tibet.net, 6 जुलाई 2014
परमपावन महान 14वें दलाई के 79वें जन्म दिन के इस आनंदमय और खास अवसर पर कशाग तिब्बत के भीतर और बाहर के सभी तिब्बतियों की तरफ से परमपावन दलाई लामा को अपनी गहरी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करता है। दुनिया भर में परमपावन दलाई लामा के लाखों प्रशंसकों के साथ हम भी उनके अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करते हैं। इस महान अवसर पर कशाग परमपावन दलाई लामा के माता-पिता, स्वर्गीय छोक्योंग सेरिंग और स्वर्गीय डेक्यी सेरिंग, के प्रति गहन कृतज्ञता भी व्यक्त करना चाहता है, जिन्होंने ल्हामो थोंडुप जैसा कीमती बेटा हमें दिया। ल्हामो थोंडुप (मौजूदा दलाई लामा) का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के आमदो इलाके में स्थित ताक्तसेर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।
14वां कशाग वर्ष 2014 को ”महान 14वें दलाई लामा का वर्ष“ के रूप में मना रहा है ताकि तिब्बत आंदोलन और पूरी दुनिया में शांति, अंतर-पंथ सौहार्द् तथा मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के मामले में परमपावन की महान उपलब्धियों की असीमित सराहना को प्रकट किया जा सके। साल भर तक चलने वाले इस कार्यक्रम के तहत केंद्रीय तिब्बती प्रशासन 21 बड़े आयोजन करेगा, जिनमें करीब 300 छोटी गतिविधियां भी होंगी। आगे चलकर कशाग तिब्बती कैलेंडर के मुताबिक दलाई लामा का 80वां जन्म दिन मनाएगा-पांचवें तिब्बती महीने का पांचवा दिन जो वर्ष 2015 के 21 जून को पड़ेगा-जिसके तहत परमपावन दलाई लामा के दीर्घायु होने के लिए एक विस्तृत पूजा की जाएगी।
परमपावन दलाई लामा ने कृपा कर 79वें जन्म दिन के आधिकारिक समारोह को अपनी उपस्थिति से सुशोभित करना स्वीकार किया है, ऐसे समय में जब वह लद्दाख में चल रहे 33वें कालचक्र प्रवर्तन में शामिल हो रहे हैं। लद्दाख एक ऐसा इलाका है जिसके साथ तिब्बतियों के गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं।
63 वर्ष पहले 1951 में, तिब्बत पर चीनी सैन्य आक्रमण के बाद वाले महत्वपूर्ण दौर में, सिर्फ 16 वर्ष की युवा अवस्था में परमपावन दलाई लामा से आध्यात्मिक एवं राजनीतिक सत्ता ग्रहण करने का आग्रह किया गया। इसके बाद तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद 25 वर्ष की अवस्था में परमपावन को देश छोड़ने और निर्वासन में रहने को मजबूर होना पड़ा। अपने मार्ग में तमाम दुरूह लग रहे अड़चनों के बावजूद परमपावन दलाई लामा ने करीब 60 वर्षों तक अनंत करुणा, बुद्धिमत्ता और साहस के साथ तिब्बती जनता का नेतृत्व किया।
तथ्य यह है कि अपनी तमाम क्षेत्रीय और धार्मिक संबद्धता से परे होकर और चीनी कब्जे के बावजूद मुख्यतः परमपावन दलाई लामा के प्रबुद्ध नेतृत्व की वजह से ही आज तिब्बती जनता एक लौह पिंड की तरह संगठित है। आज तिब्बती जनता के एकता की ताकत पहले से काफी ज्यादा है और इसकी तुलना उन दिनों से की जा सकती है, जब तिब्बत पर तीन धर्म नरेशों का शासन था।
निर्वासन में परमपावन दलाई लामा ने एक ऐसे एकजुट तिब्बती समुदाय की परिकल्पना की जिसकी जड़ें परंपरा और आधुनिकता दोनों में गहराई तक हों। उन्होंने इसकी शुरुआत तिब्बती जनता के भरण-पोषण और साथ ही तिब्बती पहचान के संरक्षण के लिए मजबूत बुनियाद डालकर की, इसके लिए समूचे भारत, नेपाल और भूटान में तिब्बती बस्तियों की स्थापना की गई। साथ ही, यह सुनिश्चित करने के लिए कि तिब्बतियों की भविष्य की पीढ़ी आधुनिक शिक्षा हासिल कर सके और उसकी जड़ें परंपरागत मूल्यों में भी हों, बहुत शुरू से ही उन्होंने पहल कर अलग तिब्बती स्कूलों की स्थापना की। वास्तव में मौजूदा तिब्बती नेतृत्व इन स्कूलों से ही पढ़ा हुआ है जिन्होंने पिछले पचास वर्षों में निर्वासित तिब्बतियों को शिक्षित किया है।
लगातार कई संरचनात्मक और सांस्थानिक सुधारों की शुरुआत करके, परमपावन दलाई लामा के मार्गदर्शन और बुद्धिमत्ता की मदद से निर्वासित तिब्बती राजनीतिक व्यवस्था को एक वास्तविक लोकतंत्र में बदल दिया गया। वर्षों तक के इन लगातार लोकतांत्रिक सुधारों की वजह से वास्तव में पूरा निर्वासित तिब्बती समुदाय एक ऐसे समाज में बदल गया जिसके लोकतांत्रिक मूल्य और सांस्कृतिक जड़ें काफी गहरी हैं। इसका नतीजा यह है कि आज भले तिब्बती छह महाद्वीपों में बिखरे हुए हैं, लेकिन हम लगातार एक काफी जीवंत, आपस में जुड़ा हुआ और संगठित समुदाय बनाए हुए हैं।
तथ्य यह है कि अगर आज निर्वासित तिब्बती राजव्यवस्था और समुदाय को एक ऐसे माॅडल के रूप में देखा जाता है जिसका अनुसरण किया जा सकता है तो यह काफी हद तक परमपावन दलाई लामा के स्वप्नदर्शी नेतृत्व और हमारी वरिष्ठ पीढ़ी के लगातार मेहनत करने की धुन की वजह से है।
परमपावन दलाई लामा के नेतृत्व के तहत, अधिकृत तिब्बत में नष्ट किए जा चुके सभी बड़े मठों का निर्वासन में पुनर्निर्माण किया गया ताकि तिब्बती धर्म को संरक्षित रखा जाए और उसे बढ़ावा दिया जाए। तिब्बती बौद्ध धर्म की सभी चार परंपराओं तथा तिब्बत के बाॅन धर्म से संबंधित शिक्षण और धर्म पालन के इन सभी मठीय केंद्रों को निर्वासन में पुनर्जीवित किया गया है, साथ ही ये खूब फले-फूले। इन मठों के विद्वानों और गुरुओं ने तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रसार में मदद की जिसकी वजह से तिब्बती धर्म केंद्र दुनिया भर में तेजी से फैल गए।
वास्तव में परमपावन दलाई लामा ने हिमालयी क्षेत्र के लोगों मेें अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति एक नई तरह की जागरूकता पैदा की और इसका स्थानीय परंपराओं तथा रीति-रिवाजों के पुनरुद्धार में बहुत योगदान रहा। परमपावन दलाई लामा दुनिया भर के बौद्धों के लिए मार्गदर्शन और ढाढ़स के स्रोत बने हुए हैं जो बुद्ध की शिक्षाओं को तिब्बत के भंडार से उसके मूल देश भारत और 6 महाद्वीपों के 67 दूसरे देशों में संरक्षित एवं प्रसारित करने के मामले में सहायक साबित हुआ है।
अंतर-धार्मिक सौहार्द के एक अथक समर्थक के रूप में परमपावन दलाई लामा ने सभी पंथों के धार्मिक नेताओं से संवाद किए हैं। उन्होंने दुनिया के प्रमुख विज्ञानिकों और बौद्ध भिक्षुओं के बीच गहन संवाद की भी अगुवाई की है जिससे विज्ञान और धर्म दोनों काफी समृद्ध हुए हैं। इसके अलावा, धर्मनिरपेक्ष नीतियों को बढ़ावा देने के उनके वैश्विक प्रयासों की वजह से उन्हें दुनिया भर के सभी धार्मिक पृष्ठभूमि के नागरिकों का सम्मान और सराहना मिली है। उनका यह बहुल और स्थायी योगदान उन 150 से ज्यादा बड़े अवाॅर्ड, पुरस्कार और मानद डाॅक्टरेट से प्रकट होता है जो उन्हें मिले हैं और उनमें सबसे प्रमुख हैं-वर्ष 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार, वर्ष 1991 में संयुक्त राष्ट्र अर्थ प्राइज, वर्ष 2007 में यूएस कांग्रेसनल गोल्ड मेडल और वर्ष 2012 में टेम्पलटन अवाॅर्ड। सच में, परमपावन दलाई लामा को लगातार मिल रही अंतरराष्ट्रीय पहचान और प्रतिष्ठा, तिब्बत आंदोलन के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ने तथा उसे समर्थन मिलने के पीछे मुख्य वाहक बल रहा है।
