लोकतांत्रिक तरीके से जनता द्वारा निर्वाचित तिब्बत के सिक्योंग अर्थात् राजप्रमुख पेंपा त्सेरिंग के नेतृत्व में निर्वासित तिब्बत सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप काम करना शुरू कर दिया है। पहली प्राथमिकता है तिब्बत समस्या का समाधान। परमपावन दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार के मतानुसार तिब्बत समस्या का व्यावहारिक एवं स्थायी हल है तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता। चीन के संविधान तथा उसके राष्ट्रीयता संबंधी कानून के अंतर्गत चीन की एकता-अखंडता एवं संप्रभुता की सुरक्षा करते हुए तिब्बतियों को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। चीन सरकार वैदेशिक मामले तथा प्रतिरक्षा विभाग स्वयं संभालेगी एवं शिक्षा, पर्यावरण, कृषि और उद्योग आदि अन्य सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बतियों के पास होगा। इसी को ‘‘मध्यममार्ग‘‘ कहा जाता है। इसी से ‘‘वास्तविक स्वायत्तता‘‘ की मांग भी जुड़ी है। विस्तारवादी चीन सरकार ने स्वतंत्र तिब्बत देश पर 1959 में अवैध नियंत्रण स्थापित करके उसके भूगोल को विकृत कर दिया है। तिब्बत के कई क्षेत्र चीन ने अपने भूभाग में मिला लिये हैं। इसके अन्य क्षेत्रों को अपने साम्राज्यवादी हित में प्रशासनिक फेरबदल के सहारे काट-छाँट दिया है। तिब्बती समुदाय चाहता है कि चीन सरकार तिब्बत के मूल भौगोलिक क्षेत्र को पुनर्व्यवस्थित करते हुए समूचे क्षेत्र को स्वायत्तता प्रदान करे। विश्व समुदाय को गुमराह करने के लिये चीन ने तिब्बत को जो स्वायत्तता दे रखी है वह पूर्णतः अस्वीकार्य है।
विश्वभर में तिब्बत समर्थक संगठन एवं देश तिब्बत की चीन से पूर्ण आजादी के पक्ष में हैं। लेकिन वे भी मध्यम मार्ग नीति का समर्थन कर रहे हैं। तिब्बती समुदाय चीन सरकार द्वारा तिब्बत के चीनीकरण से चिंतित है। षड्यंत्रपूर्वक तिब्बती पहचान मिटाई जा रही है। वहाँ के धार्मिक-सांस्कृतिक केन्द्र, तिब्बती भाषा,इतिहास तथा जीवनमूल्यों को नष्ट किया जा रहा है। ‘‘दुनिया की छत‘‘ एवं ‘‘तीसरा धु्रव‘‘ चीन की भोगवादी नीति के कारण सिकुड़ते-पिघलते ग्लेशियर का क्षेत्र बनने की ओर है। तिब्बत के ग्लेशियर नष्ट होने से कई देशों में जल संकट पैदा हो जायेगा। ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में तिब्बती पहचान को सुरक्षित रखने के लिये तिब्बती समुदाय पूर्ण आजादी की मांग को छोड़कर सिर्फ ‘‘वास्तविक स्वायत्तता‘‘ लेने को तैयार है।
सिक्योंग पेंपा त्सेरिंग की कोशिश चीन के साथ परमपावन दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार की बंद पड़ी वार्ता पुनः प्रांरभ करने की है। इसे पुनः प्रारंभ करने के पक्ष में सारे तिब्बत समर्थक हैं। शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तिब्बती संघर्ष की उपेक्षा इसे हिसंक बना सकती है। इसलिये भी वार्ता पुनः प्रारंभ होनी चाहिये।
पेंपा त्सेरिंग की प्राथमिकता भारतीय सहयोग को और अधिक रचनात्मक बनाने की है। परमपावन दलाई लामा ने हजारों तिब्बतियों के साथ भारत को ही शरण लेने के लिये चुना था। वे इसे अपना दूसरा घर कहते हैं। वे इसे गुरु तथा तिब्बत को भारत का चेला कहते हैं। तिब्बत को चीनी अतिक्रमण से तत्कालीन भारत सरकार बचा नहीं सकी। ‘‘पंचशील‘‘ और ‘‘हिन्दी चीनी भाई भाई‘‘ के नारों के बीच ‘‘सफेद कबूतर‘‘ उड़ायेे जा रहे थे। इस ऐतिहासिक भूल के बावजूद तत्कालीन तथा बाद में भी भारत सरकार एवं प्रांतीय सरकारों द्वारा तिब्बती समुदाय की भरपूर सहायता जारी है। अनेक महत्वपूर्ण तिब्बती शिक्षण संस्थान, व्यवस्थित तिब्बती सेटलमेंट्स, बौद्ध मठ, चिकित्सालय, रोजगार केन्द्र एवं बिजली-पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता इसके प्रमाण हैं। इस भारतीय सहयोग और समर्थन के लिये पेंपा त्सेरिंग द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन स्वाभाविक है। उनका प्रयास है कि तिब्बती समुदाय भारत के प्रति सदैव सद्व्यवहार का परिचय देता रहे।
नई तिब्बत सरकार की प्राथमिकता में कोविड टीकाकरण भी शामिल है। साम्यवादी चीन के वुहान से फैली कोरोना महामारी ने तिब्बती समुदाय को भी संकटग्रस्त कर दिया है। तिब्बत सरकार का सुव्यवस्थित प्रयास है कि भारत एवं नेपाल में रह रहे तिब्बतियों का टीकाकरण किया जाये, क्योंकि महामारी से बचाव के लिये ऐसा करना जरूरी है। कोरोना से सक्रंमित तिब्बतियों को ऑक्सीमीटर समेत कई आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराये जा रहे हैं तथा उन्हें अन्य स्वास्थ्य सुविधायें दी जा रही हैं। कोरोना महामारी की चपेट में आने से कई तिब्बती उपने परिजन और रोजगार खो चुके हैं। ऐसे लोगों की सहायता के लिये प्रयासरत कोविड-19 टास्कफोर्स का पुनर्गठन किया गया है। इस कदम से कोरोना महामारी से पीड़ित तिब्बतियों को भरपूर मदद मिलेगी तथा इस महामारी के विस्तार को रोका जा सकेगा।
मई 2021 में नवनिर्वाचित तिब्बत सरकार एवं इसके प्रमुख पेंपा त्सेरिंग को शुभकामनाओं का क्रम जून में भी जारी रहना सुखद है। ऐसे समय में भारत को भी तिब्बती मामले में व्यावहारिक एवं ठोस कदम उठाने होंगे। भारत की सीमा पर चीन सरकार रेलवे लाइन बिछा चुकी। अब सुपरफास्ट बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी है ताकि वह कम समय और संसाधन में भारत की सीमा पर सैनिक सक्रियता बढ़ा सके। उसने तिब्बतियों को चीनभक्त सैनिक बनाना शुरू कर दिया है। भारत में रह रहे तिब्बतियों ने भारतीय सैनिक के रूप में चीनी सेना एवं उसकी सामरिक रणनीति को काफी नुकसान पहुँचाया था। गलवान घाटी के इसी शर्मनाक अनुभव ने चीन को प्रेरित किया है कि वह तिब्बतियों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ सैनिकों के रूप में करे। चीन की हर चाल का जवाब देने के लिये भारत को तैयार रहना है।