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थेकछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज प्रातः परम पावन दलाई लामा का ब्राजील के पलास एथेना की प्रोफ़ेसर लिया डिस्किन ने हृदय को शिक्षित करने को लेकर एक व्याख्यान सत्र में हर्ष के साथ स्वागत किया। हालांकि, यह एक आभासी कार्यक्रम था। लेकिन परम पावन ने कहा कि यह असल में ब्राजील की उनकी पांचवीं यात्रा है।
श्रोताओं से परम पावन का परिचय कराते हुए डिस्किन ने शिक्षा के महत्व पर उनके द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का उल्लेख किया और निर्वासित तिब्बती बच्चों के लिए स्कूल स्थापित करने के लिए किए गए उनके प्रयासों का हवाला दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि किस तरह से उन्होंने ३० से अधिक वर्षों से आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षति के बारे में परम पावन की लंबे समय से चली आ रही चिंता पर भी टिप्पणी की।
अपने उत्तर में, परम पावन ने सभी को ‘सुप्रभात’ और ‘ताशी देलेक’ कहा और बताया कि उनसे बात करने का यह अवसर पाकर वह बहुत प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘हाथियों के पास हमसे बड़ा दिमाग होता है, लेकिन हम इंसान ज्यादा बुद्धिमान हैं। हमारा विशिष्ट मानवीय गुण हमारी बुद्धि है। पिछले कुछ हज़ार वर्षों में, दुनिया ने बुद्ध सहित बड़ी संख्या में उपदेशकों और विचारकों को देखा है, जिन्होंने एक अद्भुत मानवीय बुद्धि का प्रदर्शन किया।’
‘हालांकि, अगर इस बुद्धि को घृणा, क्रोध और भय के साथ जोड़ दिया जाए तो यह बहुत विनाशकारी हो सकता है। इसलिए, हमें इसके बजाय इसे सावधानी से सौहार्दता के साथ संयोजन करना चाहिए। हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर बुद्धि का अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन जब इसे करुणा और सौहार्दता के साथ जोड़ा जाता है तो यह मन की शांति लाता है और हमारे शारीरिक सेहत में सुधार करता है।’
‘आजकल हर कोई शिक्षा के महत्व की सराहना करता है, लेकिन शिक्षा में एक व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ परिवारों, समुदायों और दुनिया में बड़े पैमाने पर शांति और सौहार्दता के बारे में निर्देश शामिल होना चाहिए। मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह बताने के लिए प्रतिबद्ध हूं कि हम इंसान होने के नाते एक जैसे हैं। क्योंकि यही हमें भाई-बहन बनाता है। हथियार जमा करने और आपस में लड़ने का कोई मतलब नहीं है। मेरा मानना है कि यदि आप वास्तव में करुणामय रवैया अपनाते हैं तो हाथ में हथियार होने पर भी आपमें इसका उपयोग करने की कोई इच्छा नहीं होगी।
‘जब मैं बच्चा था तो मेरे पास एक एयर-राइफल हुआ करती थी, जिससे मैं बच्चों को डरानेवाले बड़े-बड़े और अति आक्रामक पक्षियों को डराता था। लेकिन आज जब मैं हथियारों, सेनाओं और ‘रक्षा’ पर खर्च की जाने वाली राशि के बारे में सोचता हूं तो मुझे लगता है कि यह बहुत गुजरे जमाने की बात है और बड़ी गलती है। हमें इस सदी को और अधिक शांतिपूर्ण सदी और विसैन्यीकरण का युग बनाने की जरूरत है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हम इतने सारे हथियारों का निर्माण इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम क्रोधित और भयभीत हैं। यदि हम पूरे मानव परिवार को एक समुदाय के रूप में पहचान सकते हैं, तो हमें विनाश के इन उपकरणों की आवश्यकता नहीं होगी।’
