परमपावन को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की 23वीं वर्षगांठ पर सिक्योंग डा. लोबसांग सांगे का बयान
हम यहां परमपावन दलार्इ लामा को नोबेल पुरस्कार मिलने की 23वीं वर्षगांठ और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की 64वीं वर्षगांठ मनाने के लिए जुटे हैं। इस स्मरणीय दिवस पर कशाग परमपावन दलार्इ लामा के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए दुनिया भर के सभी तिब्बतियों, मित्रों और शुभचिंतकों को हार्दिक शुभकामनाएं देता है।
नार्वे की नोबेल समिति द्वारा 1989 में परमपावन दलार्इ लामा को नोबेल शांति पुरस्कार देने के समय प्रशंसात्मक आलेख में परम पावन द्वारा हिंसा के इस्तेमाल के विरोध और सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान पर आधारित शांतिपूर्ण समाधान निकालने की उनकी वकालत पर ध्यान आकर्षित किया गया था। नोबेल पुरस्कार हासिल करने के बाद पिछले 23 वर्ष में परमपावन दलार्इ लामा के कद में इतनी गहरार्इ आर्इ है कि उनका नाम ही करुणा और अहिंसा का पर्याय बन गया है। हम तिब्बती इस मामले में अपने को असाधारण रूप से भाग्यशाली समझते हैं कि परमपावन चौदहवें दलार्इ लामा हमारे सबसे पूज्यनीय नेता हैं।
इस अवसर पर हमें अपना ध्यान और चिंता तिब्बत को आगोश में ले रहे मौजूदा संकट पर केन्द्रित करना चाहिए। बहुत पीड़ा के साथ मैं यह बताना चाहूंगा कि तिब्बत में 2009 से अब तक 92 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं। तिब्बत में 2011 में कुल मिलाकर 12 आत्मदाह हुए थे, जबकि 2012 में ऐसे 79 आत्मदाह हो चुके हैं, जिनमें से 28 आत्मदाह के मामले तो अकेले नवंबर माह में हुए हैं। बेहद दु:ख की बात है कि इनमें से 77 तिब्बतियों की मौत हो चुकी है। भारी पहरेदारी वाले मठों में जिस चीज की शुरुआत हुर्इ थी, वह अब तिब्बत की राजधानी ल्हासा सहित तीनों तिब्बती क्षेत्रों (आमदो, खम और उ-त्सांग) के नोमैड, छात्रों और आम लोगों के बीच फैल चुका है। तिब्बत के हालात के विरोध में बड़ी संख्या में लोग अपनी जान देने को तैयार हैं।
इन दु:खद घटनाओं से चीन सरकार के केंद्रीय दावों और तर्कों को नए सिरे से चुनौती मिलती है, खासकर इसे कि तिब्बत में रहने वाले तिब्बती खुश और संतुष्ट हैं। कर्इ दशकों से भारी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों ने इस दावे को चुनौती दी है और शांतिपूर्ण एवं अनगिनत तरीकों से अपना असंतोष जाहिर किया है। 1960 के दशक के अशांत दौर के बाद सितंबर 1987 से मार्च 1989 तक तिब्बत एक बार फिर सुर्खियों में रहा जब ल्हासा और उसके आसपास के इलाकों में कर्इ बड़े और अहिंसक विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हुर्इ। उस समय चीनी सुरक्षा अधिकारियों ने इसके जवाब में सैनिक शासन लागू कर दिया और वहां से सभी विदेशी पत्रकारों और पर्यटकों को बाहर निकाल दिया।
इसके बाद 2006 में तिब्बतियों ने विलुप्त जानवरों के फर का इस्तेमाल करना छोड़ दिया और दुनिया ने देखा कि तिब्बती असाधारण रूप से भारी भीड़ के साथ जुटकर सार्वजनिक रूप से फर की होली जला रहे हैं। चीनी अधिकारियों ने तिब्बतियों की इस एकजुटता को नामंजूर किया और एक बार फिर उनका दमन किया गया। यहां तक कि परमपावन दलार्इ लामा को वर्ष 2007 में अमेरिकी कांग्रेस के गोल्ड मेडल मिलने पर कर्इ तिब्बती इलाकों में खुशी मनाना भी चीनी सुरक्षा कर्मियों ने बर्दाश्त नहीं किया। उसी साल एक तिब्बती नोमैड रुंग्ये अदाक ने सार्वजनिक रूप से परमपावन दलार्इ लामा को तिब्बत वापस लाने की मांग की जिसके बाद उन्हें आठ साल के कैद की सजा सुना दी गर्इ। अन्य तिब्बतियों को भी कठोर कारावास की सजा दी गर्इ।