परमपावन दलाई लामा के प्रभाव और प्रतिष्ठा को देखते हुए शायद यह दुखद रूप से अपरिहार्य हो गया है कि कुछ लोग उनकी छवि खराब करना चाहते हैं। खासकर, धोलग्याल अनुयायियों ने धार्मिक आज़ादी और मानवाधिकार के नाम पर परमपावन दलाई लामा के खिलाफ राजनीति प्रेरित कीचड़ उछालने का अभियान शुरू किया है। धोलग्याल के अनुयायियों ने सांप्रदायिकता और कट्टपंथ का समर्थन करके, जो कि फिलहाल तिब्बत की सभी बौद्ध धार्मिक परंपराओं के बीच कायम सौहार्द एवं एकता को जोखिम में डाल देगा, खुद को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महज एक राजनीतिक औजार में बदल दिया है। बौद्ध धर्म के व्यापक हित और खासकर तिब्बती जनता पर मौजूदा खतरे को देखते हुए तिब्बतियों को समझदारी से यह पहचानने में विफल नहीं होना चाहिए कि क्या सत्य है और क्या असत्य और क्या ठीक है, क्या नहीं। तिब्बत के व्यापक हित में हमें कशाग की इस मान्यता पर जोर देना चाहिए कि इस मसले को सिर्फ चीन सरकार से बातचीत से ही हल किया जा सकता है। हमें उम्मीद है कि नया चीनी नेतृत्व जल्दी ही इस तथ्य को स्वीकार कर लेगा कि मध्यम मार्ग नीति तिब्बती समस्या के लिए परस्पर फायदेमंद हल हो सकती है।
आज तक मध्यम मार्ग नीति को लगातार दुनिया भर की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल हुआ है, जिनमें चीनी नागरिकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। मध्यम मार्ग नीति के बारे में इस जागरूकता और समर्थन को बढ़ाते रहने के लिए सीटीए ने एक गहन अंतरराष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान के तहत मध्यम मार्ग नीति के बारे में कई भाषाओं में सूचनाओं और सामग्रियों की एक समृद्ध श्रृंखला वेबसाइटों और सोशल मीडिया के माध्यम से वितरित की जाएगी। यहां घर के करीब, सीटीए के कालोन और सचिव तिब्बती बस्तियों का दौरा करेंगे तथा मध्यम मार्ग नीति के बारे में जन जागरूता पैदा करेंगे, इस दृढ़ उम्मीद में कि सभी तिब्बती उनके इस महत्वपूर्ण प्रयास में सक्रियता से भागीदारी करेंगे।
पिछले 60 वर्षों में तिब्बत के भीतर भय और दमन के दमघोंटू माहौल के बावजूद तिब्बती जनता ने दृढ़ता से अपनी उम्मीदों और मान को जिंदा रखा है। परमपावन दलाई लामा से उनको काफी उम्मीदें हैं और वे अधीरता से उनके लौटने का इंतजार कर रहे हैं। परमपावन दलाई लामा के लौटने और तिब्बत के लिए स्वाधीनता की यह प्रबल इच्छा ही उन 130 लोगों का आम नारा रहा है जिन्होंने चीन सरकार के दमनकारी नीतियों के विरोध में आत्मदाह कर लिया है। ऐसे चरम कदमों के खिलाफ हमारे बार-बार के अनुरोध के बावजूद समूचे तिब्बत में देखी जाने वाली आत्मदाह की हृदय-विदारक श्रृंखला ने तिब्बती जनता की वास्तविक आकांक्षाओं को न सिर्फ चीन सरकार तक, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों तक बढ़ा-चढ़ा कर पहुंचाया है।
एकता, नवाचार और आत्मनिर्भरता को अपना मार्गदर्शक सिद्धांत मानते हुए हम परमपावन दलाई की दृष्टि और तिब्बत के भीतर एवं बाहर रहने वाले तिब्बतियों और उन सभी तिब्बतियों जो तिब्बत में स्वाधीनता को हासिल करने के लिए अलविदा कह गए, की आकांक्षाओं को पूरा करने का संकल्प लेते हैं।
इस अवसर पर हम भारत सरकार और हिमाचल प्रदेश की सरकार और यहां की जनता, साथ ही दुनिया भर के लोगों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं, जिन्होंने किसी भी तरह से तिब्बत आंदोलन को दिशा दी है या समर्थन किया है और तिब्बती धर्म एवं संस्कृति को संरक्षित करने एवं उसे बढ़ावा देने में योगदान दिया है।
अंत में, हम यह प्रार्थना करते हैं कि परमपावन दलाई लामा दीर्घायु हों और उनकी सभी आकांक्षाएं पूरी हों। तिब्बत आंदोलन जल्द ही सफल हो!
कशाग
6 जुलाई, 2014