‘शिक्षा में शांत और निडर रहने का प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए। चूंकि वैज्ञानिक अब हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सौहार्दता और मन की शांति के महत्व को तरजीह दे रहे हैं, इसलिए समय आ गया है कि इन गुणों को विकसित करने के लिए मन के प्रशिक्षण को सामान्य शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए।’
‘मैं इस आधार पर करुणा लाने की बात करता हूं कि हम सभी इंसान होने के नाते समान हैं। मैं जहां भी जाता हूं, चाहे वह यूरोप, अफ्रीका या लैटिन अमेरिका हो, मैं मुस्कुराता हूं। यदि हमें इस सदी को शांतिपूर्ण शताब्दी और शांतिपूर्ण विश्व बनाना है तो सौहार्दता महत्वपूर्ण है। यही मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं।’
परम पावन के साथ प्रश्न-उत्तर सत्र का संचालन करने वाली डॉ. एलिजा कोज़ासा ने बताया कि वह खुद तंत्रिका विज्ञान की शोधकर्ता, माइंड एंड लाइफ इंस्टीट्यूट में फेलो और ब्राजील स्थित तिब्बत हाउस की अध्यक्ष हैं। सबसे पहले उन्होंने ही सवाल पूछा कि तंत्रिका विज्ञान किस तरह परोपकारिता और करुणा के बारे में शिक्षा को और बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
परम पावन ने उत्तर दिया कि यद्यपि हमारी इंद्रियों की उत्तेजना से हमारी चेतना आम तौर पर पहले से ही उत्तेजित है, सौहार्दता और करुणा की अवस्थिति मानसिक चेतना से जुड़ी है। हम मन की शांति को संवेदी स्तर पर नहीं, बल्कि मानसिक स्तर पर चाहते हैं। यही कारण है कि शिक्षा को अधिक शांतिपूर्ण दुनिया की स्थापना के लिए स्वस्थ दिमाग के साथ-साथ स्वस्थ शरीर को विकसित करने के तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने विस्तार से बताया कि हम मुख्य रूप से अपने भाइयों और बहनों के प्रति सच्ची सौहार्दता रखने का अनुभव करते हैं। अपनी अलग-अलग राष्ट्रीय पहचान, राजनीतिक समानताएं और विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के बावजूद हम सभी मानवता का हिस्सा हैं। इसलिए हमें मानवता की एकता के आधार पर सौहार्दता विकसित करने की आवश्यकता है। सौहार्दता मन की शांति का स्रोत है और मन की शांति विश्व में शांति का मूल है।
परम पावन ने आगे कहा, इन दिनों लोगों के पास लोकतंत्र और सामाजिक उत्तरदायित्व का बहुत व्यापक अनुभव है, जो वृहत्तर समुदाय के प्रति उनकी चिंता और संबद्धता को दर्शाता है। यदि हम अधिक स्थिर लोकतांत्रिक समाज देखना चाहते हैं तो हमें अधिक लोगों को मन की शांति प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
धरती माता के साथ हमारे संबंधों पर परम पावन ने घोषणा की कि यह संसार हर उस व्यक्ति का है जो इसमें रहता है। पर्यावरण की रक्षा करना हमारे अपने भविष्य की रक्षा करने को लेकर है, क्योंकि यह विश्व हमारा एकमात्र घर है। वैज्ञानिकों का स्पष्ट रूप से कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ रही है और इसके साथ-साथ हम अधिक चरम जलवायु घटनाएं- बाढ़, सूखा और अगलगी- देख रहे हैं। उन्होंने दोहराया कि पर्यावरण की रक्षा करना हमारे अपने घर की देखभाल करने की बात है।
करुणा के प्रश्न पर लौटते हुए परम पावन ने स्पष्ट किया कि इसकी साधना कोई धार्मिक कृत्य नहीं है, जिसकी परिणति या तो स्वर्ग प्राप्ति में हो या भविष्य में बेहतर जीवन प्राप्त करना हो। बल्कि यह इस बात को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि यहीं और अभी एक अच्छा दैनिक जीवन प्राप्त हो सके। इससे व्यक्ति खुशमिजाज व्यक्ति बनता है। सौहार्दता बुनियादी रूप से अच्छा मानवीय गुण है। हमें इसकी आवश्यकता है चाहे हम ईश्वर को मानें या बुद्ध को या किसी को न मानें। परम पावन ने यह ध्यान दिलाया कि धर्म के घोर विरोधी चीनी कम्युनिस्ट भी वास्तव में गरीबों की मदद करने के लिए प्रेरित हुए हैं।