वर्ष 2008 को सबसे बड़े और सबसे गहन अशांत वर्ष के रूप में देखा गया जब सभी कार्यक्षेत्रों के हजारों तिब्बतियों ने चीन की कठोर नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया, उनकी पिटार्इ की गर्इ, प्रताडि़त किया गया और हत्या तक की गर्इ। इन घटनाओं ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक पर काला धब्बा लगा दिया।
सबसे हाल के समय की बात करें तो अगिनमय आत्मदाहों के अलावा समूचे तिब्बत में विरोध प्रदर्शनों और एकजुटता के प्रदर्शन के अन्य कर्इ रूप देखे गए हैं। तिब्बती भाषा की रक्षा और समानता की मांग करते हुए पूर्वोत्तर तिब्बत में स्थित रेबकांग और चाबछा के हजारों तिब्बती छात्र सड़कों पर उतर आए। नदियों की धाराओं को मोड़ने की कोशिश और खनन परियोजनों (जिनकी वजह से बड़ी संख्या में तिब्बतियों को विस्थापित होना पड़ा है) के विरोध में तिब्बत के विभिन्न हिस्सों जगह-जगह टकराव हुए हैं।
आत्मदाह करने वालों के साथ बहादुरी से एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए ल्हासा, ड्राकगो, जोमदा, जाछुखा, त्रिडु, सरथार, सिलिंग, कार्जे और सिचुआन प्रांत के चेंगदू के शिक्षकों, सरकारी अधिकारियों, लेखकों, भिक्षुओं और कारोबारियों ने 26 नवंबर से तीन दिन के लिए भूख हड़ताल शुरू की। एक और महत्वपूर्ण घटना है ल्हकार आंदोलन की शुरुआत जिसके तहत हर बुधवार को हजारों तिब्बती औपचारिक और अनौपचारिक रूप से एकजुट होते हैं और तिब्बती बोलने, पहनने, खाने और हर तिब्बती चीज को बढ़ावा देने के लिए “मैं तिब्बती हूं” का वचन लेते हैं।
आत्मदाह की घटनाएं तिब्बत पर चीनी कब्जे और उसके द्वारा तिब्बतियों के दमन के खिलाफ लगातार चल रहे अहिंसक तिब्बती प्रतिरोध के सिलसिले का ही अगला चरण है। हालांकि, ये घटनाएं तिब्बती हताशा और असंतोष की एक नर्इ सीमा और अशांति-दमन-फिर और अशांति के एक खराब होते हालात के दुष्चक्र को पेश करती हैं। कशाग का मानना है कि इन आत्मदाह और मौजूदा हालात के लिए राजनीतिक एवं धार्मिक दमन, आर्थिक हाशियाकरण, सामाजिक भेदभाव, सांस्कृतिक विलोपन और तिब्बत के पर्यावरण का विनाश जिम्मेदार हैं।
ऐसे चरम कदम न उठाने के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के बार-बार अनुरोध के बावजूद तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह की घटनाएं जारी हैं। इन तिब्बतियों की सार्वभौमिक मांग यही है कि परमपावन दलार्इ लामा को तिब्बत वापस लाया जाए और तिब्बतियों को आज़ादी दी जाए। यह तिब्बती जनता की बेशकीमती उम्मीद है। हम सब जिन लोगों को आज़ादी के साथ जीने का सौभाग्य हासिल है, उनकी यह जिम्मेदारी है कि अपने बलबूते जो कुछ भी हो सके तिब्बतियों के इस सपने को सच करने में मदद की जाए। इसलिए हम अपना यह पुनीत कर्तव्य समझते हैं कि आत्मदाह करने वाले और विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों की कराह दुनिया भर में सुनी जाए।
