तिब्बत.नेट, 28 मार्च, 2019
धर्मशाला। दुनिया को बदलने की इच्छा से प्रेरित सिंगापुर से आए क्लब 1880 के 85 सदस्यों ने 27 मार्च को मैकलोडगंज में परमपावन दलाई लामा के आवास पर उनके दर्शन किए। इस समूह में सिंगापुरी, अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियाई, ब्रिटिश, भारतीय, कनाडाई, चीनी, फ्रेंच और स्वीडिस मूल के लोग शामिल थे।
समूह के सदस्य अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए थे और दुनिया को बदलने की प्रेरणा से एकजुट हैं। वे विभिन्न धर्मों के मानने वाले हैं और इस दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर स्थान बनाना चाहते हैं। परम पावन ने अपने कमरे में जाते हुए उन सभी को आशीर्वाद दिया, लेकिन सामने वाले छोटे लड़के पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया।
बैठक के दौरान परम पावन ने सुझाव दिया कि यदि 21वीं सदी के लोग शिक्षा के माध्यम से चीजों को बदलने का प्रयास शुरू करते हैं तो एक पीढ़ी के बाद के वंशजों को अधिक शांतिपूर्ण और अधिक करुणामयी दुनिया देखने को मिल सकती है।
परम पावन ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि किस तरह वे भावनाओं पर काबू पाने के गुर सीख रहे हैं और जीवन का कुछ समय उनके लिए कितना कठिन रहा है। फिर भी अपने अनुभवों के माध्यम से उन्होंने सीखा कि मन की शांति बनाए रखने में सक्षम होने से उन्हें मदद मिली। उन्होंने कहा कि समस्याओं से भरा होना संसार की प्रकृति है, लेकिन इस तरह की समस्याओं के बीच अगर कोई मन को शांत रखता है तो यह हमेशा बेहतर होता है। और मन की शांति बनाए रखने के लिए बोधिचित्त के जागृत मन की साधना जरूरी है, अन्य प्राणियों की चिंता करनी है और उनके प्रति करुणा के भाव को हमेशा याद रखना है। उन्होंने उद्घाटित किया कि वे कैसा आनंदमय जीवन चाहते हैं और दूसरे कैसे चाहते हैं। इसके लिए व्यक्ति को दैनिक जीवन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम का भाव पैदा करना होगा। चूंकि हम सभी के भीतर बुद्धत्व प्रकृति है और यदि हम दूसरों को स्वयं की तरह मानते हैं तो हम जिस भी व्यक्ति के पास आते हैं, उसके साथ नजदीकी महसूस करना आसान हो जाता है।
परम पावन ने सौहार्दता और करुणा का भाव पैदा करने से होने वाले लाभों और मन की शांति बनाए रखने के लिए हमारी नकारात्मक भावनाओं से पार पाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने भावनात्मक स्वच्छता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जैसे हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य की देखभाल करना सीखते हैं वैसे ही हमें अपने मन की देखभाल करना भी सीखना होगा। यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और आपका मन व्यथित है तो आप दुखी रहेंगे।
परम पावन ने दुनिया के सभी 7 अरब मनुष्यों के कल्याण की जरूरत पर बल दिया और बताया कि हम इस दुनिया में अपने अस्तित्व और अपनी खुशी के लिए किस तरह से एक दूसरे पर निर्भर हैं। जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना हम सभी को मिलकर करना होगा। इस तरह से सभी सामाजिक प्राणियों के लिए कल्याण का विचार बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
परम पावन ने अपनी प्रमुख प्रतिबद्धताओं की भी चर्चा की अर्थात करुणा को बढ़ावा देना जो कि आनंद का एक सच्चा स्रोत है। उन्होंने कहा कि कोई भी समस्या नहीं चाहता है। उन्होंने कहा कि हालांकि हम यहां शांति से रहते हैं, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो धर्म के नाम पर हिंसा सहित हर तरह की परेशानी से गुजर रहे हैं। परम पावन ने सलाह दी कि किसी पड़ोसी के साथ शांति से रहना कहीं बेहतर है।
