परमपावन दलार्इ लामा के 77वें जन्म दिन के इस खास और खुशी के अवसर पर और तिब्बती के भीतर एवं बाहर रहने वाले तिब्बतियों तथा केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की तरफ से, मैं परमपावन के लिए गहरी श्रद्धा, प्रार्थना और हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करता हूं।
आज का दिन न केवल बर्फ की भूमि के लोगों, बलिक पूरी दुनिया के लिए सबसे शुभ दिन है। यधपि तिब्बती अपने इतिहास के सबसे अतुलनीय त्रासदी का सामना कर रहे हैं, फिर भी हम परमपावन के दूरदर्शी नेतृत्व के तहत एक सफल और अनुकरणीय शरणार्थी समुदाय को खड़ा करने और बनाए रखने में सक्षम हैं। तिब्बतियों को अहिंसा और लोकतंत्र के सिद्धांतों और कर्इ अन्य उन व्यापक योगदान को संजोए रहना चाहिए जो परमपावन दलार्इ लामा ने किए हैं, एक ज्यादा शांतिपूर्ण दुनिया बनाने सहित।
परमपावन की पहचान तिब्बत के इतिहास के सबसे कठिन दौर में की गर्इ थी। उन्हें सिर्फ 16 साल की उम्र में आध्यातिमक एवं लौकिक शकितयां अपने हाथ में लेनी पड़ी थीं। इसी प्रकार सिर्फ 24 साल की अवस्था में उन्हें अपना देश छोड़कर निर्वासन में आना पड़ा था। तिब्बत के लोकतंत्रीकरण के लिए लंबे समय से उनके पास जो कर्इ तरह की दृषिट थी, उन्होंने उसे निर्वासन में लागू किया। उनके द्वारा किए जाने वाले कर्इ प्रमुख सुधार इस प्रकार हैं: 1960 में तिब्बती जन प्रतिनिधि आयोग की स्थापना, भविष्य के तिब्बत के लिए 1963 में एक प्रारूप संविधान का प्रवर्तन, 1991 में निर्वासित तिब्बतियों के लिए एक चार्टर (शासन पत्र) को स्वीकार करना, साल 2001 में पहली बार कालोन टि्रपा का सीधे जनता द्वारा चुनाव, और अंतत: 2011 में अपने सभी राजनीतिक अधिकार प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए नेतृत्व को सौंप देना। ऐसे सभी मौकों पर परमपावन को यह लगा कि यह राजनीतिक अधिकार हस्तांतरण के लिए उचित समय है क्योंकि लोकतांत्रिक आदर्शों और उनके पालन के प्रति प्रतिबद्धता के मामले में तिब्बती ज्यादा परिपक्व हो चुके हैं। तमाम चुनौतियों से अविचलित रहते हुए परमपावन के 60 साल के नेतृत्व ने तिब्बत की जनता को अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम बनाया है।
अपने राजनीतिक अधिकार प्रत्यक्ष तौर पर निर्वाचित तिब्बती नेता को सौंपने का निर्णय करते समय परमपावन ने कहा था: यधपि आपने मेरे इस निर्णय का स्वागत नहीं किया है, लेकिन मैं आपको यह फिर से भरोसा देना चाहता हूं कि जब तक तिब्बती जनता मुझमें भरोसा रखेगी मैं अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन जारी रखूंगा। मेरा मानना है कि अंतत: तिब्बती जनता मेरे निर्णय की तारीफ करेगी। यह ध्यान रखना चाहिए कि परमपावन ने यह निर्णय ऐसे समय में लिया है जब दुनिया भर के कर्इ एकाधिकारवादी शासक अब भी सत्ता से बुरी तरह चिपके हुए हैं। पूरी दुनिया ने उनके इस धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की ओर बढ़ने के दूरदर्शी कदम का स्वागत किया है।
