(दशकों के क्रूर कम्युनिस्ट उत्पीड़न के बाद तिब्बत के लोग अविचलित और निडर हैं। परम पावन दलाई लामा उनकी विनम्रता के प्रेरणास्रोत हैं)
https://japan-forward.com / जेसन मॉर्गन, रीटाकू विश्वविद्यालय
अक्सर यह कहा जाता है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) एक अधिनायकवादी सरकार है। यह सच भी है। लेकिन बीजिंग के अधिनायकवादी तानाशाही को बर्दाश्त करने वाले लोगों के लिए ठोस रूप से इसका क्या मतलब है? ऐसी स्थिति में जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अपने प्रभाव का विस्तार कर रही है और दुनिया भर में अपनी पकड़ मजबूत करती जा रही है, तब एशिया, प्रशांत, यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका महादेशों के अंतर्गत आने वाले देश क्या उम्मीद कर सकते हैं? इसका उत्तर तिब्बत में पाया जा सकता है।
तिब्बत हमें सिखाता है कि चीनी अधिनायकवाद वास्तव में जमीन पर कैसा दिखता है। इसी तरह तिब्बत, विशेष रूप से आध्यात्मिक नेता परम पावन दलाई लामा क्रूर साम्यवादी उत्पीड़न के सामने आशा की एक किरण के रूप में दिखाई देते हैं और राह दिखाते हैं।
कम्युनिस्ट धर्म से नफरत करते हैं
यह सामान्य जानकारी है कि कम्युनिस्ट धर्म से घृणा करते हैं। कार्ल मार्क्स ने धर्म को ‘लोगों के अफीम’ के रूप में बताया और उपहास उड़ाया था। स्पेनिश गृहयुद्ध के दौरान कम्युनिस्टों ने पादरियों और ननों को शिकार बनाया और चर्चों में तोड़फोड़ की। मेक्सिको में क्रिस्टरो युद्ध के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। वियतनाम में कम्युनिस्टों ने पुजारियों और ननों का जनसंहार किया, गिरजाघर की संपत्ति को ज़ब्त कर लिया और नियमित उपासना करने वालों को शिकार बनाया। यह पैटर्न हर उस जगह पर दोहराया गया है जहां कम्युनिस्टों ने सत्ता हथिया ली है। चाहे वह क्यूबा, उत्तर कोरिया, कंबोडिया, वेनेज़ुएला हो या पूर्वी जर्मनी और पोलैंड। ये सब ऐसे अनेक उदाहरणों में से कुछ ही उदाहरण हैं।
हालांकि, कम्युनिस्ट धर्म से घृणा करते हैं, लेकिन अक्सर यह भी देखने में आया है कि वे इसके बिना शासन नहीं कर सकते। नास्तिक राज्य बनाने का कम्युनिस्टों का लक्ष्य असंभव प्रतीत होता है। जहाँ पारंपरिक धर्म की हत्या होती है, वहां नए पंथ बन जाते हैं।
शायद इसका सबसे अच्छा उदाहरण भूतपूर्व सोवियत संघ है, जिसने समझौता करने की कोशिश करने से पहले ऑर्थोडॉक्स चर्च के खिलाफ युद्ध छेड़ा था। या माओत्से तुंग को देखें, जिसने जीवित देवता के रूप में पूजे जाने के दौरान चीन में जानलेवा अराजकता को बढ़ावा दिया।
कम्युनिस्ट धर्म से नफरत करते हैं। लेकिन, कम्युनिस्टों को भी यह अच्छी तरह से पता है कि धर्म को खत्म नहीं किया जा सकता। कई मामलों में यह उनकी नफरत को ही बढ़ाता है। इन परिस्थितियों में कम्युनिस्ट शासकों के हाथों धार्मिक नेताओं और आम लोगों को भयानक दुर्व्यवहार, यहाँ तक कि नरसंहार भी झेलना पड़ता है।
धर्म-विरोधी घृणा के सात दशक
