निर्वासन में आने के बाद मैने पिछले 30 साल से भी ज्यादा समय से शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली स्थापित करने के लिए गंभीरता से प्रयास किए। निर्वासित तिब्बती कहते है, हमारा लोकतंत्र परमपावन दलाई लामा से मिला उपहार की शुरुआत की गई , पहले इस पद पर दलाई लामा के द्वारा नामित व्यक्ति होता था जो कि सही व्यवस्था नहीं थी. कालोन ट्रिपा के सीधे चुनाव के बाद आध्यात्मिक एंव लौकिक सत्ता के रुप में दलाई लामा के गांदेन फोड्रांग को स्थापित करने की प्रथा खत्म हो गई । इसके बाद से मैं अपने को अर्द्ध सेवानिवृत्त स्थिति में ही बता रहा हूं।
तब से अब दस साल गुजर गए औऱ हमारे लिए ऐसा दिन आ गया है जब हमें एक सार्थक लोकतांत्रिक प्रणाली अपनानी चाहिए। राजाओं और धार्मिक हस्तियों द्वारा शासन पुराने जमाने की बात हो चुकी है। हमें आजाद दुनिया के चलन को अपनाना चाहिए जो लोकतंत्र ही हो सकता है। उदाहरण के लिए बारत को देंखें , अपनी विशाल जनसंख्या , विविध भाषाओं , धर्म एंव संस्कृति के बावजूद कुल मिलाकर यह अत्यंत स्थिर देश है। यह लोकतंत्र , कानून के शासन , अभिव्यक्ति एंव मीडिया की स्वतंत्रता की वजह से है। इसके विपरीत एकाधिकारवादी शासन व्यवस्था वाला चीन लगातार समस्याओं का सामना कर रहा है।
हाल में चीन में जारी एक दस्तावेज में बताया गया है कि चीन सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा की जगह आंतरिक स्थिरता बनाए रखने पर ज्यादा बजट का आंवटन कर रहा है। इसके पता चलता है कि उनके बाहर की जगह भीतर ही ज्यादा दुशमन है, यह एक शर्मनाक मसला है। जनवादी गणतंत्र ( चीन की ) सरकार लोगों के कल्याण के लिए काम करने की बात करती है। इसलिए लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति उसे लोकतांत्रिक चुनावों गणतंत्र (चीन की ) सरकार लोगों के कल्याण के लिए काम करने की बात करती है । इसलिए लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति उसे लोकतांत्रिक चुनावों के द्वारा जरुर करना चाहिए । यदि नेताओं का चयन चुनाव के द्वारा होगा तो यह निशिचत रुप से असल गर्व की बात होगी।
चनावों की जगह बंदूक की नली के बल पर सत्ता पर पकड बनाए रखना अनैतिक और पुरातन दोनों है। इसलिए एक वय्क्ति का शासन अच्छा नहीं होता।
इसलिए यह भी अच्छा नहीं होगा कि दलाई लामा सत्ता पर पूरी तरह से पकड बनाए रखें। पहले चार दलाई लामाओं के समय दलाई लामा को तिब्बत के आध्यात्मिक एंव लौकिक प्रमुख बनाने की व्यवस्था नहीं शुरु हुई थी । यह पांचवें दलाई लामा के समय शुरु हुआ जब परिस्थिति बदल गई थी और मंगोल सरदार गुशरी खान का प्रभाव बढ गया था। इसके बाद से इस प्रणाली के कई फायदें भी मिले ।
लेकिन अब हम 21 वीं सदी में पुहंच गए है, अभी बदलें या थोडे समय बाद , बदलाव का समय नजदीक आ गया है। लेकिन यदि बदलाव किसी और के दबाव में होगा तो यह पूर्व दलाई लामाओं का अपमान होगा। पांचवें दलाई लामा नवांग लोबसांग ग्यात्सो के समय से दलाई लामा तिब्बत के आध्यात्मिक और लौकिक दोनों तरह के प्रमुख बन गए। इस संस्था की परंपरा का मैं चौदहवां व्यक्ति हूं इसलिए सबसे ज्यादा उपयुक्त यही होगा कि मैं अपने व्यक्तिगत पहल पर खुशी और गर्व से दलाई लामा की दोहरी सत्ता का अंत करुं। मेरे अलावा कोई और यह निर्णय नहीं ले सकता और अंतिम निर्णय मुझे ही करना है । तिब्बती जनता द्वारा लोकतांत्रिक ढांग से चुने गए नेतृत्व को तिब्बत की पूरी राजनीतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए । यदि मैं चार्टर में दिए गए राजनीतिक अधिकार से जुडा रहा तो दोहरी प्रणाली के कुछ अवशोष बने रहेंगे । यह बदलना चाहिए और अब लगता है कि ऐशा करने का समय आ गया है।
