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धर्मशाला। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने २२ जून को तिब्बत पर आठवें विश्व सांसद सम्मेलन को संबोधित किया, जिसमें चीन-तिब्बत संवाद से लेकर परम पावन दलाई लामा के पुनर्जन्म तक के विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की गई।
तिब्बत मुद्दे पर अमेरिकी सरकार द्वारा की गई पहलों और समान विचारधारा वाले देशों द्वारा अपने-अपने संसदों में इसी तरह के कदम की अपेक्षा पर प्रकाश डालते हुए सिक्योंग ने कहा कि यूक्रेन की स्थिति और वैश्विक राजनीति में बाद के बदलावों के बाद चीन पर दुनिया के बदलते दृष्टिकोण ने उग्यूर, मंगोलियाई, हांगकांग और ताइवान के जागरूक लोगों के साथ तिब्बतियों को भी नई वैश्विक व्यवस्था में उभरते अवसरों और चुनौतियों लाभ उठाने का अवसर दिया है।
सम्मेलन के दौरान सांसदों की सक्रिय भागीदारी और उनके अपने देश की संसदों में तिब्बत आंदोलन को आगे बढ़ाने में उनकी रुचि की अभिव्यक्ति की सराहना करते हुए सिक्योंग ने चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने में मदद करने को तत्पर रहनेवाले सभी लोगों और देशों के लिए एक साझा मंच बनाने के लिए इस सम्मेलन को आगे भी जारी रखने पर जोर दिया। इसके अलावा, सिक्योंग ने एक अन्य सत्र में चीन के मजबूत और व्यापक प्रचार और इसके द्वारा दिए जानेवाले गलत दिशा-निर्देशों की आशंका को देखते हुए तिब्बत पर बदलते नजरिए को लेकर मुकम्मल चर्चा कराने के बारे में सम्मेलन को बताया।
चीन के विस्तार के बारे में बोलते हुए सिक्योंग ने दोहराया कि तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं था जो माइकल वैन वॉल्ट वैन प्राग, प्रोफेसर लाउ हान शियांग और अन्य शोधकर्ताओं के निष्कर्षों में आईने की तरह चमकता है। हालांकि, सिक्योंग ने उल्लेख किया कि परम पावन दलाई लामा के नेतृत्व वाले तिब्बतियों ने सर्वसम्मति से जमीनी वास्तविकताओं के आधार पर चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के लिए एक व्यवहार्य समाधान के रूप में मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को अपनाया है।
अतीत में तिब्बत को एक स्वायत्त देश के रूप में प्रमाणित करने के लिए इतिहासकारों द्वारा स्थापित साक्ष्यों को दरकिनार करके चीनी सरकार द्वारा वार्ता के दौरान परम पावन दलाई लामा के समक्ष रखे गए उस पूर्व शर्त को सिक्योंग ने याद किया, जिसमें चीन ने परम पावन से यह स्वीकार करने को कहा था कि तिब्बत अति प्राचीन काल से ही चीन का अभिन्न अंग रहा है। परम पावन ने इसका बुद्धिमानी से उत्तर देते हुए कहा था,‘मैं इतिहासकार नहीं हूं, आइए इतिहास को इतिहासकारों पर छोड़ दें। हमारे लिए जो अधिक महत्वपूर्ण है वह है तिब्बती लोगों का भविष्य।‘
तिब्बत पर चीन के निरंतर दावे के पीछे के उद्देश्यों को उजागर करते हुए सिक्योंग ने कहा, ‘चीन तिब्बत पर कब्जे की अपनी वैधता साबित करने की कमजोरियों को जानता है। इसीलिए वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसकी वैधता की पुष्टि कराने की कोशिश कर रहा है। लेकिन, दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय समुदाय तिब्बत पर चीन की वैधता को स्वीकार नहीं कर पाएगा। उन्होंने आगे कहा,‘तिब्बत पर चीनी कब्जे को वैधता केवल तिब्बती लोग या परम पावन दलाई लामा ही दे सकते हैं।
इसके अतिरिक्त कुछ देशों द्वारा चीन के तथाकथित घरेलू मुद्दे में हस्तक्षेप करने से परहेज करने की अपील के साथ ही कुछ देशों द्वारा चीन-तिब्बत वार्ता का समर्थन करने की बात करने से तिब्बतियों के बीच विरोधाभासी भावनाएं उभर कर आई हैं। इसलिए, सिक्योंग ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सम्मेलन में मौजूद सांसद तिब्बत के चीन का हिस्सा नहीं होने के संदेश को वापस अपने देशों में ले जाएंगे।
तिब्बत में औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों की स्थापना की हालिया रिपोर्टों में उभर कर सामने आई तिब्बती पहचान को मिटाने की राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीति को देखते हुए सिक्योंग ने कहा कि चीन कभी भी वार्ता की मेज पर आने के लिए उत्सुक नहीं होगा और अंततः मध्यम मार्ग के लाभ को बाधित करेगा। इसलिए, उन्होंने सांसदों से तिब्बत में चीन के लौह जकड़न नीति पर सवाल उठाने का आग्रह किया।
इसके अलावा, सिक्योंग ने उपस्थित सांसदों को तिब्बत के पर्यावरण, विशेष रूप से इसके जल संसाधन के चीन द्वारा शोषण के महत्व पर प्रकाश डाला। तिब्बत की नदियों पर चीन के बड़े बांधों के निर्माण और इसके निहितार्थों के बारे में और नवीनतम जानकारियों के साथ उन्होंने जोर देकर कहा कि इस तरह की गतिविधियां, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप सेनिचले इलाकों के देशों की आजीविका को प्रभावित करती हैं, जिनके साथ चीन आमतौर पर अपने जल विज्ञान से संबंधित आंकड़ों को साझा करने से इनकार करता रहा है।
इसके अलावा, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदायों को चीन द्वारा चीजों के चीनीकरण के प्रयासों से बचने के लिए उग्यूर के बजाय इस क्षेत्र को पूर्वी तुर्केस्तान झिंझियांग कहने का आग्रह किया। साथ ही तिब्बत के लिए ज़िज़ांग नाम से दुनिया की अनभिज्ञता के बारे में भी चर्चा की। साथ ही, उन्होंने सम्मेलन में उग्यूर राजनेता और कार्यकर्ता डोलकुन ईसा, हांगकांग और मंगोल के तिब्बत के दोस्तों की उपस्थिति को स्वीकार किया, जिनके साथ तिब्बती प्रतिनिधि अपने साझा प्रतिद्वंद्वी सामूहिक तौर परचुनौती देने के लिए ठोस प्रस्ताव बनाने पर चर्चा करेंगे।
इन टिप्पणियों के साथ सिक्योंग ने विशेष रूप से परम पावन दलाई लामा के पुनर्जन्म के मुद्दे की ओर इशारा करते हुए कहा कि परम पावन के पुनर्जन्म को निश्चित करने की जिम्मेदारी और इसका अधिकार पूरी तरह से परम पावन दलाई लामा और तिब्बती लोगों के पास है।
अपना संबोधन समाप्त करने से पहले सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने सम्मेलन में सांसदों की भागीदारी के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया।