परमपावन महान 14वें दलाई लामा के 80वें जन्मदिन के इस खुशी के अवसर पर कशाग और तिब्बत के भीतर एवं बाहर रहने वाले तिब्बतियों की तरफ से मैं परमपावन दलाई लामा के प्रति गहरी श्रद्धा प्रकट करता हूं। हम उनके दीर्घायु होने के लिए प्रार्थना करते हैं और उनके प्रति अपनी दृ़ढ़ निष्ठा एवं समर्पण को फिर से दोहराते हैं।
तिब्बत के भीतर एवं बाहर रहने वाले तिब्बतियों के साथ ही, करोड़ों अन्य लोग जो परमपावन दलाई लामा के शांति एवं करुणा के संदेश से प्रभावित हैं, इस विशेष अवसर को बेहद खुशी के साथ मना रहे हैं।
हम इस अवसर पर परमपावन दलाई लामा के प्रिय माता-पिता छोक्योंग सेरिंग और डेक्यी सेरिंग के प्रति भी गहरी कृतज्ञता प्रकट करना चाहते हैं, जिन्होंने हमें ल्हामो थोंडुप जैसा कीमती बेटा देने की कृपा की।
परमपावन दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई, 1935 को तिब्बत के आमदो क्षेत्र के ताकसेर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। सिर्फ पांच वर्ष की अवस्था में उनकी 14वें दलाई लामा के रूप में ताजपोशी हुई और इसके 11 वर्ष बाद, 16 वर्ष की अवस्था में परमपावन ने तिब्बत की आध्यात्मिक एवं लौकिक सत्ता अपने हाथ में ली। चीन जनवादी गणराज्य द्वारा तिब्बत पर अवैध कब्जे की दुखद घटना का सामना करने की वजह से परमपावन दलाई लामा, सामान्य बचपन की झलक भी न देख पाए। तिब्बती पहचान का अस्तित्व और एक समूची सभ्यता का भविष्य उनके युवा कंधों पर निर्भर हो गया। चीनियों और तिब्बतियों के बीच एक शांतिपूर्ण सहअस्तित्व सुनिश्चित करने की परमपावन की कोई भी कोशिश जब कारगर नहीं हुई, तो महज 24 वर्ष की अवस्था में परमपावन को निर्वासित होकर भारत आना पड़ा।
परमपावन दलाई लामा के रूप में तिब्बतियों को एक बहुमूल्य और प्रतिष्ठित अगुआ मिला है। उन्होंने खुद अकेले दम पर और अपनी जनता के समर्पण की ताकत के साथ तिब्बत को ऐतिहासिक गुमनामी में जाने से रोका है। निर्वासन में तमाम चुनौतियों और कठिनाइयों के बीच परमपावन की पहली प्राथमिकता अलग तिब्बती स्कूल खोलने की थी, ताकि अगली पीढि़यों के तिब्बतियों को आधुनिक एवं परंपरागत शिक्षा दी जा सके। इस शिक्षा के द्वारा बहुत से तिब्बतियों की परवरिश एक मजबूत तिब्बती पहचान के साथ हुई और निर्वासन में पैदा हुई नई पीढ़ी, अब तिब्बती समुदाय और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन में नेतृत्वकारी भूमिका ले रही है।
तिब्बती जनता के विशिष्ट धर्म एवं संस्कृति को संरक्षित करने तथा उसे बढ़ावा देने के लिए तिब्बती बौद्ध धर्म की चार धार्मिक परंपराओं और बाॅन परंपरा के मठ केंद्रों की निर्वासन में पुनस्थापना की गई और उन्हें पुनर्जीवित किया गया। इसके बाद से ही विभिन्न परंपराएं परस्पर सम्मान और सौहार्द के साथ फल-फूल रही हैं। इसी तरह, परमपावन ने अलग तिब्बती बस्तियों की भी स्थापना की ताकि सघन तिब्बती शरणार्थी समुदाय के भीतर ही लोगों को स्थायी जिविका मिल सके। इसी तरह, यह भी काफी महत्वपूर्ण बात है कि परमपावन दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बती प्रशासन में सुधार किया और उसका विकास किया, जो कि महान 5वें दलाई लामा द्वारा स्थापित सरकार का स्वाभाविक वैधानिक उत्तराधिकारी है, और उसे एक संपूर्ण लोकतांत्रिक ईकाई बनाई, जो सभी तिब्बतियों का प्रतिनिधित्व करने और उन्हें एकजुट करने में सक्षम है। हम परमपावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि उन्होंने इतना सर्वोच्च स्तर का त्याग किया और इन 56 वर्षों में असीमित बुद्धिमत्तापूर्ण और सक्षम नेतृत्व के साथ, उनके अथक प्रयासों की कोई सीमा नहीं रही।
समूचे हिमालयी क्षेत्र की जनता को परमपावन दलाई लामा ने अपने साझे सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत के प्रति ज्यादा गर्व करने का नया आत्मविश्वास प्रदान किया है। थोड़ा और व्यापक क्षेत्र में देखें तो दुनिया भर के करोड़ों बौद्धों के लिए वह करुणा के बोधिसत्व का मानवीय अवतार हैं, जो समूची मानवता के लिए उम्मीद और प्रकाश के स्तंभ की तरह हैं।