सत्तर साल से भी अधिक समय पहले तिब्बत में कुछ लोगों को बड़ी उम्मीद थी कि चीन का नवनिर्मित पीपुल्स रिपब्लिक तिब्बत को ‘मुक्त’ कर देगा। उदाहरण के लिए दसवें पंचेन लामा चोएक्यी ग्यालत्सेन चीनी गृहयुद्ध में राष्ट्रवादियों के खिलाफ पीआरसी का पक्ष लेते दिखाई दिए।
हालांकि, कम्युनिस्ट शासन की वास्तविकता ने जल्द ही आदर्शवादी कल्पनाओं को मिटा दिया। १९५० में चीनी कम्युनिस्टों ने तिब्बत पर आक्रमण किया और बलपूर्वक देश पर कब्जा कर लिया। १९५१ में दलाई लामा को यह स्वीकार करते हुए ‘समझौते’ पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था कि तिब्बत चीन का हिस्सा रहा है। फिर १९५९ में अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) के चौदहवें अवतार परम पावन दलाई लामा अपने गृह देश तिब्बत से भागकर पड़ोसी भारत आ गए।
तिब्बत की संस्कृति और लोगों का संहार
तिब्बत पर सात दशकों से अधिक के कम्युनिस्ट शासन के दौरान तिब्बती लोगों और उनके नेताओं को मानव जाति के इतिहास में शायद सबसे व्यापक, व्यवस्थित और लंबे समय तक चलने वाले नफरत और नरसंहार अभियान का शिकार होना पड़ा है। मठों और चैत्यों को जलाया गया है। बौद्ध भिक्षुओं को कैद करके मार दिया गया है। बौद्ध भिक्षुणियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है। तिब्बत की समृद्ध बौद्ध विरासत को भौतिक रूप से नष्ट कर दिया गया है। प्रार्थना चक्रों को अपवित्र और नष्ट कर दिया गया है। मूर्तियों को गिरा दिया गया है। सूत्र जलाए गए हैं।
गुप्त सीआईए गुरिल्ला कमांडो के रूप में तिब्बत में पैराशूट से उतर कर किए जाने वाले अमेरिकी हस्तक्षेप ने केवल चीजों को बदतर ही बनाया है।
दसवें पंचेन लामा ने एक बार कम्युनिस्टों का ‘मुक्तिदाता’ कहकर स्वागत किया था। लेकिन जब १९६२ में उन्होंने पीआरसी द्वारा तिब्बत में किए जा रहे बर्बर कार्रवाईयो के बारे में चीनी प्रधानमंत्री झोउ एन लाई को अवगत कराने का साहस किया तो उन्हें भी गिरफ्तार किया गया था और क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किया गया था। १९८९ में दसवें पंचेन लामा मर चुके थे, संभवतः बीजिंग द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी।
इसके अलावा, एक छोटे लड़के ग्यारहवें पंचेन लामा का १९९५ में बीजिंग द्वारा अपहरण कर लिया गया। उसका ठिकाना अभी भी अज्ञात है। पीआरसी ने तिब्बती लोगों पर एक नकली पंचेन लामा थोपा है। लेकिन बंदूक की नोक पर नकली लामा की पूजा करने के लिए मजबूर किए जाने के बावजूद तिब्बतियों ने ऐसे उपायों को लगभग सार्वभौमिक रूप से खारिज कर दिया है।
बीजिंग द्वारा तिब्बत की संस्कृति और वहां के नागरिकों के संहार के बीच पीआरसी की क्रूरता के विरोध में भिक्षुओं, भिक्षुणियों और अन्य आम तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह किया जाना जारी है।
तूफान आने से पहले की शांति
बीजिंग के अधिनायकवाद के तहत तिब्बती लोग सत्तर से अधिक वर्षों से पीड़ित हैं। उन्हें, उनके धर्म और उनकी संस्कृति को चीनी कम्युनिस्टों द्वारा समाप्त कर दिए जाने की योजना है।