जाहिर तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने इन आत्मदाह की घटनाओं के लिए निर्वासित तिब्बती नेतृत्व पर आरोप लगाए हैं। लेकिन परमपावन दलार्इ लामा और तिब्बती प्रशासन पर आरोप लगाकर चीन सरकार खुले तौर पर यह बात स्वीकार कर रही है कि पचास साल के कब्जे के बावजूद वह तिब्बतियों की अपने प्रति निष्ठा हासिल करने में विफल रही है, इससे यह भी साबित होता है कि चीन सरकार वैधानिक नीतिगत विकल्पों को इस्तेमाल करने में विफल रही है और इसकी जगह वह बस लगातार आरोप-प्रत्यारोप का सहारा ले रही है।
10 मार्च, 2012 के अपने बयान में मैंने सभी तिब्बतियों और मित्रों से आहवान किया था कि वे 2012 को तिब्बत जनमत निर्माण (लाबी) वर्ष के रूप में मनाएं। तिब्बतियों और तिब्बत समर्थक संगठनों के समर्पित कार्यों के मेल से यह आहवान सफल रहा। हमने कर्इ देशों द्वारा तिब्बतियों के समर्थन में महत्वपूर्ण आधिकारिक बयान जारी होते देखा, यूरोपीय संघ (र्इयू), फ्रांस, इटली और अमेरिका के संसद और कांग्रेस में प्रस्ताव पारित किए गए और आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों के सांसदों द्वारा बयान जारी किए गए।
तिब्बत के लगातार बिगड़ते हालात पर ध्यान देने के लिए सीटीए संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न सरकारों की भारी सराहना करता है। मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त नवी पिल्लर्इ ने हाल में चीनी नेताओं से एक अभूतपूर्व आहवान करते हुए कहा कि वे तिब्बती जनता की शिकायतों का तत्काल समाधान करें। उन्होने 2 नवंबर को कहा, “भारी सुरक्षा बंदोबस्त और मानवाधिकारों के दमन से कभी भी तिब्बत में सामाजिक स्थिरता हासिल नहीं की जा सकती।” सुश्री पिल्लर्इ ने चीन सरकार से निवेदन किया कि वह, “विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों द्वारा की गर्इ सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करे और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा दी जारी सलाह की पेशकश का लाभ उठाए।”
गत 21 नवंबर को जर्मनी के मानवाधिकार आयुक्त ने चीन सरकार से यह आग्रह किया कि वह अपनी नीतियों में बदलाव लाए और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को तिब्बत का दौरा करने देने का अनुरोध किया। गत 27 नवंबर को फ्रांस की सीनेट ने एक प्रस्ताव पारित कर यूरोपीय संघ से यह आहवान किया कि वह अपने हाल में नियुक्त मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि के अधिदेश के भीतर तिब्बत को प्राथमिकता दे।
विभिन्न सरकारों और संस्थाओं की उक्त कार्रवाइयां एक सकारात्मक घटनाक्रम है। हम चीन सरकार से मानवाधिकारों पर वार्ता में लगी सभी विदेशी सरकारों से यह अनुरोध करते हैं कि वे यह स्वीकार करें कि तिब्बत के भीतर की स्थिति बेहद खराब है। हम उनसे और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह आग्रह करते हैं कि वे तिब्बत के संकट को खत्म करने के लिए हस्तक्षेप करें। चीन यदि तिब्बतियों का दमन बंद कर दे तो आत्मदाह की घटनाएं कम हो जाएंगी। तिब्बत मसले को हल करने के लिए मध्यम मार्ग नीति पर चलने और बीजिंग एवं धर्मशाला के बीच वार्ता फिर शुरू करने को लेकर सीटीए दृढ़ बना हुआ है। तिब्बत के मौजूदा संकट की जिम्मेदारी और उसका हल निकालना पूरी तरह से चीन सरकार के ऊपर है।