लेकिन इन सबसे भी बढ़कर, तिब्बतियों के लिए परमपावन, तिब्बत और तिब्बती जनता का प्राण और आत्मा हैं। धोलग्याल संप्रदाय द्वारा तमाम बेबुनियाद आरोप लगाने के बावजूद परमपावन दलाई लामा के नेतृत्व में जैसी तिब्बती एकता और सौहार्द देखी गई है, वैसी कभी नहीं थी। इसकी तुलना एक हजार साल से भी पहले तीन महान धर्म राजाओं के शासन वाले तिब्बत से ही की जा सकती है।
परमपावन दलाई लामा ने जीवन में तीन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अथक प्रयास किए हैंः मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना, धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा देना और तिब्बत के बौद्ध संस्कृति के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा उसका संरक्षण करना। इन लक्ष्यों के प्रति उनके निरंतर समर्पण की वजह से इस भूमंडल के करोड़ों लोग उनके प्रशंसक हैं और उनकी तारीफ करते हैं। परमपावन दलाई लामा ने समूचे 6 महाद्वीपों के 67 देशों की यात्रा की है और उन्हें 150 से ज्यादा अवाॅर्ड मिले हैं, जिनमें नोबेल शांति पुरस्कार, संयुक्त राष्ट्र अर्थ प्राइज, अमेरिकी कांग्रेसनल गोल्ड मेडल और जाॅन टेम्पलटन पुरस्कार शामिल हैं। पूरी दुनिया में सभी राष्ट्रीयता, नस्ल या धर्म के करोड़ों नागरिक परमपावन को शांति और न्याय के प्रकाश स्तंभ के रूप में देखते हैं। परमपावन दलाई लामा के इस वैश्विक कद ने तिब्बत मसले को एक मजबूत और स्थायी समर्थन दिलाया है।
तिब्बत के भीतर के तिब्बतियों में असीमित उम्मीद और साहस बरकरार है। वे देशभक्ति के जोश के साथ मजबूती से खड़े हैं और परमपावन दलाई लामा के प्रति बेहद सम्मान और श्रद्धा रखते हैं। जिन 140 तिब्बतियों ने आत्मदाह किए हैं, उन सबकी यह मांग रही है कि परमपावन दलाई लामा को वापस लाया जाए और तिब्बतियों को आज़ादी मिले। हमें उम्मीद है कि चीनी नेतृत्व जल्दी ही इस बात को समझेगा और स्वीकार करेगा कि मध्यम मार्ग नीति दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हल है और परमपावन दलाई लामा के दूतों के साथ वार्ता को जारी रखना, तिब्बत मसले को हल करने का एकमात्र रास्ता है।
परमपावन दलाई लामा की कृपा और तिब्बत के भीतर एवं बाहर के तिब्बतियों के समर्थन एवं एकजुटता के साथ 14वां कशाग काफी हद तक अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में सक्षम रहा है। कशाग उन सभी की सराहना करता है और उन्हें धन्यवाद देता है, जिन्होंने 2014 को ”महान 14वें दलाई लामा का वर्ष“ के रूप में मनाया। पिछले पूरे साल में भारत, यूरोप, अमेरिका और पूरी दुनिया में तिब्बतियों के प्रबंधन वाले तमाम संस्थानों और संगठनों ने परमपावन दलाई लामा के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए स्वैच्छिक रूप से तमाम गतिविधियों की पहल की। यह भी बेहद खुशी की बात रही कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने धोमाय एसोसिएशन और इंटरनेशनल गेलुए एसोसिएशन के साथ मिलकर धर्मशाला में परमपावन दलाई लामा का 80वां जन्मदिन तिब्बती कैलेंडर के अनुसार 21 जून को मनाया। तमाम तरह के प्रतिबंधों के बावजूद तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों ने परमपावन दलाई लामा के 80वें जन्मदिन पर प्रार्थनाओं, सस्वर पाठ, जीव हत्या रोकने और तमाम अन्य बेहतरीन कार्यों में बेहद उत्साह के साथ हिस्सा लिया, जिससे निस्संदेह तिब्बती जनता के अच्छे कर्मों का खाता बढ़ेगा और उनमें एकता बनाने में मदद मिलेगी।
कशाग सभी तिब्बतियों से आग्रह करता है कि वे ऐसे कार्यक्रमों में शामिल हों जो परमपावन दलाई लामा की आकांक्षा के अनुरूप हों और साथ ही, परंपरागत तिब्बती मूल्यों को संरक्षित रखने, बढ़ावा देने तथा उनके पालन के लिए निरंतर प्रयास करते रहें।
साथ ही, इस सबसे खास अवसर पर हम भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों और दुनिया भर के उन सभी शांतिप्रिय लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं, जिन्होंने इन कई वर्षों में अनगिनत तरीके से तिब्बत आंदोलन का समर्थन किया।
अंत में, हम परमपावन दलाई लामा के दीर्घायु होने के लिए निरंतर प्रार्थना करते हैं। उनकी सभी आकांक्षाएं पूरी हों! तिब्बत के अहिंसक आदोलन की विजय हो!
कशाग
6 जुलाई, 2015
नोट: यह बयान का हिंदी अनुवाद है। किसी भी तरह की असंगति होने पर तिब्बती संस्करण को ही अंतिम और प्रामाणिक माना जाए।