परम पावन ने अपनी दूसरी प्रतिबद्धता धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने को बताया। उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक परंपराओं ने अपने अलग-अलग दार्शनिक दृष्टिकोण के बावजूद प्रेम का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि करुणा से प्रेरित अहिंसा की परंपरा को कायम रखनेवाला भारत धार्मिक सद्भाव का पालन करने के मामले में एक जीवंत उदाहरण है।
एक तिब्बती के रूप में परम पावन ने तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के लिए अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘मैं दलाई लामा नाम के साथ एक तिब्बती हूं और साठ लाख तिब्बती मुझ पर अपना भरोसा रखते हैं। हालांकि मैं 2001 से राजनीतिक जिम्मेदारी से मुक्त् हो गया हूं, लेकिन मैं तिब्बती संस्कृति को बनाए रखने के लिए चिंतित रहता हूं।‘
परम पावन ने वर्तमान समय में नालंदा परंपरा की प्रासंगिकता और तिब्बतियों के बीच इसे संरक्षित और बनाए रखने के बारे में उल्लेख किया। चूंकि शांतरक्षित ने संस्कृत के बौद्ध साहित्य का तिब्बती में अनुवाद को प्रोत्साहित किया, इसलिए भाषा इतनी समृद्ध हुई कि अब यह बौद्ध दर्शन को सही ढंग से व्यक्त करने के लिए सबसे अच्छा माध्यम है।
इसके अलावा, परम पावन ने संकीर्ण राष्ट्रीय चिंताओं से ऊपर उठकर जन सामान्य के हित को देखने की भावना के लिए यूरोपीय संघ के प्रति प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने अतीत को याद करते हुए कहा कि जब तिब्बत स्वतंत्र था और समय बदलने के साथ 1974 के बाद से कई बार संयुक्त राष्ट्र में तिब्बत की आजादी के मुद्दे को उठाने के बाद से हमने आगे और अधिक स्वतंत्रता का मुद्दा नहीं उठाने का फैसला किया। इसके बाद हम जो चाहते हैं वह यह कि हमें चीनी संविधान में उल्लिखित तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के अधिकार दिए जाएं। जिसमें हमारी संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने का अधिकार भी शामिल है।
समूह से सवाल आमंत्रित करने पर सामने वाले एक लड़के ने जानना चाहा कि पुनर्जन्म लेने का अनुभव कैसा होता है। परम पावन ने हंसते हुए उत्तर दिया, ‘कुछ खास नहीं, मैं सिर्फ एक सामान्य इंसान हूँ।‘
परम पावन ने बताया की, कि शून्यवाद एक महत्वपूर्ण बौद्ध अवधारणा है। उन्होंने कहा ‘जब नागार्जुन ने इसकी व्याख्या की तो उन्होंने इस बात को जोर देकर कहा कि शून्यवाद का अर्थ ‘कुछ भी नहीं होना’ नहीं है। इसका मतलब यह है कि वस्तु ठीक उसी रूप में मौजूद नहीं हैं, जैसा वह दिखाई देती हैं या उनका उद्देश्यपूर्ण रूप दिखाई देता है। वस्तु का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है और वे केवल निर्दिष्ट हैं। हरेक वस्तुत: दूसरे अन्य कारकों पर निर्भर होता है, जिसमें मन भी शामिल है। मन भौतिक वस्तु नहीं है, बल्कि यह चेतना की गतिशीलता की निरंतरता के रूप में मौजूद है।‘
परम पावन ने सुझाव दिया कि आधुनिक शिक्षा बेहतर होगी यदि आंतरिक मूल्यों पर अधिक ध्यान दिया जाए। बच्चों को सह अनुभूति की उनकी स्वाभाविक चेतना को पैदा करने और उसे विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
परम पावन ने कहा, ‘हम सामाजिक प्राणी हैं। हमारा भविष्य और खुशी हमारे आस-पास के लोगों पर निर्भर करती है। दोयम दर्जे के अन्य विभेदों पर अधिक जोर देने से केवल परेशानी बढ़ती है। हमें यह याद रखना होगा कि इंसान होने के नाते हम सभी समान हैं और अपने सामूहिक हित को पूरा करने के लिए मिलकर काम करना होगा।‘
बैठक में अपने वक्तव्य का समापन करते हुए परम पावन ने कहा, ‘हर दिन मैं अपना शरीर, भाषण और मन दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित करता हूं। इसलिए अगर मेरे विचारों को आपके साथ साझा करने से कुछ लाभ हो सकता है, तो मुझे खुशी होगी।‘