तिब्बत के हितों के लिए जो महान उपलब्धियां मैंने हासिल की है, उसके बारे में मैं कुछ औऱ बताना चाहता हूं, क्योंकि तिब्बत के भीतर औऱ बाहर रहने वाली तिब्बती जनता मुझमें भरोसा एंव विशवास करती है और दुनिया भर में बहुत से ऐसे लोग है जो दलाई लामा को ऐसे व्यक्ति के रुप में देखते है जिसको वे मान्यता देते है, उस पर भरोसा करते है और उससे प्यार करते है। इसलिए अब इस बात का सही समय आ गया है कि पांचवें दलाई लामा के समय स्थापित शासन की दोहरी प्रणाली को खत्म की जाए औऱ इस तरह के मतैक्य और मान्यता को बनाए रखा जाए जो आध्यात्मिक क्षेत्र में पहले चार दलाई लामाओं के द्वारा हासिल किया गया था। खासकर , तीसरे दलाई लामा ने पीले टोप वाले सर्वभौम गुरु का सम्मानित दर्जा हासिल किया ।
इसलिए उनकी तरह मैं भी अपने जीवन के शोष हिस्से में आध्यात्मिक जिम्मेदारी उठाता रहूंगा। व्यक्तिगत रुप से मैं दुनिया में नैतिक मूल्यों और धार्मिक सौहार्द् को बढावा देने के लिए काम कर रहा हूं । इनका काफी फायदा भी हो रहा है । इसके अलावा मुझे दुनिया भर के बहुत से स्कूलों और विश्वविधालयों से कई आमंत्रण हासिल होते रहे है। वे मुझे बौद्ध धर्म पर उपदेश देने के लिए नहीं बुलाते बल्कि वे बौद्ध विज्ञान और यह पढाने के लिए बुलाते है कि आंतरिक खुशी को कैसे बढावा दिया जाए जिसके बारे में बहुत से लोग रुचि लेते है और प्यार से सुनते है ।
इसलिए यदि मौजूदा दलाई लामा ऐसी स्थिति में है तो यह एक महान गौरव की बात होगी यदि 400 साल पुरानी दलाई लामा की आध्यात्मिक एंव लौकिक , दोनो तरह क् सत्ता के प्रमुख की व्यवस्था का सम्मानजनक तरीके से अंत जाए । पांचवें दलाई लामा द्वारा शुरु की गई इस व्यवस्था को खत्म करने का निर्णय मेरे अलावा कोई और नहीं ले सकता और इस बारे में मेरा निर्णय अंतिम होगा।
हाल में मुझे तिब्बत के भीतर रहने वाले कई तिब्बतियों को फोन आया । उनका कहना था कि मेरे रिटायर होने की बात सुनकर वे बहुत चिंतित है और असहाय महसूस कर रहे है।
निशिचत रुप से चिंता करने की कोई बात नही है। रिटायर होने के बाद भी मैं तिब्बत के आध्यात्मिक मामलों को वैसे ही नेतृत्व करता रहूंगा जैसा कि पहले चार दलाई लामाओं ने किया था। दूसरे दलाई लामा गेदुन ग्यात्सो की तरह , जिन्होंने गांदेन फोड्रांग पदवी की स्थापना की और सर्वसम्मत से तिब्बत का आध्यात्मिक नेतृत्व किया , मैं भी अपने जीवन के शोष समय में उसी प्रकार का आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करता रहूंगा।
संभवत यदि मैं लोगों को अपमानजनक स्थिति में न लाउं औऱ भविष्य में अच्छे प्रयास करुं,तो मैं आध्यात्मिक नेतृत्व जारी रख सकूंगा।
यदि आध्यात्मिक नेतृत्व के लिए सर्वसम्मत जनादेश वाले इस प्रकार के दलाई लामा राजनितिक सत्ता त्याग देते है जो इससे हमारे निर्वासित प्रशासन को बनाए रखने में मदद मिलेगी और इसे ज्यादा प्रगतिशील औऱ मजबूत बनाया जा सकेगा। इसी प्रकार , तिब्बती आंदोलन को समर्थन देने वाला अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी तिब्बती राजव्यवस्था के पूर्ण लोकतंत्रीकरण के लिए दलाई लामा की ईमानदारी की तारीफ करेगा। इससे दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा बढेगी ।