पिछले एक साल में तिब्बत के भीतर और बाहर रहने वाले तिब्बतियों में फिक्र के बावजूद राजनीतिक सत्ता का हस्तांतरण तिब्बतियों के समर्थन और एकजुटता की वजह से बिना किसी बड़ी आपतित के आसानी से हो सका है। कशाग सभी तिब्बतियों से यह अपील करना चाहता है कि वे एकजुट रहें और इस हस्तांतरण को सफल बनाने के लिए अपना समर्थन आगे भी देते रहें। परमपावन अहिंसा, करुणा, धर्मनिरपेक्ष सदाचार, धार्मिक सौहार्द और तिब्बतियों की आज़ादी के लिए जिस तरह से अथक योगदान दे रहे हैं, आज पूरी दुनिया उसको स्वीकार कर रही है। उनके इस योगदान के लिए ही उन्हें दुनिया के सर्वोच्च सम्मान नोबेल शांति पुरस्कार से 1989 में नवाजा गया। हाल में ही परमपावन को प्रतिषिठत साल 2012 के टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें ‘अपने धार्मिक परंपराओं से परे विज्ञान और लोगों के साथ जुड़ाव और विज्ञान एवं बुद्ध धर्म की खोजी परंपराओं के बीच संबंध पर जोर देने’ के लिए दिया गया है। इसके अलावा, यह सबको पता कि चीन जनवादी गणतंत्र की रोक-टोक और दबाव के बावजूद परमपावन से मिलने वाले वैशिवक नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। यह भी सबको पता है कि उनके उपदेशों के प्रति दुनिया भर के लोगों में आकर्षण बढ़ रहा है। लेकिन यह बात शायद कम ही लोगों को पता होगा कि उनके उपदेशों के श्रोताओं में मुख्यभूमि चीन के भी हजारों लोग शामिल होते हैं और चीन के 20 करोड़ से ज्यादा बौद्धों में से भी बहुत लोग उनके उपदेश सुनने आते हैं। इसका परिणाम यह है कि उनके आध्यातिमक नित्य प्रयोग से ज्यादा से ज्यादा चीनी लोग तिब्बत और उसकी संस्कृति के बारे में जानकारी हासिल कर रहे हैं।
परमपावन का हमेशा यह कहना रहा है कि तिब्बत पर अंतिम बात तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों की ही मानी जाएगी। चीन द्वारा पिछले पचास साल में जबरन कब्जे के बावजूद तिब्बतियों की आज़ादी की भावना और इच्छा को दबाया नहीं जा सका है। यहां तक कि सांस्कृतिक क्रांति का सबसे अंधेरा दौर भी तिब्बतियों की पहचान को नष्ट करने में विफल रहा। 1980 के दशक में चीन के दमनकारी शासन के विरोध में बहुत से विरोध प्रदर्शन हुए। हालांकि, साल 2008 के ऐतिहासिक शांतिपूर्ण प्रदर्शन संख्या के हिसाब से ज्यादा बड़े थे और यह समूचे तिब्बती पठार में फैल गए थे। साल 2009 से ही तिब्बत में जारी आत्मदाह की लहर से यह साफ होता है कि तिब्बतियों की आज़ादी और आत्मसम्मान की आकांक्षा अभी भी बनी हुर्इ है। इसके अलावा, आज तीनों प्रांतों में जिस तरह की अडिग तिब्बती भावना और एकजुटता दिख रही है वैसा तिब्बत के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया था। अब दुनिया भर में लगातार तिब्बतियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और वे जिस तरह से तिब्बती आंदोलन, संस्कृति और धर्म में रुचि दिखा रहे हैं, वह गर्व की बात है। यह केवल परमपावन के नेतृत्व की वजह से ही संभव हो पाया है। उनके व्यापक योगदान, उपलबिधयों और बहुत कुछ करने के लिए हम परमपावन का हमेशा आभारी रहेंगे। महान पांचवें दलार्इ लामा ने देश के एकीकरण और तिब्बती भावना एवं पहचान के प्रति ज्यादा चेतना पैदा कर तिब्बत को मजबूत बनाने में मदद की थी। महान तेरहवें दलार्इ लामा ने दूसरे देशों के साथ रिश्ते बनाकर और तिब्बत के वैशिवक दर्जे में लगातार बढ़त करके उसे दुनिया के नक्शे पर जगह दिलार्इ। अपने दो महान पूर्ववर्ती दलार्इ लामाओं की तरह परमपावन चौदहवें दलार्इ लामा ने तिब्बतियों की आंतरिक एकता और तिब्बत आंदोलन के वैशिवक रूपरेखा को मजबूत करने में अपना योगदान दिया, इसलिए उन्हें तिब्बत के महान दलार्इ लामाओं में शामिल किया जाता है।
इस नाजुक समय में बाहरी ताकतें तिब्बतियों के बीच विघटन पैदा कर और उनके धर्मनिरपेक्ष रास्ते को छिन्न-भिन्न कर परमपावन दलार्इ लामा की विरासत को कमजोर करने की हर कोशिश कर रही हैं। उदाहरण के लिए चीन सरकार शुगदेन अनुयायिओं जैसे विभिन्न गुटों को गुमराह कर रही है और उन्हें आर्थिक मदद दे रही है तथा उनके तमाम कार्यों से तिब्बती आंदोलन को नुकसान पहुंच रहा है। तिब्बतियों को उनकी बातों में नहीं फंसना चाहिए और उनके घातक इरादों से बचना चाहिए। ऐसे गुटों पर निगरानी रखने की जरूरत है।
इस साल 8 अगस्त को, जो संयोग से ल्हाकर (बुधवार) के दिन पड़ रहा है, कालोन टि्रपा अपने पद का एक साल पूरा कर लेंगे। इस दिन के उपलक्ष्य में और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें अपना समर्थन जताने के लिए कशग सभी तिब्बतियों और मित्रों से यह आहवान करता है कि वे इस दिन को वैशिवक एकजुटता जागरण दिवस के रूप मे मनाएं। अंतरराष्ट्रीय जागरूकता के तहत उन तिब्बतियों को याद किया जाएगा जिन्होंने तिब्बत के लिए अपनी जान दे दी है और तिब्बत में चीनी शासन के तहत लगातार दमन का सामना करने वाले हर तिब्बती के प्रति एकजुटता दिखार्इ जाएगी। इस जागरण के बाद एक और महत्वपूर्ण अवसर आने वाला है, धर्मशाला में 25 से 28 सितंबर तक चार दिन की विशेष आम सभा आयोजित होगी। इस बैठक में तिब्बत में जारी संकट पर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाएगा और उपयुक्त कार्य योजना तैयार की जाएगी। बैठक के दौरान तिब्बती जनता और प्रशासन की तरफ से परमपावन के दीर्घायु होने की प्रार्थना भी की जाएगी।
तिब्बती नेतृत्व अहिंसा और मध्यम मार्ग नीति के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। हमारा मानना है कि तिब्बत मसले को हल करने का मात्र एक रास्ता संवाद ही है और हम किसी भी जगह और किसी भी समय सार्थक वार्ता करने के लिए तैयार हैं। हम चीन से यह प्रबल अनुरोध करते हैं कि वह मध्यम मार्ग नीति को स्वीकार करे जिसके तहत तिब्बतियों को चीन जनवादी गणतंत्र और चीनी संविधान के ढांचे के भीतर ही वास्तविक स्वायत्तता देने की मांग की गर्इ है। तिब्बती नेतृत्व सार को प्राथमिक और प्रक्रिया को द्वितीयक समझता है और वार्ता प्रक्रिया को जारी रखने के लिए परमपावन दलार्इ लामा के विशेष दूतों की घोषणा करने को तैयार है।
इस अवसर पर हम भारत सरकार और यहां की जनता, खासकर हिमाचल प्रदेश के प्रति पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से उदार आतिथ्य और समर्थन जताने के लिए अपना हार्दिक आभार और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हम उन सभी लोगों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने तिब्बती जनता का सहयोग किया है।
अंत में, महान पांचवें दलार्इ लामा, जिन्होंने तिब्बत का पुनर्एकीकरण किया और महान 13वें दलार्इ लामा जिस तरह से भारत से तिब्बत लौटने में सक्षम रहे उसी तरह से परमपावन 14वें दलार्इ लामा के भी पोटाला महल में वापसी को सुगम बनाने के लिए हम संघर्ष करने का वचन देते हैं, जो कि सभी तिब्बतियों की आकांक्षा है और आत्मदाह करने वाले सभी तिब्बतियों की यही व्यापक मांग थी। परमपावन दलार्इ लामा के दीर्घायु होने और उनकी सभी आकांक्षाएं पूरी होने की उत्कट प्रार्थना के साथ। तिब्बत में सच की जीत हो।
कशाग
6 जुलार्इ, 2012)
नोट: मूल रूप से तिब्बती में जारी बयान का अनुवाद।