
बायलाकुप्पे (कर्नाटक)। आज १३ फरवरी को परम पावन दलाई लामा को ताशी ल्हुनपो मठ के वार्तालाप प्रांगण में व्हाईट तारा पर आधारित दीर्घायु आशीर्वाद प्रदान करना था। यह व्हाईट तारा असल में ‘अमरता की अमृत धारा’ नामक इच्छा-पूर्ति चक्र है। इस अनुष्ठान की रचना परम पावन के रीजेंट और शिक्षक न्गवांग सुंगराब थुटोप नाम के तकदक रिनपोछे ने की थी।
मंदिर में भिक्षुओं और भिक्षुणियों की भारी भीड़ जमा थी, जबकि इससे भी अधिक भिक्षु-भिक्षुणियाँ और आम जन वार्तालाप प्रांगण में एक विशाल शामियाने के नीचे बैठे थे। आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए लगभग २५,००० भक्त एकत्रित हुए थे। इनमें से कई तो कर्नाटक के ही विभिन्न तिब्बती बस्तियों से आए थे। परम पावन गोल्फ कार्ट में सवार होकर मंदिर से नीचे आए और अपने आसन तक पैदल गए। जब वह बैठ गए तो ‘त्रिरत्नों’ की प्रार्थना की गई। इसके बाद चाय, रोटी और खीर वितरित किए गए। इसके साथ ही उन्हें अर्पित करने और आशीर्वाद देने के लिए छंद कहे गए। सभा को संबोधित करते हुए परम पावन ने याद किया कि पाल्डेन ल्हामो ने उन्हें एक सपने में बताया था कि वह ११० साल तक जीवित रह सकते हैं। उन्होंने कुछ समय पहले की एक घटना का भी जिक्र किया, जब वह बोधगया में थाई मंदिर में एक बैठक में भाग ले रहे थे। परम पावन ने कहा कि उन्हें बुद्ध का स्पष्ट दर्शन हुआ और ऐसा लग रहा था कि बुद्ध उनसे प्रसन्न हैं।
बुद्ध धर्म दुनिया भर में फैला है। यह उन जगहों तक भी पहुंच गया है, जहां पहले से ऐतिहासिक रूप से बौद्ध धर्म का कोई संबंध नहीं था। मैं अनुभव करता हूं कि मैंने इसमें कुछ योगदान ही दिया है। मैंने अपने जीवन की शुरुआत में अपने शिक्षकों के पास बैठकर अध्ययन किया है और परिणामस्वरूप मैं अपने जीवन को सार्थक बनाने में सक्षम बन पाया।
‘समय का चक्र घूमा और तिब्बत की स्थिति ने मुझे वहां से पलायन करने और भारत में निर्वासन में आने के लिए विवश कर दिया। तब से दलाई लामा का नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया है। मुझे खुशी है कि मैं एक भिक्षु के लिए अनुशासन रूप में विनय की साधना करता रहा। इसके साथ ही सूत्र और तंत्र दोनों का अध्ययन भी जारी रखा।
‘सुबह उठते ही मैं बोधिचित्त के जागृत मन और शून्यता के दृष्टिकोण पर ध्यान लगाता हूं। यह ध्यान मैं रोज करता हूं। मैंने हमेशा एक आध्यात्मिक व्यक्ति का जीवन जीने की कोशिश की है। मैंने ऐसे अनेक लोगों को दोस्त बनाया है, जो जरूरी नहीं कि बौद्ध धर्म में भी रुचि रखते हों।’

‘इस तरह मैंने अपने युवा वर्ष तिब्बत में बिताए और फिर निर्वासन में आ गया। यहां मैंने अपना अधिकांश जीवन बिताया है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, मेरे सपनों के संकेत बताते हैं कि मैं ११० या उसके आसपास जीवित रहूँगा।’ दर्शकों के बीच तालियां बज उठीं।
‘मैं तिब्बती प्रांत अमदो के सिलिंग से हूं, जहां के लोग काफी बुद्धिमान होते हैं। मैंने बुद्ध की शिक्षाओं को अपनाया है, जिससे मेरा जीवन सार्थक हो गया है।
“आज, मैं व्हाईट तारा नामक दीर्घायु आशीर्वाद देने जा रहा हूं। सबसे पहले मुझे कुछ प्रारंभिक अभ्यास करने होंगे। जब मैं ऐसा करूं, तो कृपया मेरे साथ में तारा मंत्र का जाप करें।’
