कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया (सीजीटीसी-आई) और नेशनल कैंपेन फॉर फ्री तिब्बत सपोर्ट (एनसीएफटीएस) ने २४ अक्तूबर-२०२३ को ६७वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर महाराष्ट्र के नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में तिब्बत पर एक दिवसीय जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया। धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस समाज सुधारक, दूरदर्शी नेता और भारतीय संविधान के वास्तुकार डॉ. बी.आर. आंबेडकर के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने की स्मृति में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। १४ अक्तूबर, १९५६ को डॉ. आंबेडकर ने नागपुर की दीक्षा भूमि में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया था। यह दिन आंबेडकरवादी बौद्धों और डॉ. बी.आर. आंबेडकर के अनुयायियों के लिए बहुत महत्व रखता है। वे उनके आदर्शों और उपलब्धियों को याद करने के लिए उस दिन दीक्षा भूमि में हजारों की संख्या में इकट्ठा होते हैं।
कार्यक्रम में एक स्टॉल लगाया गया था, जहां भारत और तिब्बत दोनों देशों के राष्ट्रीय झंडे और ‘तिब्बत बचाओ, भारत बचाओ’ के बैनर लगे थे। पृष्ठभूमि में डॉ. बी.आर. आंबेडकर का एक उल्लेखनीय वक्तव्य प्रदर्शित किया गया था। आंबेडकर ने १९५१ में लिखा था, ‘१९४९ में चीन को मान्यता देने के बजाय यदि भारत ने तिब्बत को यह मान्यता दी होती, तो कोई भारत-चीन सीमा संघर्ष नहीं होता।‘
स्टॉल पर उपस्थित लोगों में सीजीटीसी-आई के राष्ट्रीय सह-संयोजक और एनसीएफटीएस के अध्यक्ष श्री अरविंद निकोसे, एनसीएफटीएस के सदस्य और नागपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों से समर्पित तिब्बत समर्थक, आईटीसीओ से ताशी डेकी और छोनी छेरिंग शामिल थे। दिन भर में सैकड़ों लोगों ने स्टॉल का दौरा किया, जहां उन्हें तिब्बत के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की गई और उन्हें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में तिब्बत से संबंधित साहित्य देखने का मौका मिला। सभी आगंतुकों को हिंदी और मराठी में निःशुल्क पर्चे वितरित किए गए। उपस्थित लोगों की गर्मजोशी से भरी प्रतिक्रिया ने स्वतंत्रता के लिए अहिंसक तिब्बती संघर्ष के प्रति उनके अटूट समर्थन और एकजुटता को प्रदर्शित किया।
ताशी देकी ने वहां उपस्थित मीडिया से बातचीत कर तिब्बत की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला और भारत-तिब्बत के बीच गहरे और प्राचीन संबंधों को रेखांकित किया। उन्होंने तिब्बती मुक्ति साधना की अहिंसक प्रकृति पर जोर दिया और भारत के संदर्भ में न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी तिब्बत के महत्व पर जोर दिया।
ताशी देकी ने बताया कि १९५० के दशक से पहले तिब्बत भारत और चीन के बीच एक बफर जोन के रूप में कार्य करता था, जो भारत-तिब्बत सीमा को शांतिपूर्ण बनाए रखता था। १९५० के दशक में तिब्बत पर चीनी कम्युनिस्ट आक्रमण के बाद ही चीन की सीमा भारत के निकट पहुंच गई, जिसके कारण अंततः १९६२ में भारत-चीन युद्ध हुआ और सीमा पर आज भी संघर्ष जारी है। उन्होंने पर्यावरणीय चिंताओं, विशेष रूप से तिब्बत में नदियों के दोहन पर भी प्रकाश डाला, जिसका भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। जाहिर है कि एशिया की प्रमुख नदियां तिब्बती पठार से निकलती हैं।
सीजीटीसी-आई के पश्चिमी क्षेत्र के राष्ट्रीय सह-संयोजक और एनसीएफटीएस के अध्यक्ष अरविंद निकोसे ने ऐसे मौकों पर तिब्बत को लेकर जागरुकता कार्यक्रम आयोजित करने के महत्व पर जोर दिया, जहां हजारों लोग इकट्ठा होते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से में अभी भी तिब्बत के बारे में जानकारी का अभाव है। इसलिए उनके बीच जागरुकता बढ़ाना और भारत में तिब्बत मुक्ति साधना को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है।
२४ अक्तूबर की सुबह ताशी देकी ने एक अन्य स्थान पर धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया। इसका आयोजन भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) के नागपुर चैप्टर द्वारा किया गया था। यह कार्यक्रम नागपुर में लीवरेज ग्रीन्स के क्लब हाउस में हुआ और आईटीएफएस के सदस्य श्री सचिन रामटेके द्वारा आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम के दौरान ताशी देकी को बड़ी संख्या में दर्शकों से जुड़ने और तिब्बती मुद्दे पर प्रकाश डालने का अवसर मिला।
संक्षेप में कहें तो तिब्बत पर दिन भर का जागरुकता कार्यक्रम बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचने और उन्हें तिब्बत, तिब्बती आंदोलन और भारत के संदर्भ में तिब्बत के महत्व के बारे में सूचित करने का शानदार और सफल आयोजन साबित हुआ। इसने आम भारतीयों के बीच तिब्बत के बारे में जागरुकता को प्रभावी ढंग से उत्पन्न किया और तिब्बती मुद्दे के लिए समर्थन को और मजबूत किया।