तिब्बत.नेट, 3 दिसंबर, 2018
संकिसा। परम पावन दलाई लामा ने सोमवार को इस विचार को खारिज किया कि विनाशकारी भावनाएं मानव व्यवहार का एक स्वाभाविक हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य सहज रूप से दयालु हैं और प्राचीन भारतीय ज्ञान की शिक्षाओं के माध्यम से कोई भी उनसे निपट सकता है और उसे समाप्त कर सकता है।
परम पावन ने उत्तर प्रदेश के संकिसा में भारतीय अनुयायियों के लिए अपने तीन दिवसीय प्रवचन कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘भारत में सदियों से अहिंसा और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का चलन रहा है। इसके अलावा, धर्म और संस्कृति की विविधता का सम्मान करते हुए भारत का धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत नास्तिकों के प्रति भी सम्मान व्यक्त करता है। यह शांति और समझ बनाने का मूल तत्व है।
परम पावन का प्रवचन यूथ बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित किया जा रहा है। वर्ष 1986 में संकिसा में सुरेश चंद्र बौद्ध द्वारा स्थापित यूथ बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया बौद्ध शिक्षाओं पर आधारित एक स्वयंसेवी, गैर सरकारी, गैर-संप्रदायवादी, गैर-राजनीतिक लोगों का विकासवादी आंदोलन है।
परम पावन के प्रवचन को सुनने के लिए 15,000 से अधिक श्रद्धालु, जिनमें मुख्य रूप से भारतीय भक्तों की अधिकता है, वाईबीएस मैदान में एकत्रित हुए। इसमें कालोन त्रिसूर प्रोफेसर समदोंग रिन्पोछे और तिब्बती और गैर-तिब्बती बौद्ध मठ परंपराओं के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।
परम पावन ने माना कि धर्मनिरपेक्षता की भारतीय समझ वास्तव में आज की दुनिया के लिए प्रासंगिक है। “यदि आप सभी धार्मिक समुदायों और नास्तिक लोगों का भी सम्मान करते हैं तो आप हिंसा या दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। हमें इन हज़ार साल पुराने धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत से यह महत्वपूर्ण सबक लेना बहुत जरूरी है।”
उन्होंने आगे कहा कि प्रत्येक मनुष्य धर्म का पालन पूरी तरह से नहीं करता है और यहां तक कि धर्म के भीतर भी दर्शनिक मतभेद और विचार हैं। ‘धर्म के इस गहन पक्ष में उलझे बिना हम धर्मनिरपेक्ष तरीके से प्यार और करुणा के विचारों का पालन कर सकते हैं।’
खुद को नालंदा परंपरा के साधक अनुयायी के रूप में चिन्हित करते हुए परम पावन ने कहा कि वे प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक भारत में पुनर्जीवित करने के प्रयासों की प्रासंगिकता देखते हैं।
“आज दुनिया भावनाओं के गंभीर संकट का सामना कर रही है। यहां तक कि भौतिक विकास, प्रगति और समृद्धि के बावजूद विकसित देशों में भी यह संकट है। हम देखते हैं कि कई लोगों में मानसिक और मनोवैज्ञानिक असमान्यता है। मानवीय भावनाओं और प्रशिक्षण की समझ के बिना हम आसानी से हथियार और बल का सहारा ले लेते हैं।”
परम पावन ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि भारत की युवा पीढ़ी प्राचीन भारतीय ज्ञान की शिक्षाओं को पुनर्जीवित करके परिवर्तन ला सकती है।
उन्होंने कहा, ‘20वीं सदी की हिंसा में 20 करोड़ से अधिक लोगों के मारे जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। अब हमें प्रार्थना के माध्यम से नहीं बल्कि अपने कृत्यों के माध्यम से शांति की सदी का निर्माण करना चाहिए।”
उदाहरण के लिए परम पावन ने प्राचीन भारतीय परंपराओं की साधनाओं का उद्धरण देते हुए कहा कि ये साधनाएं एकाग्रता और अंतर्दृष्टि, शमता और विपश्यना को साधती हैं, जो मन के क्रियाकलापों की गहन समझ को विकसित करती हैं।
‘किसी की धार्मिक मान्यताओं से इतर उसका प्राचीन ज्ञान आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह हमें हमारी विनाशकारी भावनाओं से निपटने और मन के परिवर्तन के बारे में बता सकता है।’
परम पावन ने भारत की सदियों पुरानी धार्मिक सद्भाव को आदिम युग से चलता चला आ रहा और सराहनीय बताया।
उन्होंने कहा, ‘भारत को बाकी दुनिया के लिए एक रोल मॉडल के रूप में काम करना चाहिए। एक अरब से अधिक आबादी के साथ और कई शताब्दियों तक भारत ने अपने धार्मिक सद्भाव का पालन और संरक्षण किया है। इसलिए यह दर्शाता है कि धार्मिक सद्भाव संभव है। इसलिए मैं अपने भारतीय दोस्तों से दुनिया के बाकी हिस्सों में इसे फैलाने का आग्रह करता हूं, जो संभव है।’
विभिन्न धार्मिक शाखाओं और इसके उद्देश्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि एक धर्म के भीतर विभिन्न दार्शनिक विचार हैं और यह मानव को प्रेम और करुणा के व्यवहार को और विकसित करने में सक्षम बनाना है।
“बौद्ध धर्म की नालंदा परंपरा में चार संप्रदाय हैं: सर्वास्तिवाद वैभाषिक, सर्वास्तिवाद सौत्रान्तिक, माध्यमिका, नागार्जुन का महायान दर्शन और असंग और वसुबंधु के महायान दर्शन- चित्तमात्रा।
‘इन चारों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ बहुत सारे तर्क और आलोचनाएं हैं, लेकिन ये आलोचनाएं विडंबना पैदा करने के लिए नहीं हैं बल्कि हमारे आध्यात्मिक और मानसिक विकास के लिए बुद्ध के शिक्षण में अधिक गहराई तक शोध करने के लिए हैं।’
परम पावन ने बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में आगे और परिचय दिया। वह कल से शांतिदेव के ‘बोधिसत्व के जीवन दर्शन के निर्देशों’ पर प्रवचन देंगे।