दूसरी तरफ, इससे चीन सरकार यह झूठ पूरी तरह उजागर हो जाएगा कि दलाई लामा के व्यक्तिगत अधिकारों के अलावा तिब्बत में और कोई समस्या नहीं है। तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों को हतोत्साहित नहीं होना चाहिए क्योंकि मैंने यह बेहतरीन निर्णय तिब्बती जनता के दीर्घकालिक हितों को ही ध्यान में रखकर लिया है। इससे निर्वासन का तिब्बती प्रशासन और स्थिर और प्रगतिशील होगा। तिब्बत में जारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एकाधिकारवादी शासन के विपरीत निर्वासन में हमारा छोटा सा समुदाय एक पूर्ण आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाने में सक्षम हुआ है।
दीर्घकालिक रुप से मेरे इस निर्णय से हमारा निर्वासित प्रशासन और मजबूत तथा प्रभावी होगा। किसी भी तरह से यदि हम अपने निर्वासित समुदाय की चीन के एकाधिकारवादी समाज हो चुके है। यह हमारी यशस्वी उपलब्धि है। तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों को इस उपलब्धिपर गर्व होना चाहिए । आप सब को यह बात समझनी और स्वीकार करनी चाहिए कि मैं हतोत्साहित नहीं हूं और मैंने तिब्बत आंदोलन को नहीं छोडा है ।
मैं बर्फ की भूमि का निवासी हूं। बर्फ की भूमि से आने वाले सभी 60 लाख तिब्बती लोगों के उपर तिब्बत आंदोलन की साझी जिम्मेदारी है ।
जहां तक मेरी बात है, मै भी तिब्बत के आपदो क्षेत्र से आने वाला एक तिब्बती हूं , इसलिए अपनी मौत तक मैं तिब्बती आंदोलन की जिम्मेदारी उठाता रहूंगा । मैं अभी भी स्वस्थ हूं और आप सबके बीच खडा हूं, इसलिए आप सबको तिब्बती मामलों की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यदि कोई ऐसी समस्या आती है जिसमें मेरी मदद जरुरी हो जाती है , तो निश्चित रुप से मैं आपके सामने हूं। न तो मैंने यह आंदोलन छोडा है और न ही हताश हुआ हूं। अभी तक हम जिस लोकतांत्रिक व्यस्था से कह रहा हूं कि वह पूरी जिम्मेदारी अपने उपर ले । यहां उपस्थित आप सभी लोगों और तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बती लोगों को भी हताश नहीं होना चाहिए । चिंता करने की कोई बात ही नहीं है। कल ही मैं एख चीनी विद्वान से मिला हूं जिन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने तिब्बती चुनाव प्रक्रिया पर शोध किया है और वे यहां पांच साल पहले भी आए थे। उन्होंने मुझे बताया कि इस बार तिब्बती चुनाव में काफी सक्रियता से हिस्सा ले रहे है और वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का पूरी तरह से इस्तेमाल कर रहे है। उन्होंने तिब्बती लोकतांत्रिक व्यवस्था में हुई तरक्की की तारीफ की । इस प्रकार ऐसी घटनाएं हमारी बढती राजनीतिक जागरुकता औऱ उन लंबे कदमों को दर्शाती है जो हमने अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली में हासिल किया है।
इसलिए सत्ता को त्यागने का मेरा निर्णय भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को उन्नत बनाने का एक हिस्सा है। आप में से जो लोग तिब्बत से आए है लौटने पर यदि ऐसे लोग हों जिन पर आप भरोसा कर सकते है तो उन्हें यह बात बताइगा। इसको रेडियो पर भी प्रसारित किया जा सकता है । मैंने कई सालों तक गहन विचार के बाद औऱ अंतत तिब्बत के फायदे के लिए रिटायर होने का निर्णय लिया है। इसलिए आप सबके हताश होने की कोई वजह नही है।
दूसरी तरफ , गांदेन फोड्रांग की व्वस्था नहीं खत्म की जा रही। गांदेन फोड्रांग दलाई लामाओं की संस्था है औऱ जब तक मैं जिंदा रहूंगा मुझे तक छोटे संस्था की जरुरत रहेगी। इसलिए यह गांदेन फोड्रांग की संस्था बनी रहेगी। होने बस यह जा रहा है कि गांदेन फोड्रांग अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो रही है।
और जहां तक भविष्य के अवतार का संबंध है , निशिचत रुप से इसमें अभी कोई जल्दबाजी नही है। लेकिन 20 या 30 साल के बाद जब मैं अपने अंतिम समय में रहूंगाष तब यह मुख्य रुप से यह तिब्बती जनता , हिमालय क्षेत्र की जनता और उन अन्य बौद्धों पर निर्भर करेगा जो दलाई लामा से जुडे हुए है।