हम अपने कुछ चीनी दोस्तों और चीन के बाहर सक्रिय कर्इ चीनी एनजीओ द्वारा मिल रहे समर्थन की सराहना करते हैं, लेकिन तिब्बती जनता के दमन को लेकर ज्यादातर चीनी जनता, खासकर चीनी बुद्धिजीवियों और चिंतकों की चुप्पी और उदासीनता को लेकर काफी विक्षुब्ध और दु:खी हैं। तिब्बती संघर्ष न तो चीन विरोधी है और न ही चीनी जनता की विरोधी। तिब्बती लोग चीनी संविधान के भीतर ही आज़ादी और वास्तविक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। मैं अपने चीनी भाइयों और बहनों से निवेदन करता हूं कि वे तिब्बती जनता की आकांक्षा को समर्थन देने में हमारा साथ दें।
आइए 2012 के सफल जनमत निर्माण प्रयासों की बुनियाद पर वर्ष 2013 में तिब्बत के साथ एकजुटता अभियान की शुरुआत करें। मैं सभी तिब्बती संघों, तिब्बत समर्थक संगठनों, अंतरराष्ट्रीय एनजीओ, सभी पंथों के लोगों और सभी न्याय प्रिय लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि वे तिब्बत और तिब्बत की जनता के लिए सरकारों और संसदों में जनमत निर्माण का काम जारी रखें। खासकर राजधानियों और दुनिया के बड़े शहरों में रैलियों और जनजागरण का आयोजन किया जाए। कृपया चीन सरकार से यह निवेदन करें कि वह तिब्बत में अंतरराष्ट्रीय मीडिया को जाने की इजाजत दे। टाइम पत्रिका ने तिब्बतियों के आत्मदाह को वर्ष 2011 की सबसे कम कवर की गर्इ खबर के रूप सूचीबद्ध किया है। आइए मीडिया तक अपनी पहुंच बनाकर और उन्हें तिब्बत में चल रहे घटनाक्रम के बारे में प्रसारण को प्रोत्साहित कर इस स्थिति में बदलाव लाएं।
आइए हर 17 मर्इ को तिब्बत के लिए एकजुटता दिवस के रूप में मनाएं। इसी दिन 1995 में छह साल के बालक गेंदुन छोक्यी निमा, जिनकी पहचान परमपावन दलार्इ लामा ने 11वे पंचेन लामा के रूप में की थी, को चीनी अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया और उसके बाद से उनका कुछ पता नहीं है।
इसके अलावा कशाग और निर्वासित तिब्बती संसद संयुक्त रूप से 30 जनवरी से 2 फरवरी, 2013 तक नर्इ दिल्ली में चार दिन तक रैलियों, प्रतिवेदन देने और अन्य एकजुटता गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा। इसमें विभिन्न कालोन, तिब्बती सांसद और विभिन्न तिब्बती बस्तियों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे।
अंत में भारत की जनता द्वारा कर्इ साल से तिब्बती शरणार्थियों के प्रति दिखार्इ जा रही उदारता, आतिथ्य और सहायता के लिए सीटीए असीम कृतज्ञता व्यक्त करता है। हम सभी तिब्बतियों की तरफ से दुनिया भर के अपने नए-पुराने मित्रों के प्रति भी गहन आभार व्यक्त करते हैं। आपके स्पष्ट और जबर्दस्त समर्थन की अब पहले से ज्यादा जरूरत है।
तिब्बत के अपने भाइयों एवं बहनों से हम यही कहना चाहेंगे कि हम आपके हर कदम पर आपके साथ हैं। परमपावन दलार्इ लामा को तिब्बत में वापस देखने और तिब्बतियों को आज़ादी की बहाली के अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए एकता, नवाचार और आत्मनिर्भरता के तीन सिद्धांत हमारा मार्गदर्शन करेंगे।
अंत में, परमपावन दलार्इ लामा का स्वाथ्य लगातार अच्छा बना रहे, इस कामना में कशाग और मैं तिब्बती जनता के साथ हैं। उनकी सभी इच्छाएं पूरी हों।
कशग
१० दिसम्बर 2012