जागरण, 10 जून, 2012
कार्यालय संवाददाता, धर्मशाला : धर्मगुरु परमपावन दलाईलामा ने कहा कि तिब्बत और भारत अध्यात्मिक बंधन में बंधे हैं। चीन शारीरिक रूप से तिब्बतियों पर रोक लगा सकता है लेकिन 99 फीसद लोगों का जुड़ाव भारत से है। पिछले साठ साल में इसमें बढ़ावा ही हुआ है। दलाईलामा ने कहा कि चीनी नैतिकता को भूलकर जीवन के सही मार्ग पर नहीं चल रहे हैं। दलाईलामा शनिवार को मैक्लोडगंज में तीन दिवसीय चौथी तिब्बतियन स्पोर्ट ग्रुप्स कांफ्रेंस के शुभारंभ के बाद संबोधन दे रहे थे।
धर्मगुरु ने कहा कि तिब्बत में प्राकृतिक संसाधनों का शोषण हो रहा है और इससे वन्य जीव प्राणियों का भी जीवन प्रभावित हो रहा है। तिब्बती संस्कृति महज छह मिलियन लोगों से जुड़ी नहीं है, चीन सहित मध्य एशिया के साथ इसका जुड़ाव है। इस दौरान कालोन ट्रिपा लोबसांग सांग्ये ने कहा कि भारत और तिब्बत के मध्य रिश्ते प्रगाढ़ हैं। पिछले कई दशकों में भारत ने तिब्बत के न्याय और आजादी के पक्ष को उठाया है। तिब्बत हमेशा भारत को अपना परम मित्र का दर्जा देता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में तिब्बत की स्थिति नाजुक है। लगातार आत्मदाह के मामले चिंता का विषय हैं।
इस मौके पर सांसद चंद्रेश कुमारी ने कहा कि तिब्बत मुद्दे के हल के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास होने चाहिए ताकि चीन सरकार पर दबाव बनाया जा सके। निर्वासित तिब्बत सरकार की सूचना एवं अंतरराष्ट्रीय मामले विभाग की मंत्री डिक्की छोजांग ने बताया कि कांफ्रेंस के पहले पांच सत्र आयोजित हुए। जिसमें भारत-तिब्बत संबंध, नदियों की स्थिति, इसके प्रभावों एवं अन्य विषयों पर चर्चा की गई। तीन दिवसीय कांफ्रेंस का समापन सोमवार को होगा। इस मौके पर इंडो-तिब्बत फ्रेंडशिप एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय सिंह मनकोटिया, भारत तिब्बत सहयोग मंच के संयोजक इंद्रेश कुमार, तिब्बत कोर ग्रुप के राष्ट्रीय सह समन्वयक चोफेल जोटपा, भारत के पूर्व विदेश सचिव ललित मान सिंह, डा. एनके त्रिखा व डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री मौजूद रहे।