भक्तों की सभा में प्रवचन करते हुए परम पावन ने कहा :
‘हमारा यह मानव जीवन अनमोल है और इसको पाकर हमें इसे सार्थक बनाना चाहिए। इसके लिए हमें बुद्ध की सम्यक उपदेश की आवश्यकता है और हमें नैतिकता, एकाग्रता और ज्ञान जैसे तीन प्रशिक्षणों के लिए तैयार होना चाहिए। अगर हम सम्यक तरीके से प्रशिक्षित होना चाहते हैं तो हमें लंबा जीवन जीना होगा। हम आर्य तारा जैसे देवता की अराधना करके अपने जीवन को लम्बा कर सकते हैं। आर्य तारा देवता ने कदम परंपरा का पालन करने वालों की देखभाल करने की प्रतिज्ञा कर रखी है।

‘बोधिचित्त के संदर्भ में हमें सभी चार तंत्रों की साधना करनी चाहिए। इसलिए सबसे पहले आपको बोधिसत्व व्रत लेना होगा। बोधिचित्त प्रेरणा के बिना तांत्रिक साधना गलत दिशा में जा सकती है। आप जो भी तांत्रिक साधना करते हैं, वह बोधिचित्त पर आधारित होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि यह साधना परोपकार की इच्छा से प्रेरित होनी चाहिए। मैं इसी भावना से साधना करता हूं। मैं जिस क्षण जागता हूं, उसी क्षण से मैं बोधिचित्त उत्पन्न करता हूं। दिन के अंत में भी मैं बोधिचित्त को कभी नहीं भूलता। मैं बोधिचित्त के प्रति सचेत होकर सोता हूं। आप अपने मन में सोचते हैं कि आप जो भी साधना करेंगे, वह सभी प्राणियों के लाभ के लिए करेंगे। इस तरह आप अपना जीवन दूसरों की सेवा करने के लिए समर्पित कर देते हैं।’
परम पावन ने बोधिचित्त की साधना करने और बोधिसत्व व्रत लेने के लिए सभा में छंदों का पाठ किया और सभा से भी करवाया। फिर उन्होंने आशीर्वाद देने की प्रक्रिया शुरू की और इसके चरणों से गुजरते हुए शिष्यों को सलाह दी कि वे खुद को शून्य में विलीन होने की कल्पना करें। उनसे उन्होंने ‘व्हाईट तारा’ के रूप में उत्पन्न होने का अनुभव करने को कहा।
परम पावन ने आगे कहा, ‘जैसा कि मैंने पहले ही उल्लेख किया है, मैं हर सुबह जब उठता हूं तो मैं बोधिचित्त और शून्यता के दृष्टिकोण का ध्यान करता हूं। अपने दैनिक जीवन में मैं अपने मन को इन दो साधनाओं की ओर बढ़ाने का प्रयास करता हूं, जिन्हें विधि और ज्ञान के रूप में भी जाना जाता है। दैनिक आधार पर इन दो साधनाओं से प्रभावित होकर मैंने अपने जीवन के दिनों, हफ्तों, महीनों और वर्षों में अपने मन को बोधिचित्त और शून्यता से परिचित कराया है। यह सिर्फ़ श्लोकों और प्रार्थनाओं का पाठ करने की बात नहीं है, बल्कि इन सिद्धांतों को अपनी साधना का आधार बनाने की बात है। इस तरह हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।’
जब आशीर्वाद कार्यक्रम संपन्न हो गया, तब परम पावन ने शिष्यों को प्रसन्न होने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने उन्हें सलाह दी कि अब से वे इच्छा-पूर्ति चक्र या ‘व्हाईट तारा’ को अपना संरक्षक देवता मानें।
सभा ने परम पावन को धन्यवाद ज्ञापन मंडल पेश किया और इस कार्यक्रम का समापन ‘सत्य वचनों की प्रार्थना’ और समर्पण प्रार्थनाओं के साथ हुआ। इसके बाद परम पावन मुस्कुराते हुए और हाथ हिलाते हुए सभा सदस्यों को आशीर्वाद देते हुए वार्तालाप प्रांगण से मंदिर के बरामदे तक गए और और गोल्फ़-कार्ट में सवार होकर अपने कमरे में लौट गए।