यदि वे चाहेंगे तो 15 वें , 16 वें , 17 वें दलाई लामा या उसके आगे भी कोई आ सकते है । इसलिए गांदेन फोड्रांग आगे भी बना रहेगा। राजनीतिक बदलाव जरुर होंगे, लेकिन इस तरह के कदम से स्थिरता को बढावा मिलेगा। गांदेन फोड्रांग आध्यात्मिक प्रमुख की अपनी उसी भूमिका और जिम्म्दारी की ओर वापस जा रही है जो दूसरे , तीसरे और चौथे दलाई लामा के समय में थी औऱ इसका भारी महत्व एंव वजह है।
दीर्घकालिक लिहाज से आप यदि इस पर विचार करें तो मैं जो कुछ भी बदलाव और निर्णय कर रहा हूं उसका तिब्बतियों के लिए बहुत फायदा होगा। निर्वासित तिब्बती संसद को लिखे पत्र में मैंने सुझाव दिया था कि गांदेन फो़ड्रांग शुंग को बदलना चाहिए । गांदेन फोड्रांग की संस्था बनी रहेगी, लेकिन यह कोई राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं उठाएगा क्योंकि अब हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था अपना चुके है। तिब्बती शब्द शुंग का यदि अनुवाद करें तो इसे जरुरी नही कि सरकार कहा जाए।
हम अपने निर्वासित प्रशासन को वर्णित करने के लिए सरकार शब्द का उस तरह से इस्तेमाल नहीं करते । एक बार दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान , जिसमें रिनपोछे भी मौजूद थे, एक पत्रकार ने सामदोंग रिनपोछे को निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री के रुप में संबोधित किया। मैंने तत्काल स्पष्टीकरण दिया कि हम तिब्बती प्रधानमंत्री या निर्वासित तिब्बती सरकार जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करते । हम अपने प्रशासन को केंद्रीय तिब्बती प्रशासन कहते है। निशिचत रुप से तिब्बती निर्वासित में है और उनकी देखभाल के लिए हमें एख संगठन की जरुरत है।
प्रशासन की यही सीधी जिम्मेदारी है। आमतौर पर , निर्वासित में हममें से कुछ लोगों के उपर तिब्बती होने के नाते तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों की आकांक्षाओं को प्रदर्शित करने औऱ तिब्बत के भीतर की असल हालात के बारे में दुनिया को बताने की जिम्मेदारी है। हमने अपने प्रशासन को कभी भी निर्वासित तिब्बती सरकार नहीं रहा है। प्रशासन को गांदेन फोड्रांग शुंग कहना एक और मसला है। इसलिए सही पदवी केंद्रीय तिब्बती प्रशासन है जिसके नेता लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाते है।
सच कहें तो , इससे तिब्बत के भीतर तिब्बती प्रशासनिक क्षेत्रों में रहने वाले नेताओं को सोचने की वजह मिलती है। निर्वासित में रहने वाले हम लोग , बाहरी देशों में शरणार्थी के रुप में रहने के बावजूद एक वास्तविक चुनाव प्रक्रिया का संचालन कर रहे है। यदि वे नेता सच में सक्षम और आश्वस्त है तो उन्हें तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों को भी लोकतांत्रिक तरीके से अपना नेता चुनने का अधिकार देना चाहिए। शोष चीन में कुछ भी हो, यदि हम सिर्फ तिब्बत में निर्वासन की व्यवस्था जैसा कुछ कर पाएं तो यह बहुत अच्छा होगा।
इसलिए मैंने जो कई बदलाव किए है उनके पीछे भारी वजहें है और वे हम सबकी तात्कालिक और अंतिम तौर पर भलाई के लिए है। वास्तव में इन बदलावों से हमारा प्रशासन ज्यादा स्थिर होगा और बेहतरीन विकास कर सकेगा। इसलिए हताश होने की कोई जरुरत नहीं है।
यही वे बातें थी जिसके बारे में मैं आपके सामने स्पष्ट करना चाहता था।
(परमपावन दलाई लामा द्वारा 19 मार्च , 2011 की सुबह धर्मशाला के मुख्य मंदिर सुगलागखांग में तिब्बती में दिए सार्वजनिक संबोधन में की गई टिप्पणियों का अनुवाद)