इनमें से अधिकांश बर्बरता बेशक तिब्बत के अंदर चल रही है। यह चीनी सेंसरशिप द्वारा छिपाई गई है और इसे बाकी दुनिया की नज़रों से ओझल कर रखा गया है। हालांकि, परम पावन चौदहवें दलाई लामा निर्वासित तिब्बती सरकार के बीच भारत के धर्मशाला में रहते हैं। भारत में दलाई लामा का सार्वजनिक जीवन दुनिया को उस नफरती अभियान को देखने में मदद करता है जो पीआरसी ने उनके खिलाफ छेड़ रखा है।
बीजिंग नियमित रूप से दलाई लामा पर ‘राष्ट्रतोड़क’ और ‘अलगाववादी’ होने का आरोप लगाता रहता है। एक चीनी अधिकारी ने दलाई लामा को ‘भिक्षु के वेश में भेड़िया’ और ‘मानव चेहरे वाला राक्षस’ कहा।
दलाई लामा से मिलने पर धमकी
बीजिंग नियमित रूप से लोगों और सरकारों को परम पावन दलाई लामा से संवाद करने या उनसे मिलने के खिलाफ धमकी भी देता रहता है। वाशिंगटन, श्रीलंका, भारत, फ्रांस, मंगोलिया, जर्मनी, यूरोपीय संघ और यहां तक कि लेडी गागा को परम पावन से मिलने के लिए चीन द्वारा फटकार लगाई गई और सीधे तौर पर धमकी दी गई।
सीसीपी के यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट में कार्यकारी उप मंत्री झांग यिजोंग ने कहा कि वास्तव में, चीनी सरकार स्वीकार करती है कि वह दलाई लामा के साथ बातचीत करने वालों को तिरस्कार की दृष्टि से देखती है। जैसा कि इंडिया टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘किसी भी देश या किसी के किसी संगठन का दलाई लामा से मिलना हमारे विचार में चीनी लोगों की भावनाओं के प्रति एक बड़ा अपराध होगा।’
स्वयं दलाई लामा को भी यूरोपीय संघ यात्रा की यात्रा करने पर धमकी दी गई थी। २०१२ में, दलाई लामा ने अपनी हत्या करने की चीनी योजनाओं का भी खुलासा किया।
आधिकारिक तौर पर नास्तिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दलाई लामा के अगले पुनर्जन्म में दखल देने के अधिकार का बेतुका दावा कर रही है। यहां तक कि चीनी कम्युनिस्टों द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म और उसमें दलाई लामा के स्थान के बारे में झूठ फैलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का भी बेशर्मी से इस्तेमाल किया गया है।
तिब्बतियों से अधिनायकवादी चीन की ताजा नफरत
अप्रैल २०२३ में चीन ने शातिराना तरीके से परम पावन दलाई लामा को फर्जी खबरों में फंसाने की विशेष रूप से कोशिश की थी। चीनी अफवाहों में आरोप लगाया गया था कि उत्तर भारत में एक कार्यक्रम के दौरान दलाई लामा ने एक किशोर के साथ अत्यधिक अनुचित व्यवहार किया।
हालांकि, भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के सिक्योंग या राष्ट्रपति पेन्पा छेरिंग ने समझाया कि परम पावन का व्यवहार ‘निर्दोष’ था। यह अनुचित नहीं था, बल्कि उन्होंने सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त ‘स्नेह’ का प्रदर्शन किया था।
तिब्बत हाउस जापान के प्रमुख और तिब्बती धर्म और इतिहास के विद्वान डॉ. छेवांग ग्यालपो आर्य लिखते हैं कि :
‘अमेरिका में रहने वाले एक तिब्बती श्री जिग्मे उगेन ने वीडियो के पूरे फुटेज में दर्शाई गई पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि दलाई लामा द्वारा बच्चे के साथ मासूमियत भरे व्यवहार को सनसनीखेज बनाने में चीन के छिपे हुए हाथ थे। बाद में यह परम पावन दलाई लामा को बदनाम करने और मातृभूमि में स्वतंत्रता और न्याय के लिए उनके तिब्बती संघर्ष को कमजोर करने के एक और चीनी साजिश के रूप में सामने आया।
