चर के ड्रैकगो काउंटी अंतर्गत नोरपा गांव में 1965 में हुआ था। बचपन में उन्होंने स्थानीय मठ में तिब्बती बौद्ध धर्म का अध्ययन किया।
उन्होंने 1986 में दक्षिण भारत में डेपुंग लोसेलिंग मठ में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। गेशे की डिग्री (तिब्बती बौद्ध धर्म में डॉक्टरेट) के साथ स्नातक होने परवे तिब्बत लौट आए थे।