परम पावन से पूछा गया कि उन्होंने जिसे ‘भावनात्मक निरस्त्रीकरण’ कहा है, वह कोविड-19 महामारी से निपटने में किस तरह से हमारी मदद कर सकता है। इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि हमारी शारीरिक भलाई हमारी भावनात्मक स्थिति से जुड़ी हुई है। जब हम चिंतित होते हैं और हमारा दिमाग परेशान होता है, तो हम बीमारी की चपेट में आने लगते हैं। जब हमारा मन शांत होता है तो उस आंतरिक शक्ति के कारण हमारा स्वास्थ्य बेहतर होता है। परम पावन ने टिप्पणी की कि वे प्रतिदिन सौहार्दता के बारे में सोचते हैं और इसे वास्तव में लाभकारी पाते हैं।
परम पावन ने पुष्टि की कि यदि जाति, राष्ट्रीयता और आस्था के गौण अंतरों पर कम ध्यान दिया जाए और यदि हम अन्य लोगों को ‘हम’ और ‘उन’ के संदर्भ में कम देखें तो बेहतर शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण हो सकता है। उन्होंने कहा कि मानवता की एकता के लिए महत्वपूर्ण है कि हम इस तथ्य को स्वीकार कर लें कि मानव होने के नाते हम सभी समान हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि यदि हम अपने आप को किसी अनजान स्थान पर खोया हुए और अकेले पाते हैं और फिर किसी और को अपनी ओर आते हुए देखते हैं तो हमें खुशी होती है कि यहां एक और इंसान है जिससे हमें मदद मिल सकती है। हमें इस बात की चिंता नहीं होगी कि वे कहां से आए हैं या वे किस पर विश्वास करते हैं।
सामान्य जीवन में हम सब सिर्फ इंसान हैं और हमें एक साथ रहना है। मेरे समूह, मेरी जनजाति, मेरी राष्ट्रीयता के विचारों में विशेष रूप से व्यस्त होना अनावश्यक है। इसके बजाय हमें समग्र रूप से मानवता के बारे में चिंतित होने की आवश्यकता है।
परम पावन ने याद किया, ‘जब मैं तिब्बत में ही था, उस समय मैं ज्यादातर केवल तिब्बत और तिब्बतियों के बारे में चिंतित रहता था। हालांकि एक बार जब मैं भारत सरकार का शरणार्थी और अतिथि बन गया तो मुझे एहसास हुआ कि दुनिया में कितनी अलग-अलग राष्ट्रीयताएं, धर्म और संस्कृतियां हैं। साथ ही वे जिन लोगों से संबंधित हैं, वे सभी मानव होने के नाते समान हैं और क्योंकि हम एक दूसरे पर निर्भर हैं इसलिए हम वास्तविक रूप से एक दूसरे को भाई-बहन के रूप में मान सकते हैं।’
परम पावन ने इस बात को फिर से दोहराया कि पर्यावरण संरक्षण के बारे में लोगों को शिक्षित करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि तिब्बती पठार से निकलने वाली विशाल नदियां पूरे एशिया में लोगों को पानी की आपूर्ति करती हैं। वे लाखों लोगों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, ‘दलाई लामा के रूप में मैंने राजनीतिक मामलों से संन्यास ले लिया है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित हूं।
उन्होंने अपने एक सपने का उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तरी अफ्रीका जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का उपयोग करके समुद्र के पानी को खारेपन से मुक्त किया जा सकता है, जिससे रेगिस्तान को हरा-भरा करने और सब्जियां और फल उगाने की क्षमता विकसित करने में मदद मिल सकेगी। उन्होंने अपना आकलन व्यक्त किया कि सौर और पवन ऊर्जा तिब्बत और मंगोलिया के बीच के रेगिस्तानी क्षेत्रों को बदलने में समान रूप से मदद कर सकती हैं।