नीचतापूर्ण चाल
कहानी में और भी बहुत कुछ है। डॉ. आर्य आगे बताते है:
‘सीसीपी द्वारा चले गए इस घृणित चाल का एक और कारण यह था कि ०८ मार्च को परम पावन ने भारत के धर्मशाला में एक धार्मिक समारोह में एक लड़के को १०वें जेटसन धम्पा हुथुक्थु (जेबत्सुंदम्बा) के रूप में मान्यता दी, जो उच्चतम मंगोलियाई बौद्ध लामाओं में से एक हैं। ६०० मंगोलियाई और कई तिब्बतियों ने पवित्र समारोह में भाग लिया। मंगोलों और तिब्बतियों के बीच एक गहरा ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध है। असल में, नौवें जेटसन धम्पा हुथुक्थु चीन से भाग गए और तिब्बतियों के साथ भारत में शरण मांगी।’
अप्रैल २०२३ में दलाई लामा पर चीन द्वारा फर्जी अफवाही खबरों से हमले में और तेजी से और बहुत पुराने फर्जी समाचारों में शामिल किया गया। चीनियों ने किशोर से दलाई लामा की बातचीत को गलत तरीके से उड़ाते हुए झूठ फैलाया कि दलाई लामा ने कहा कि कि चीन के तिब्बत मे आने से पहले तिब्बती ‘गुलाम’ थे।
चीन के अधिनायकवाद से आगे भी राह है
यह स्पष्ट है कि बीजिंग दलाई लामा से नफरत क्यों करता है। असल में दलाई लामा एक आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था और उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे पूरी मानव जाति स्वीकार करती है। तिब्बत, मंगोलिया, शेष एशिया, पश्चिम, और यहां तक कि चीन के लोग भी तिब्बती बौद्ध धर्म की सराहना करते हैं। दुनिया भर में लाखों लोग दलाई लामा का सम्मान करते हैं और उन्हें महत्व देते हैं और उनकी तरह करुणा और सच्चाई के साथ जीना चाहते हैं।
जापान में भी, सांसदों का एक समूह तिब्बत के समर्थन में एक साथ आने के लिए राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर काम कर रहा है। दलाई लामा का काशीवा, जापान में रीताकू विश्वविद्यालय में स्वागत किया गया है और इसी तरह सिक्योंग पेन्पा छेरिंग का भी स्वागत किया गया है।
चीन जहां दमन करता है, नष्ट करता है, मारता है और धमकाता है, वहीं दलाई लामा करुणा और प्रेम बिखेरते हैं। दलाई लामा ने बीजिंग की नफरत का कभी भी किसी तरह से जवाब नहीं दिया। इसके बजाय, परम पावन दलाई लामा सुलह, शांति और आनंद की बात करते हैं। उन्होंने तिब्बत और चीन के बीच सह-अस्तित्व के लिए शायद अपने आध्यात्मिक पूर्वज चोंखापा की शिक्षाओं को पुनर्स्थापित करते हुए ‘मध्यम मार्ग’ का दृष्टिकोण प्रतिपादित किया है।
अधिनायकवादी तानाशाही के लगभग तीन-चौथाई सदी के बाद भी तिब्बती लोग अविचलित और निडर बने हुए हैं। दलाई लामा उनकी इस विनम्रता के प्रेरणास्रोत हैं।
और इससे भी आगे की बात है कि परम पावन केवल तिब्बतियों के लिए नहीं हैं। दुनिया में कोई भी दलाई लामा को देख सकता है और जान सकता है कि कम्युनिस्ट तानाशाही धर्म के खिलाफ शक्तिहीन है। अंत में हमेशा सत्य की ही जीत होती है।